देश के सबसे बड़े म्युचुअल फंड हाउस, SBI म्युचुअल फंड ने हाल ही में ‘मैग्नम’ ब्रांड के तहत स्पेशलाइज्ड इन्वेस्टमेंट फंड (SIF) की दुनिया में कदम रखा। इसी के साथ SIF सेगमेंट में प्रवेश करने वाला यह पांचवां फंड हाउस बन गया है। इससे पहले एडलवाइस, आईटीआई, मिरे असेट और क्वांट फंड हाउस को इस सेक्टर के लिए लाइसेंस मिल चुका है। एक्सिस और निप्पॉन जैसे अन्य फंड हाउस भी इस सेक्टर में कदम रखने की योजना की घोषणा कर चुके हैं। आखिर क्यों एसेट मैनेजमेंट कंपनियां (AMC) SIF की तरफ दौड़ लगा रही हैं। क्या म्युचुअल फंड इंडस्ट्री में आने वाला है यह अगला बड़ा बदलाव है। यह कैसे म्युचुअल फंड्स से अलग है। यह किस प्रकार के निवेशकों के लिए बेहतर साबित हो सकता है। आइए, इन सवालों के जवाब की पड़ताल करते है…
स्पेशलाइज्ड इन्वेस्टमेंट फंड (SIFs) म्युचुअल फंड फ्रेमवर्क के भीतर एक नया प्रोडक्ट सेगमेंट हैं, जो फंड मैनेजरों को निवेश स्ट्रैटेजी के मामले में ज्यादा छूट (flexibility) प्रदान करता है। इन फंडों का मिनिमम निवेश टिकट साइज ₹10 लाख है और इनका ढांचा इक्विटी, डेट या हाइब्रिड हो सकता है।
मार्केट एक्सपर्ट अजित गोस्वामी कहते हैं, “भारत में बढ़ती संपत्ति को देखते हुए एसेट मैनेजमेंट कंपनियां (AMCs) अब तेजी से स्पेशलाइज्ड इन्वेस्टमेंट फंड्स (SIFs) की तरफ बढ़ रही हैं। ये फंड म्युचुअल फंड्स से ज्यादा एडवांस होते हैं, लेकिन पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस (PMS) की तुलना में ज्यादा आसान और सुलभ होते हैं। इनका मकसद ऐसे निवेशकों को टारगेट करना है जो अमीर हैं और समझदारी से निवेश करना चाहते हैं। कंपनियों का यह कदम बिल्कुल सही समय पर उठाया गया है, क्योंकि देश में अब ऐसे निवेशकों की नई पीढ़ी सामने आ रही है।”
एसेट मैनेजमेंट कंपनियां (AMCs) स्पेशलाइज्ड इन्वेस्टमेंट फंड्स (SIFs) लॉन्च कर रही हैं। इसके पीछे कई अहम कारण हैं:
बाजार की खाई को पाटना: SIFs को पारंपरिक म्युचुअल फंड्स की तुलना में ज्यादा लचीलापन और एडवांस रणनीतियों के साथ डिजाइन किया गया है। वहीं PMS के मुकाबले इनमें निवेश की शुरुआती रकम कम है।
अमीर निवेशकों को टारगेट करना: ये फंड खास तौर पर हाई-नेट-वर्थ इंडिविजुअल्स (HNIs) के लिए बनाए गए हैं, जो ज्यादा और रिस्क-एडजस्टेड रिटर्न पाना चाहते हैं।
टैक्स में फायदा: SIFs को फिलहाल अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड (AIFs) की तुलना में ज्यादा टैक्स-फ्रेंडली माना जा रहा है।
पहले लॉन्च करने का फायदा: चूंकि यह एक नई कैटेगरी है, इसलिए कंपनियां शुरुआत में ही अपनी ब्रांडिंग और बाजार हिस्सेदारी मजबूत करने की होड़ में हैं।
