भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के चेयरमैन तुहिन कांत पांडेय ने सोमवार को कहा कि भारत का यूनिक इन्वेस्टर का आधार अगले तीन से पांच वर्ष में दोगुना हो सकता है। इक्विटी में भागीदारी अभी भी काफी कम है।
पांडेय ने जोर देकर कहा कि घरेलू बचत के बड़े हिस्से को पूंजी बाजारों में लाने के लिए निरंतर आर्थिक विस्तार बेहद ज़रूरी होगा। उन्होंने सीआईआई के राष्ट्रीय वित्त पोषण शिखर सम्मेलन में कहा, आगे चलकर इसी वृद्धि की वजह से हम अपनी आंतरिक बचत पूंजी बाज़ार में लगा पाएंगे। उन्होंने कहा कि भारतीय परिवारों और घरेलू संस्थानों के पास अब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की तुलना में सूचीबद्ध इक्विटी का बड़ा हिस्सा है। देश में करीब 13.5 करोड़ यूनिक इन्वेस्टर हैं।
हाल में सेबी के एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण से पता चला है कि 63 फीसदी प्रत्युत्तरदाताओं को प्रतिभूति बाजार की जानकारी है। लेकिन अभी सिर्फ 9.5 फीसदी परिवार ही इसमें निवेश करते हैं। अन्य 22 फीसदी अगले 12 महीनों में बाजार में प्रवेश करने पर विचार कर रहे हैं। पांडेय ने कहा कि इस रुझान के कारण नियामकों, जारीकर्ताओं और मध्यस्थों की पेशकशों की सुरक्षा और गुणवत्ता सुनिश्चित करने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी हो जाती है।
पांडेय ने कहा कि भारत के पूंजी बाजारों को मजबूत घरेलू फंडामेंटल्स और बढ़ती घरेलू भागीदारी का समर्थन मिल रहा है, जबकि वैश्विक अनिश्चितताएं जोखिम पैदा कर रही हैं। इनमें अमेरिकी बाजार में संभावित गिरावट को लेकर चिंता भी शामिल है।
उन्होंने कहा, बाहरी जोखिम हमेशा रहेंगे, चाहे वे व्यापार से संबंधित हों या वैश्विक वित्तीय बाजारों से। लेकिन भारत की वृद्धि की कहानी को ठोस फंडामेंटल, जनसांख्यिकी, प्रतिभाओं की भारी तादाद और सतत सार्वजनिक एवं निजी निवेश का समर्थन है। ये कारक निवेशकों के विश्वास के साथ मिलकर झटकों से बचाव का काम करते हैं।
उन्होंने कहा कि सेबी भारतीय रिजर्व बैंक के साथ मिलकर ऐसे मॉडलों पर काम कर रहा है, जो म्युचुअल फंडों में तरलता और निवेश निकासी के दबाव सहित आपस में जुड़े जोखिमों पर नजर रखते हैं।
एआई, एल्गोरिद्म सिस्टम और टोकनाइजेशन को तेज़ी से अपनाने के बारे में पांडेय ने कहा कि सेबी का नियामकीय रुख ज़िम्मेदारी और जवाबदेही के साथ नवाचार पर आधारित है। उन्होंने कहा कि नवाचार को नहीं रोका जा सकता और प्रगति को बाधित किए बिना उभरती प्रौद्योगिकियों का जोखिम कम करने के लिए नियमन को गतिशील होना चाहिए। उन्होंने आगाह किया कि जैसे-जैसे डिजिटल भागीदारी बढ़ रही है, साइबर धोखाधड़ी का जोखिम भी बढ़ रहा है।
उन्होंने कहा, यह सुनिश्चित करना कि नए निवेशक सुरक्षित और ज़िम्मेदारी से बाजार में प्रवेश करें, इसके लिए भारत के पूंजी बाज़ारों को अलग स्तर पर ले जाने के लिए अगले 5 साल अहम होंगे।