मुकेश अंबानी या गौतम अदाणी के बारे में मीडिया में दिए गए संदर्भों में शायद ही कभी उनकी संपत्ति का उल्लेख होता है। मीडिया हमें याद दिलाती है कि अदाणी, भारत के सबसे अमीर व्यक्ति और फोर्ब्स की ‘रियल टाइम बिलियनेयर्स’ सूची में दुनिया के तीसरे सबसे अमीर अरबपति हैं। अंबानी भारत के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति और फोर्ब्स की सूची में आठवें सबसे अमीर व्यक्ति हैं।
फोर्ब्स की सूची में चीन के सबसे अमीर कारोबारी शख्सियत को खोजने के लिए आपको 15वें पायदान (झॉन्ग शैनशैन, हॉन्गकॉन्ग में सूचीबद्ध एक बोतल वाले पानी की कंपनी के मालिक हैं) की ओर जाना होगा। उसके बाद 24वें पायदान पर आपको टिकटॉक ऐप का स्वामित्व रखने वाली कंपनी बाइटडैंस के 39 साल के पूर्व सीईओ झांग यिमिंग मिलेंगे जिन्होंने किसी कारणवश चीन की सरकार के दबाव में इस्तीफा दे दिया और अब अपना अधिकांश समय विदेशों में बिताते हैं। वहीं टेनसेंट कंपनी के मा हुआतेंग को 28वें पायदान पर जगह दी गई है।
यहां मुद्दा यह विश्लेषण करने से नहीं जुड़ा है कि कौन किससे अमीर है, बल्कि एक विरोधाभास पर गौर करने का सुझाव देना है कि वैश्विक स्तर पर जिस पैमाने पर चीजें देखी जा रही है उस आयाम से भारतीय कारोबारियों की वृहद व्यक्तिगत संपत्ति उनके द्वारा किए जा रहे कारोबारों को कमतर करती हुई प्रतीत होती है।
अमीरों की सूची के शीर्ष पायदान पर मौजूद दो भारतीय धनाढ्यों में से केवल एक की कंपनी ही ग्लोबल फॉर्च्यून 500 रैंकिंग में शामिल होने का दावा कर सकती है और वह मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज है। यह रैंकिंग बाजार की धारणा के अल्पकालिक पैमाने के बजाय राजस्व के ठोस तथ्यों पर आधारित है। 51 स्थानों की बड़ी बढ़त के बावजूद, रिलायंस रैंकिंग सूची के 104वें पायदान पर है और यह दुनिया की शीर्ष 100 कंपनियों के दायरे से बाहर ही है। (हालांकि यह 2022 तक लगातार 19 वर्षों तक वैश्विक रैंकिंग में शामिल रही है)।
ग्लोबल 500 की सूची में भारत की निजी क्षेत्र की कंपनियों में टाटा मोटर्स (370वें), टाटा स्टील (435वें) और राजेश एक्सपोर्ट्स (437वें) शामिल हैं। यह संभव है कि अदाणी समूह जिस रफ्तार से भारत में विस्तार कर रहा है, वह जल्द ही एक दिन अपनी किसी एक कंपनी को फॉर्च्यून रैंकिंग में शामिल करने में कामयाब हो सकता है।
फॉर्च्यून 500 की सूची में चीन की कंपनियों के प्रदर्शन के साथ तुलना करना पूरी तरह से उचित नहीं हो सकती है क्योंकि इस सूची में चीन की बड़ी सरकारी कंपनियों की उपस्थिति शीर्ष स्तर पर है और इसकी आंशिक वजह यह है कि चीन ने रैंकिंग की अर्हता पाने के लिए 1990 के दशक से ही कंपनियों के विलय के साथ ही काफी जोर-शोर से प्रयास किए हैं।
फिर भी, फॉर्च्यून 500 की सूची में लगभग 145 चीनी कंपनियां हैं जबकि भारत की नौ (जिनमें से चार निजी क्षेत्र की कंपनियां हैं) कंपनियां ही इसमें शामिल हैं।हालांकि भारतीयों की तरह, चीन के दिग्गज कारोबारी, वैश्विक स्तर पर अमीरों की सूची में शीर्ष पायदान पर नजर नहीं आते हैं लेकिन इनमें से अधिकांश ऐसी कंपनियां चलाते हैं जिनके साथ दुनिया के अग्रणी संस्थागत निवेशकों का नेटवर्क जुड़ा है।
