वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की इस बात के लिए सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने राजकोषीय अनुशासन की दृष्टि से मजबूत और लोकलुभावन घोषणाओं से मुक्त बजट प्रस्तुत किया। इससे जाहिर होता है कि सरकार 2024 के आम चुनाव में जीत को लेकर आश्वस्त है इसलिए उसे लोकलुभावन कदमों की कोई आवश्यकता नहीं महसूस हुई।
बजट राजकोषीय समेकन पर एक मजबूत संदेश देता है। वित्त वर्ष 24 के लिए राजकोषीय घाटे के 5.9 फीसदी के लक्ष्य को घटाकर 5.8 फीसदी कर दिया गया है और वित्त वर्ष 25 के लिए 5.1 फीसदी का राजकोषीय घाटा लक्ष्य तय किया गया है। यह बाजार के अनुमानों की तुलना में काफी बेहतर है।
वित्त वर्ष 24 में उन्होंने बजट में किए गए उल्लेख की तुलना में कम नॉमिनल जीडीपी वृद्धि के बावजूद बजट घाटे का लक्ष्य हासिल किया है। पश्चिमी देशों में से अधिकांश जहां अपने घाटे और ऋण के समीकरणों से जूझ रहे हैं, वहीं भारत का साफ कहना है कि हम राजकोषीय समेकन के साथ भी सात फीसदी की वृद्धि दर हासिल कर सकते हैं।
वित्त मंत्री ने घाटे के लक्ष्य को वित्त वर्ष 26 तक कम करके 4.5 फीसदी करने का लक्ष्य भी रखा है जबकि अधिकांश लोगों का मानना रहा है कि इसे पाना संभव नहीं होगा। चूंकि नीतिगत मोर्चे पर कहने को ज्यादा कुछ नहीं है इसलिए बजट के आंकड़ों की ही बात करते हैं। वित्त वर्ष 24 में करीब 9 फीसदी की नॉमिनल जीडीपी वृद्धि के साथ केंद्र सरकार का सकल कर राजस्व 12.5 फीसदी बढ़ा है।
कुल कर राजस्व 34.37 लाख करोड़ रुपये रहा जो शुरुआती लक्ष्य से 76,500 करोड़ रुपये अधिक था। गैर कर राजस्व भी अनुमान से 74,000 करोड़ रुपये अधिक था जबकि विनिवेश एक बार फिर केवल 30,000 करोड़ रुपये रहा जबकि इसके लिए 61,000 करोड़ रुपये का लक्ष्य तय किया गया था।
राजस्व में इजाफा इसलिए हुआ कि आय कर में 23 फीसदी की बढ़ोतरी हुई रिजर्व बैंक तथा सरकारी बैंकों से गैर कर प्राप्तियों के लाभांश के रूप में 63,500 करोड़ रुपये की राशि मिली। करीब 1.50 लाख करोड़ रुपये के इस संयुक्त राजस्व में आधी राशि राज्यों को बढ़ी हिस्सेदारी के रूप में दी गई जबकि शेष केंद्र सरकार द्वारा व्यय की गई।
वित्त वर्ष 24 में व्यय बजट के अनुरूप 45 लाख करोड़ रुपये के करीब रहा, हालांकि पूंजीगत व्यय में 50,000 करोड़ रुपये की कमी रही। वित्त वर्ष 25 के बजट के गणित को समझने के लिए यह परिदृश्य महत्त्वपूर्ण है। वर्ष के दौरान 10.5 फीसदी की उच्च नॉमिनल जीडीपी वृद्धि के अनुमान के साथ सकल कर राजस्व के 11.5 फीसदी बढ़ने का अनुमान है।
यहां काफी बचाव उपलब्ध है। कॉर्पोरेट कर के केवल 13 फीसदी की दर से विकसित होने की उम्मीद है। हालांकि बाजार कॉर्पोरेट जगत के लिए कम से कम 15-20 फीसदी वृद्धि की अपेक्षा कर रहा है। आय कर के भी 13 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है हालांकि वित्त वर्ष 24 में इसमें 23 फीसदी की दर से वृद्धि हुई।
उच्च आधार पर गैर कर राजस्व में केवल 6 फीसदी की दर से वृद्धि हुई, विनिवेश के 50,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है। सरकारी कंपनियों का बाजार पूंजीकरण बीते तीन साल में तीन गुना हो गया है और इस लिहाज से यह एक मामूली लक्ष्य है। व्यय के मोर्चे पर पूंजीगत व्यय के 17 फीसदी के दर से बढ़ने की बात कही गई है जिसके वित्त वर्ष 24 में खर्च 9.5 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 11.11 लाख करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है। कुल व्यय केवल 6 फीसदी की दर से बढ़ रहा है।
पूंजीगत व्यय तो बढ़ रहा है लेकिन राजस्व व्यय में कमी आ रही है। व्यय में होने वाले इजाफे की भरपाई कर वृद्धि से की जाती है। करीब 381,175 करोड़ रुपये की सब्सिडी में 32,000 करोड़ रुपये की कमी आएगी जो करीब 8 फीसदी है।
