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चीन का जनसंख्या संकट: भारत के लिए सबक और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसका असर

चीन की स्थिति को देखकर पता चलता है कि हमारा अपना जनांकिकी लाभांश हमेशा बरकरार रहने वाला नहीं है। ऐसे में हालात का भरपूर फायदा उठाने की आवश्यकता है। बता रहे हैं आकाश प्रकाश

Last Updated- September 18, 2024 | 10:31 PM IST
China's population crisis: lessons for India and impact on the global economy चीन का जनसंख्या संकट: भारत के लिए सबक और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर

ज्यादातर लोगों को पता है कि चीन जनसंख्या की समस्या से जूझ रहा है। इसकी जड़ में एक संतान वाली नीति और बदलते सामाजिक सांस्कृतिक मानक हैं और देश के सामने बड़ी जनांकिकी चुनौतियां खड़ी हैं। परंतु मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि वे चुनौतियां कितनी गंभीर हैं, दशक भर में उनका क्या असर होगा और हर संशोधन के बाद आंकड़े खराब क्यों होते जा रहे हैं?

कुछ कठोर तथ्यों के साथ शुरुआत करते हैं: चीन में आबादी की वृद्धि ऋणात्मक हो चुकी है। 2022 और 2023 में उसकी आबादी में कमी आई। 2019 में इस बात पर सहमति थी कि चीन 2031 में 1.45 की उच्चतम आबादी के स्तर पर पहुंचेगा। बहरहाल, वह 2021 में ही 1.4 अरब के साथ आबादी के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया, यानी एक दशक पहले। हालांकि कुछ टीकाकारों ने 1.4 अरब के इस आंकड़े पर भी संदेह जताया है। उनका कहना है कि वास्तविक आबादी आधिकारिक आंकड़ों से करीब 10 करोड़ कम है।

चीन की प्रजनन दर एक है जो अब अमेरिका (1.6) और जापान (1.2) से भी कम है। क्या आपने कभी सोचा था कि चीन की प्रजनन दर जापान से भी कम होगी? एक संतान नीति को 2016 में त्यागने के बावजूद चीन की प्रजनन दर लगातार कम होती रही। 2016 के बाद जन्म दर में अचानक नाटकीय गिरावट आई। इससे यह संकेत मिलता है कि मसला केवल एक संतान वाली नीति का नहीं था।

चीन में कुछ ही महिलाएं शादी और बच्चे पैदा करना चाहती हैं और ज्यादातर करियर पर ध्यान देना चाहती हैं। शादी को लेकर बदलते सामाजिक मानकों के अलावा चीन में फिलहाल महिलाओं की तुलना में तीन करोड़ ज्यादा पुरुष हैं। इसकी वजह एक संतान वाली नीति और लैंगिक पूर्वग्रह है।

आज चीन की श्रम योग्य आबादी में करीब एक अरब लोग शामिल हैं। अब से आगे हर दशक इनमें करीब 10 करोड़ की कमी आएगी। उदाहरण से समझें तो ये 10 करोड़ की आबादी जर्मनी की कामगार आयु की आबादी की दोगुनी है। आगामी 20 साल में चीन में 20 करोड़ श्रमिक कम होंगे जबकि भारत में 17.5 करोड़ बढ़ेंगे।

चीन में अगले एक दशक में 60 से अधिक आयु तथा 15-59 की आयु के लोगों की का अनुपात यानी निर्भरता अनुपात 30 फीसदी से बढ़कर 60 फीसदी हो जाएगा। 2001 में यह अनुपात केवल 15 फीसदी था। 2031-32 तक चीन की आबादी में 60 से अधिक उम्र के लोग, अमेरिका से अधिक होंगे। 2036 तक चीन में उम्रदराजों का निर्भरता अनुपात अमेरिका से अधिक होगा। बढ़ता निर्भरता अनुपात गिरती उत्पादकता और बढ़ती राजकोषीय चुनौतियों का प्रतीक होता है।

संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के मुताबिक 2100 तक चीन की आबादी 46 फीसदी घटकर 77 करोड़ रह जाएगी। वहीं माध्य अनुमान के मुताबिक उस समय तक चीन की आबादी गिरकर मात्र 63 करोड़ रह जाएगी। यह भी तथ्य है कि यह आंकड़ा निरंतर गिर रहा है। उदाहरण के लिए 2010 में ऐसे ही अनुमान में कहा गया था कि 2100 तक चीन की श्रम योग्य आबादी वर्तमन अनुमान से 12.5 करोड़ अधिक होगी।

बिगड़ती जनांकिकी को आव्रजन संतुलित करता है। अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देश ऐसा करके ही अपने जनांकिकी संबंधी गिरावट को धीमा करेंगे। चीन की राजनीतिक व्यवस्था को देखते हुए वहां आव्रजन समस्या का हल नहीं हो सकता। सवाल यह है कि इन आंकड़ों का बाजार और वैश्विक अर्थव्यवस्था तथा भारत पर क्या दीर्घकालिक प्रभाव होगा?

एक स्पष्ट नतीजा तो यही है कि चीन उच्च वृद्धि के पथ पर वापस नहीं जाएगा। अगर श्रम योग्य आबादी में गिरावट आएगी तो आगे कैसे बढ़ेंगे? यह ध्यान रखना होगा कि चीन में सरकार ने निजी क्षेत्र से काफी हद तक मुंह मोड़ रखा है और वह अर्थव्यव्स्था के बड़े हिस्से में जबरदस्त हस्तक्षेप करती है। अगर निजी उद्यमी भयभीत हैं तो उत्पादकता कैसे बढ़ेगी?

उनकी गुणवत्तापूर्ण अधोसंरचना को देखते हुए उत्पादकता में तेजी लाना आसान नहीं है। अगर उत्पादकता में इजाफा नहीं हुआ तो चीन वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के संदर्भों में 2-3 फीसदी से तेज विकास कैसे हासिल करेगा? क्या घटती आबादी वाला कोई देश तीन फीसदी की दर से वृद्धि हासिल कर सका है?

दुनिया को घटती आबादी वाले देशों का अधिक अनुभव नहीं है, खासकर जब मामला चीन जैसे विशाल देश का हो। इसके अनचाहे परिणाम होंगे।

हम सभी जानते हैं कि अर्थव्यवस्था में नकदी बहुत अधिक है। हालांकि कर्ज अधिकतर घरेलू पूंजी में है। क्या धीमी वृद्धि, संभावित अपस्फीति और बुजुर्गों पर खर्च की सामाजिक लागत के साथ यह स्थिति बनी रह सकती है। नॉमिनल जीडीपी वृद्धि में कमी आने के साथ ही कर्ज चुकाने की क्षमता सवालों के घेरे में आ जाएगी। कर्ज के जाल में फंसने से बचने के लिए नॉमिनल जीडीपी वृद्धि का कर्ज की लागत से अधिक होना जरूरी है।

अगर वृद्धि घटकर 2-3 फीसदी रह जाती है तो चीन को विभिन्न क्षेत्रों की अधिशेष क्षमता का इस्तेमाल करना होगा और वह वैश्विक मुद्रास्फीति का एक कारक बनेगा। घरेलू स्तर पर अधिक बिक्री नहीं कर पाने के कारण चीन विदेशों में सामान भेजेगा और कीमतें कम करेगा। विभिन्न देशों को यह तय करना होगा कि कम लागत वाले आयात का लाभ उठाना है या अपने घरेलू उद्योगों को बचाने के लिए व्यापार गतिरोध का इस्तेमाल करना है। कई उत्पादों के मामले में चीन बढ़ती मांग के बीच मुख्य स्रोत नहीं रह जाएगा। बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत को और अधिक गंभीरता से लेना होगा क्योंकि यह बढ़ती मांग का मुख्य स्रोत होगा।

वैश्विक जिंस कीमतों पर पड़ने वाले असर के बारे में भी सोचना होगा। वैश्विक जिंस खपत में चीन का योगदान 50 फीसदी है। इसमें धीमापन आने पर भारत समेत कोई देश भरपाई नहीं कर पाएगा। ऐसे में जिंस कीमतों में गिरावट आने की संभावना है। यह भारत जैसे जिंस आयातक के लिए फायदे का सौदा होगा। हमारा अधोसंरचना विकास जारी है और जिंस कीमतों में कमी हमारे लिए मददगार होगी।

हम सभी चीन प्लस वन के अवसर को लेकर उत्साहित हैं लेकिन तथ्य यह है कि उसकी श्रम योग्य आबादी में सालाना 10 करोड़ की गिरावट के साथ चीन को विनिर्माण रोजगार भी कम करने होंगे। श्रमिक या तो उपलब्ध नहीं होंगे या बहुत महंगे होंगे। यह भारत के लिए बेहतरीन अवसर होगा।

मौजूदा सरकार ने भारत को विनिर्माण के लिए आकर्षक बनाने के लिए बहुत कुछ किया है। परंतु हमें कम कुशलता वाले विनिर्माण पर जोर देना होगा। अभी भी कपड़ा, खिलौने, फुटवियर और इलेक्ट्रॉनिक्स में भारत चीन का स्वाभाविक विकल्प नहीं बन सका है।

अगर चीन आज अपनी क्षमताओं के शिखर पर है और उसकी जनांकिकी संबंधी चुनौतियां सामने हैं तो इसका भूराजनीति के लिए क्या अर्थ है? क्या आसन्न गिरावट को देखते हुए वह अपने दीर्घकालिक क्षेत्रीय हितों को तत्काल बढ़ावा देगा?

यह स्पष्ट है कि चीन के तेज विकास के दिन बीत गए। भारत अब उभरते बाजारों में नया अग्रणी देश है। परंतु हमें इतने से आश्वस्त होने की जरूरत नहीं है। चीन का धीमापन हमारे लिए बड़ा अवसर है। हमें उसे दोनों हाथों से लपकना चाहिए और अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचाने का हरसंभव प्रयास करना चाहिए। हमें इस जनांकिकीय बदलाव के परिणामों पर विचार करते हुए इसका पूरा फायदा उठाने की योजना बनाकर काम करना चाहिए। भारत फिलहाल इस मामले में बेहतरीन स्थिति में है और हमें इसका फायदा उठाना चाहिए। जैसा कि चीन को देखकर पता चलता है, जनांकिकी का लाभ हमेशा नहीं रहेगा।

(लेखक अमांसा कैपिटल से जुड़े हैं)

First Published - September 18, 2024 | 10:31 PM IST

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