आप प्रौद्योगिकी क्षेत्र के उदाहरणों पर भी गौर कर सकते हैं। 20वें पायदान पर, हॉन हाई प्रेसिजन इंडस्ट्री है, जिसे इसके व्यापारिक नाम फॉक्सकॉन के नाम से जाना जाता है, जो ऐपल के आईफोन, आईपैड और मैक उत्पादों की प्रमुख असेंबलर कंपनी है। वहीं 55वें स्थान पर अलीबाबा है, जिसके प्रवर्तक जैक मा को चीनी सरकार ने समर्थन देना बंद कर दिया था।
इसके बाद हुआवे 96वें और भारतीय स्टार्ट-अप जैसे कि उड़ान, स्विगी और ओला में निवेश करने वाली गेमिंग क्षेत्र की दिग्गज कंपनी टेनसेंट 121वें स्थान पर है। निश्चित रूप से न तो झॉन्ग शैनशैन और न ही झांग यिमिंग की कंपनियां फॉर्च्यून 500 में शामिल हैं लेकिन बेशक यिमिंग बेहद लोकप्रिय शॉर्ट वीडियो ऐप, टिकटॉक की वजह से अपनी वैश्विक प्रसिद्धि का दावा निश्चित रूप से कर सकते हैं।
इसके विपरीत, फॉर्च्यून 500 की सूची में उद्योग जगत से जुड़ीं कुछ दिग्गज भारतीय हस्तियां अपनी कंपनियों के वैश्विक कंपनी होने का दावा कर सकती हैं, हालांकि वे पहले से ही वैश्विक स्तर पर जाने-माने नाम हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज देश में कई तरह के झटके के साथ हैरान भी करती है और तारीफें भी बटोरती है और इसके बावजूद वह घरेलू स्तर पर दिग्गज कंपनी बनी हुई है। विदेश में कंपनी द्वारा बढ़ाया गया एक महत्वपूर्ण कदम शेल गैस परिसंपत्तियों में था लेकिन कंपनी वर्ष 2021 में इससे बाहर हो गई।
बाकी के लिए, वर्ष 2008 में जगुआर लैंड रोवर के अधिग्रहण के कारण टाटा मोटर्स वैश्विक कंपनी का तमगा हासिल करने में कामयाब रही। दूसरी ओर, एंग्लो-डच कंपनी कोरस में भारी-भरकम निवेश करके अधिग्रहण करने के बाद टाटा स्टील फिर से घरेलू स्तर की दिग्गज कंपनी बनने की कोशिश कर रही है। कोरस के अधिग्रहण से कंपनी को ब्रिटेन में काफी संघर्ष करना पड़ा है (हालांकि नीदरलैंड संयंत्र का प्रदर्शन अच्छा है) और कंपनी सिंगापुर की कंपनी नैटस्टील से अलग हो गई। राजेश एक्सपोर्ट्स, सोने और हीरे के आभूषण निर्माता है, जिन्होंने हाल ही में घोषणा की कि वह केंद्र की प्रोत्साहन योजना के तहत तेलंगाना में एक सेमीकंडक्टर इकाई स्थापित करेगी।
वैश्विक स्तर पर भारतीय कंपनियों की मामूली उपस्थिति के विरोध में एक तर्क यह दिया जा सकता है कि सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कंपनियों की वैश्विक प्रतिष्ठा है या भारतीय यूनिकॉर्न स्टार्टअप का दायरा भी बढ़ा है। लेकिन वे एक और विडंबना को उजागर करते हैं। आईटी के प्रमुख केंद्र के रूप में भारत की प्रतिष्ठा के बावजूद भी चीन की प्रौद्योगिकी कंपनियां हीं ठोस तरीके से वैश्विक नेतृत्व का दावा कर सकती हैं।
भारत की चार आईटी कंपनियां, चीन की प्रौद्योगिकी कंपनियों से एक दशक पहले की हैं। वर्ष 1981 में इन्फोसिस, 1968 में टीसीएस, 1980 में विप्रो के आईटी सेवा विभाग की शुरुआत हुई जबकि 1991 में एचसीएल ने अपना कारोबार शुरू किया। फॉर्च्यून 500 कंपनियों में सबसे पुरानी चीन की तकनीकी दिग्गज कंपनी होन हाई है जिसकी शुरुआत 1974 में हुई। लेकिन हुआवे की स्थापना 1987 में, अलीबाबा की स्थापना 1999 में और टेनसेंट की शुरुआत 1998 में हुई थी। जब कहा जा रहा है कि चीन समेत पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था दरक रही है और भारत ही इकलौती चमकती हुई अर्थव्यवस्था है उस समय आईटी प्रभुत्व से जुड़े इन तथ्यों पर गहनता से विचार करना बहुत जरूरी हो जाता है।