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Editorial: भारत-भूटान संबंधों में नई ऊर्जा, चीन की बढ़त रोकने की रणनीतिक पहल

वर्ष 1960 के दशक से ही भूटान के साथ भारत के रचनात्मक और विश्वसनीय संबंधों के परिणाम निरंतर सौहार्दपूर्ण रहे हैं

Last Updated- November 14, 2025 | 10:31 PM IST
Modi and Bhutan King Jigme Khesar Namgyel Wangchuck

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूटान यात्रा ने दो असमान शक्तियों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों के एक मॉडल को प्रतिबिंबित किया। यह ऐसा मॉडल है जिसे भारत ने लगभग 7,92,000 लोगों के हिमालयी राजतंत्र के साथ लगातार बनाए रखा है। नेपाल के विपरीत, वर्ष 2008 में भूटान के चुनावी लोकतंत्र में परिवर्तन ने भारत के साथ संबंधों को अस्थिर नहीं किया है।

वर्ष 2007 में भूटान में राष्ट्रीय परिषद के लिए पहली बार प्रत्यक्ष चुनाव हुए थे। उस समय भारत-भूटान संधि में एक महत्त्वपूर्ण संशोधन किया गया और उस उपबंध को बदल दिया गया जिसमें कहा गया था कि भारत विदेशी मामलों में भूटान का ‘मार्गदर्शन’ करेगा। उसकी जगह लिखा गया कि दोनों देश ‘एक दूसरे की स्वतंत्रता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान’ करेंगे। दोनों देश एक-दूसरे के खिलाफ अपने क्षेत्र का इस्तेमाल नहीं करने देने पर भी सहमत हुए। इस उपबंध का परीक्षण साल 2017 में भूटान के डोकलाम क्षेत्र पर चीन के कब्जे के दौरान हुआ था।

वर्ष 1960 के दशक से ही भूटान के साथ भारत के रचनात्मक और विश्वसनीय संबंधों के परिणाम निरंतर सौहार्दपूर्ण रहे हैं, जिससे इस पड़ोसी देश को शासन के संस्थानों और सैन्य क्षमता के निर्माण में मदद और विकास में उदार सहायता मिली है। भूटान की ओर से, चतुर्थ ड्रुक ग्यालपो या नरेश जिग्मे सिंग्ये वांगचुक, जिन्हें के4 के नाम से जाना जाता है, ने संबंधों को आगे बढ़ाया है। उन्होंने अपने साम्राज्य को संसदीय लोकतंत्र में बदलने की पहल की और फिर अपने पुत्र जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक (के5) की खातिर पद त्याग दिया था। मोदी की भूटान यात्रा के माहौल ने दोनों देशों के बीच पारंपरिक सभ्यतागत और रणनीतिक संबंधों को प्रतिबिंबित किया।

प्रधानमंत्री के 70वें जन्मदिन पर मुख्य अतिथि थे और उन्होंने बौद्ध कालचक्र सशक्तीकरण समारोह का उद्घाटन किया, जो वैश्विक शांति प्रार्थना महोत्सव के तहत तीन दिवसीय कार्यक्रम था। दिल्ली के लाल किले के पास हुए आतंकवादी विस्फोट के पीड़ितों के लिए के5 की अगुआई में थिम्पू में एक प्रार्थना समारोह आयोजित किया गया और पीएम मोदी ने भी उसमें हिस्सा लिया।

अन्य महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम में मोदी ने भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड द्वारा निर्मित और भारत की वित्तीय मदद से तैयार 1,020 मेगावॉट की पुनात्सांगछु-2 जलविद्युत परियोजना का उद्घाटन किया और देश में नई ऊर्जा परियोजनाओं के लिए 4,000 करोड़ रुपये के ऋण देने की घोषणा की। चुखा, कुरिचु, ताला, मंगदेछु और पुनात्सांगछु-1 के साथ, जलविद्युत भारत-भूटान आर्थिक सहयोग के मुख्य स्तंभों में से एक रहा है।

मोदी की यात्रा के दौरान एकीकृत भुगतान प्रणाली के दूसरे चरण सहित कई अन्य समझौते संपन्न हुए। एकीकृत भुगतान प्रणाली के दूसरे चरण सहित कई अन्य समझौते भी हुए। भारत ने वर्तमान नरेश की महत्त्वाकांक्षी शहरी विकास परियोजना, गेलेफू माइंडफुलनेस सिटी, जो दक्षिणी भूटान में विकसित किया जा रहा एक विशेष प्रशासनिक क्षेत्र है, के लिए भी ठोस समर्थन दिया है। मोदी ने गेलेफू में निवेशकों और आगंतुकों की सुगम आवाजाही के लिए असम में एक आव्रजन जांच चौकी स्थापित करने की भी घोषणा की।

मोदी की यात्रा के दौरान प्रदर्शित की गई हार्ड और सॉफ्ट पावर की ठोस भू-राजनीतिक वजह हैं और ये भूटान की सीमाओं पर उभरती महाशक्ति से संबंधित हैं। भूटान और चीन के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं क्योंकि चीन, ऐतिहासिक रूप से तिब्बत का हिस्सा बताते हुए भूटानी भूभाग के एक बड़े हिस्से पर अपना दावा करता है।

दलाई लामा के उत्तराधिकार को लेकर चीन की चिंता ने तनाव को और बढ़ा दिया था। भूटान ने वर्ष 2023 से सीमा वार्ता पर सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर कर, दलाई लामा से दूरी बनाए रखते हुए, तथा तिब्बत के संदर्भ में औपनिवेशिक अर्थ को बदलते हुए चीन की चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया है।

इस वर्ष, चीनी नववर्ष का जश्न भूटान की राजधानी थिम्पू में मनाया गया। ये कदम भले ही भूटान की व्यवहारिकता से प्रेरित हों, लेकिन ये भारत के लिए सतर्कता बरतने का एक संकेत हैं। इस लिहाज से मोदी की यात्रा को एक आवश्यक उपाय के रूप में देखा जा सकता है।

First Published - November 14, 2025 | 10:14 PM IST

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