जीडीपी के 1.2 फीसदी के स्तर के साथ सब्सिडी कोविड के पहले के स्तर के अनुरूप है। व्यय का बेहतर घटकर राजस्व घाटे के जीडीपी के दो फीसदी तक आने में देखा जा सकता है। वित्त वर्ष 24 में यह 2.8 फीसदी था। व्यय की सीमाओं के बावजूद सरकार प्रधानमंत्री आवास योजना में तेजी लाई है और इसमें व्यय 54,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 80,671 करोड़ रुपये तक पहुंच रहा है यानी करीब 50 फीसदी का इजाफा। मनरेगा पर व्यय वित्त वर्ष 24 में 86,000 करोड़ रुपये के साथ बजट में उल्लिखित 60,000 करोड़ रुपये की राशि से काफी अधिक रहा।
सरकार के पूंजीगत व्यय की बात करें तो रेलवे और सड़क मंत्रालय दोनों ने व्यय में तेजी बनाए रखी है लेकिन अवशोषण क्षमता के पास पहुंचते-पहुंचते वृद्धि एक अंक में गिर रही है। रेलवे का पूंजीगत व्यय 2.52 लाख करोड़ रुपये है जो वित्त वर्ष 23 में 2.40 लाख करोड़ रुपये था। राजमार्गों पर होने वाला पूंजीगत व्यय वित्त वर्ष 23 के 2.65 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2.72 लाख करोड़ रुपये हो गया है।
रक्षा क्षेत्र का पूंजीगत व्यय भी 1.57 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 1.72 लाख करोड़ रुपये हो गया है। राज्यों को पूंजीगत व्यय के उद्देश्य से 1.3 लाख करोड़ रुपये का ब्याज रहित ऋण देना जारी रखा गया है। सकल घरेलू उत्पाद के 5.1 फीसदी के साथ राजकोषीय घाटा विशुद्ध रूप से कम है। यह वित्त वर्ष 24 के 17.34 लाख करोड़ रुपये से कम होकर 16.85 लाख करोड़ रुपये रह गया। वित्त वर्ष 24 में शुद्ध बाजार उधारी भी 11.80 करोड़ रुपये से कम होकर 11.75 लाख करोड़ रुपये रह गई।
एक ऐसे वर्ष में जब हमें सूचकांक समावेशन के कारण एफपीआई से वृद्धिशील बॉन्ड आवक में 15-20 अरब डॉलर की राशि प्राप्त होनी चाहिए, शुद्ध उधारी में कमी बॉन्ड प्रतिफल के लिए बेहतर संकेत है। कम बाजार उधारी को भी बढ़ाचढ़ाकर बताया जा सकता है क्योंकि अल्प बचत के अनुमानों को लेकर भी रुढ़िवादी रुख वाली रही है। यह बजट और इसके जरिये निवेशकों को राजकोषीय समेकन पर मिलने वाला आत्मविश्वास अर्थव्यवस्था में ब्याज दरों में कमी ला सकता है।
मजबूत आर्थिक वृद्धि और कम ब्याज दरों से निजी पूंजीगत व्यय बढ़ना चाहिए। सरकार पूंजीगत व्यय के अवशोषण क्षमता के चरम पर पहुंच रही है। ऐसे में हमें 20 फीसदी की वृद्धि दर देखने को नहीं मिलेगी। अब अगर हमें 7 फीसदी से अधिक की जीडीपी वृद्धि हासिल करनी है तो निजी क्षेत्र को अहम भूमिका निभानी होगी। यह बजट निजी पूंजीगत व्यय बढ़ाने की दृष्टि से अहम है।
किसी लोकलुभावन घोषणा का न होना भी सुखद रहा। पीएम-किसान भुगतान में भी इजाफा नहीं किया गया। कोई अहम नीतिगत घोषणा नहीं की गई। वे चुनाव के बाद पूर्ण बजट में की जाएंगी। इकलौती दिलचस्प बात थी 50 वर्ष के ब्याजरहित ऋण के साथ गहन प्रौद्योगिकी एवं शोध की फंडिंग के लिए एक लाख करोड़ रुपये का कोष बनाने की घोषणा। इससे मूल्य शृंखला को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी और हमारी कंपनियों और शैक्षणिक संस्थानों की प्रतिस्पर्धी क्षमता बेहतर बनेगी।
भारत के सरकारी ऋण की चिंता करने वालों और सरकार की राजकोषीय जवाबदेही के बारे में विचार करने वालों के लिए भी बजट एक सटीक प्रतिक्रिया थी। कोविड के समय में भारत ने दुनिया के अन्य देशों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया। उसने बेतुकी नकद सब्सिडी घोषित करने के बजाय आपूर्ति क्षेत्र की बाधाएं दूर करने पर ध्यान दिया। उसने राजकोषीय समेकन को भी तरजीह दी। इस बजट में शिकायत करने जैसा कुछ नहीं है।
यह गुणा-गणित में रूढ़िवादी, राजकोषीय समेकन में अपेक्षाओं से बेहतर और ब्याज दरों को कम करने वाला बजट है। यह वृद्धि के लिए मजबूत दृष्टिकोण तैयार करने वाला है और यह स्पष्ट करता है कि यह सरकार वृद्धि को गति देने के क्रम में ‘रेवड़ियों’ पर भरोसा नहीं करती।
(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)