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Editorial: वोडाफोन आइडिया के एजीआर संकट पर समाधान की उम्मीद, समान नीति की मांग तेज

एजीआर बकाये और भारी देनदारियों के बीच वोडाफोन आइडिया के लिए समान नीति, शुल्क समीक्षा और दीर्घकालिक समाधान सुनिश्चित किए जाने की मांग लगातार बढ़ाई जा रही है

Last Updated- November 17, 2025 | 11:11 PM IST
Vodafone Idea
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

दूरसंचार कंपनी वोडाफोन आइडिया को उम्मीद है कि उसमें 49 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाली सरकार, समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) से जुड़े लंबित बकाये के दीर्घकालिक समाधान पर विचार करेगी। कंपनी ने यह भरोसा हाल के नतीजों के बाद जताया और यह सर्वोच्च न्यायालय के उस नवीनतम फैसले पर आधारित है, जिसमें केंद्र को इस कंपनी के वित्त वर्ष 2017 तक के एजीआर बकाया का पुनर्मूल्यांकन करने की अनुमति दी गई है।

न्यायालय ने कंपनी द्वारा आकलन में खामियों की चिंता जताए जाने के बाद समूचे एजीआर बकाये की समीक्षा की सरकार को इजाजत दे दी है लेकिन किसी एक कंपनी के लिए कोई खास व्यवस्था नहीं की जानी चाहिए। ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि समूचे दूरसंचार क्षेत्र के लिए एक समान नीति बनाई जाए। अलग-अलग कंपनियों के साथ अलग-अलग व्यवहार समान अवसर की भावना के विरुद्ध हो सकता है और कानूनी जटिलताएं उत्पन्न होने का जोखिम हो सकता है।

यह पहला मौका नहीं है जब केंद्र सरकार वित्तीय संकट से जूझ रही दूरसंचार कंपनी को राहत देने पर विचार कर रही है। वर्ष 2021 में केंद्र सरकार ने दूरसंचार क्षेत्र में दो कंपनियों का दबदबा रोकने के लिए एक पैकेज मंजूर किया था। कारोबार में दो कंपनियों के दबदबे को प्रतिस्पर्धा विरोधी माना जाता है। उस नजरिये को ध्यान में रखकर ही सरकार ने उस समय वित्तीय संकट से जूझ रहे इस क्षेत्र के लिए राहत पैकेज की घोषणा की थी। इस पैकेज के तहत ही 2023 में सरकार ने वोडाफोन आइडिया के 6,133 करोड़ रुपये मूल्य के ब्याज बकाया को करीब 33 फीसदी हिस्सेदारी में बदल दिया था।

इसके बाद, दूरसंचार विभाग ने वोडाफोन आइडिया के 36,950 करोड़ रुपये अन्य बकाए को भी इक्विटी में बदल दिया, जिससे कंपनी में सरकारी हिस्सेदारी 49 फीसदी हो गई। अब केवल एक फीसदी से अधिक की अतिरिक्त अंशधारिता केंद्र सरकार को इस दूरसंचार कंपनी में बहुलांश शेयरधारक बना देगी। अभी हाल तक सरकार के प्रतिनिधियों ने कहा था आगे वोडाफोन आइडिया के ऋण को शेयरों में नहीं बदला जाएगा। यह रुख बदला नहीं जाना चाहिए। सरकार पर यह जिम्मेदारी है कि वह दो सरकारी दूरसंचार कंपनियों भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) और महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (एमटीएनएल) की तकदीर बदले। इससे भी दूरसंचार क्षेत्र में दो कंपनियों का दबदबा खत्म करने में मदद मिलेगी।

दरअसल, कंपनी को अपनी विशाल वित्तीय देनदारियों के लिए एक समाधान की आवश्यकता है, जो लगभग 2 लाख करोड़ रुपये है। इसमें एजीआर का बकाया 79,500 करोड़ रुपये है। कंपनी ने पहले भी धन जुटाने के प्रयास किए हैं और अब उसे इस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है। वोडाफोन आइडिया को अन्य दूरसंचार कंपनियों के साथ-साथ शुल्क दरों को तर्कसंगत बनाने पर भी ध्यान देना चाहिए ताकि प्रति उपयोगकर्ता उसका मासिक औसत राजस्व (एआरपीयू) वर्तमान की तुलना में बेहतर हो जाए।

वोडाफोन आइडिया के एआरपीयू, में सितंबर में समाप्त तिमाही परिणाम में कुछ सुधार दिखा है, लेकिन प्रतिद्वंद्वियों-एयरटेल और जियो की तुलना में बहुत कम है। एक महत्त्वपूर्ण उपभोक्ता केंद्रित उद्योग के रूप में दूरसंचार को भारतीय बाजार में अपनी मजबूती फिर से हासिल करने की जरूरत है। ज्यादा समय नहीं हुआ जब भारतीय दूरसंचार बाजार कई विदेशी निवेशकों के लिए एक गंतव्य था। ऐसा फिर से हो, इसके लिए सरकार को लालफीताशाही को खत्म करके और आसान नियम बनाकर कारोबारों के लिए एक सुविधाप्रदाता की भूमिका निभानी चाहिए।

दूरसंचार क्षेत्र 6जी के साथ-साथ सैटेलाइट ब्रॉडबैंड जैसे नए क्षेत्रों में विस्तार करना चाहता है। उद्योग जगत एक मददगार के रूप में सरकार की ओर देख रहा होगा। इससे संपूर्ण दूरसंचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ने और विश्व मंच पर प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिलेगी। वित्तीय बकाया माफ करना और राहत पैकेज प्रदान करना अल्पकालिक उद्देश्यों को पूरा कर सकता है। यह किसी क्षेत्र को मजबूत करने में ज्यादा मदद नहीं कर सकता है। इसके लिए एकाधिकार परिदृश्य को रोकने की कोशिश करने के बजाय, सरकार सभी दूरसंचार कंपनियों से वसूली जाने वाली लेवी और शुल्क की समीक्षा कर सकती है। ऐसा दृष्टिकोण किसी व्यवस्थागत समस्या को ठीक करने में काफी मदद कर सकता है।

First Published - November 17, 2025 | 11:11 PM IST

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