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SIFs फंड मैनेजरों और निवेशकों को बढ़ते और गिरते, दोनों तरह के बाजारों से मुनाफा कमाने का मौका देते हैं। टाटा एएमसी के चीफ बिजनेस ऑफिसर आनंद वरदराजन कहते हैं, “अब तक म्युचुअल फंड प्रोडक्ट्स में केवल ऐसे गियर थे जो गाड़ी को सिर्फ आगे बढ़ा सकते थे, यानी वे केवल तेजी वाले बाजार के अनुकूल थे। लेकिन SIFs के साथ अब ‘रिवर्स गियर’ भी जुड़ गया है, जिससे फंड मैनेजर मंदी की संभावना पर भी दांव लगाकर फायदा कमा सकते हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि पारंपरिक म्युचुअल फंड लंबी अवधि के नजरिए से काम करते हैं, जहां बाजार को लेकर सोच मुख्य रूप से बुलिश या कम बुलिश होने तक ही सीमित रहती है। फंड मैनेजर अपने अनुमान के आधार पर किसी स्टॉक में ओवरवेट या अंडरवेट हो सकते हैं, लेकिन वे गिरते बाजार पर एक्टिव रूप से दांव नहीं लगा सकते और न ही उससे फायदा कमा सकते हैं। वहीं, SIF इस पूरी सोच को बदल सकते हैं। यह म्युचुअल फंड इंडस्ट्री के लिए एक बड़े बदलाव की शुरुआत हो सकती है।
बीपीएन फिनकैप के डायरेक्टर ए. के. निगम बताते हैं कि स्पेशलाइज्ड इन्वेस्टमेंट फंड्स (SIFs) के लिए आदर्श निवेशक आमतौर पर हाई-नेट-वर्थ इंडिविजुअल्स, संस्थागत निवेशक और एक्रेडिटेड निवेशकों को माना जा सकता हैं।
हाई-नेट-वर्थ इंडिविजुअल्स (HNIs): वे व्यक्ति निवेशक, जिनके पास ₹10-50 लाख के बीच निवेश योग्य अतिरिक्त पूंजी होती है और जो एडवांस निवेश रणनीतियों व अपने पोर्टफोलियो पर ज्यादा नियंत्रण की तलाश में होते हैं।
संस्थागत निवेशक: वे संस्थाएं जो मजबूत नियामकीय निगरानी के तहत डायवर्सिफाइड निवेश विकल्पों की तलाश में रहती हैं।
एक्रेडिटेड निवेशक: वे अनुभवी निवेशक जो जोखिम और रिटर्न को समझते हैं और प्रति स्ट्रैटेजी न्यूनतम ₹10 लाख का निवेश करने में सक्षम होते हैं।
जोखिम लेने की क्षमता: पारंपरिक म्युचुअल फंड्स की तुलना में अधिक उतार-चढ़ाव वाले स्पेशलाइज्ड इन्वेस्टमेंट फंड (SIFs) को समझते हुए मध्यम से उच्च जोखिम लेने की क्षमता।
निवेश की अवधि: लंबी अवधि का नजरिया, क्योंकि SIFs में निकासी की सीमाएं या लंबा लॉक-इन पीरियड हो सकता है।
वित्तीय लक्ष्य: डायवर्स पोर्टफोलियो और एडवांस निवेश रणनीतियों के जरिए ज्यादा रिटर्न हासिल करने की मंशा।
वरदराजन ने बताया कि SIF का सबसे बड़ा फायदा यह है कि SIF पर म्युचुअल फंड की तरह ही टैक्स लगता है—होल्डिंग पीरियड के आधार पर। इन फंड्स के भीतर होने वाले बदलाव का निवेशक पर कोई असर नहीं पड़ता। इसे म्युचुअल फंड्स के लिए UPI जैसा मोमेंट कहा जा सकता है।
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गोस्वामी कहते हैं, हालांकि SIFs के एक नई कैटेगरी होने के कारण अब तक कोई ठोस आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन इसके विकास की संभावनाएं बेहद व्यापक मानी जा रही हैं। इस आशावाद के पीछे कुछ प्रमुख कारण हैं: