Corporate SIP: अधिकतर कर्मचारियों के लिए आर्थिक सुरक्षा की शुरुआत और अंत सिर्फ कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) तक ही सीमित रहती है-हर महीने सैलरी से कटने वाला एक तय हिस्सा, जिसमें कंपनी भी योगदान देती है। यह चुपचाप रिटायरमेंट के लिए एक सुरक्षित फंड बनाता है। लेकिन EPF के पार एक और शक्तिशाली, पर अब तक कम पहचाना गया निवेश विकल्प है: कॉरपोरेट सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (Corporate SIP)।
जहां EPF एक सुनिश्चित आय का सुरक्षा कवच है, वहीं कॉरपोरेट SIP म्युचुअल फंड के जरिए लॉन्ग टर्म में संपत्ति बनाने का अवसर देता है — और हैरानी की बात यह है कि अधिकांश कर्मचारी इसके बारे में जानते ही नहीं। कई कंपनियां अब अपने कर्मचारियों को बेहतर फायदे देने के लिए इस विकल्प को अपना रही हैं। कॉरपोरेट SIP अब धीरे-धीरे एक ऐसा जरिया बन रहा है, जो नौकरी की स्थिरता (job stability) के साथ-साथ आर्थिक आजादी (financial freedom) की राह भी दिखाता है।
कॉरपोरेट एसआईपी (Corporate SIP) एक तरह की निवेश सुविधा है। इसमें कंपनी अपने कर्मचारियों के वेतन से हर महीने एक तय रकम काटकर म्युचुअल फंड में निवेश करती है।
मिरे असेट इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स (इंडिया) के हेड- प्रोडक्ट्स, बिजनेस स्ट्रैटेजी और इंटरनेशनल बिजनेस, वैभव शाह बताते हैं कि आमतौर पर कंपनी म्युचुअल फंड हाउसों के साथ एक समझौता करती है, जिसके तहत वह कर्मचारियों को कुछ चुनिंदा योजनाएं उपलब्ध कराती है। एक बार यह व्यवस्था स्थापित हो जाने के बाद, कर्मचारी अपनी पसंद की स्कीम चुन सकते हैं, SIP की राशि और अवधि तय कर सकते हैं, और कंपनी को अपने मासिक वेतन से तय राशि काटने की अनुमति दे सकते हैं।
इसके बाद नियोक्ता (कंपनी) हर महीने निर्धारित राशि वेतन से काटता है और कर्मचारी की ओर से म्युचुअल फंड कंपनी को भेज देता है। सभी निवेश कर्मचारी के नाम पर ही होते हैं और म्युचुअल फंड यूनिट सीधे कर्मचारी के फोलियो या डीमैट खाते में ट्रांसफर की जाती हैं। इस पूरी प्रक्रिया में कंपनी सिर्फ एक माध्यम की भूमिका निभाती है और निवेश पर उसका कोई स्वामित्व या नियंत्रण नहीं होता।
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कॉरपोरेट SIP न सिर्फ कर्मचारियों के लिए सुविधाजनक होता है, बल्कि एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMCs) के लिए भी यह कई स्तरों पर फायदेमंद साबित हो सकते हैं। उदाहरण के लिए…
स्थिर और लॉन्ग टर्म फंड फ्लो: कॉरपोरेट SIP के जरिए AMCs को नियमित अंतराल पर स्थिर निवेश मिलता है, जिससे उनकी एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) में स्थिरता आती है।
बड़ी संख्या में निवेशक आधार: एक कॉरपोरेट टाई-अप के जरिए AMCs एक साथ सैकड़ों या हजारों कर्मचारियों तक पहुंच बना सकते हैं, जिससे उनका निवेशक आधार तेजी से बढ़ता है।
कस्टमर रिटेंशन में बढ़त: चूंकि निवेश वेतन से सीधे कटता है और लंबी अवधि तक चलता है, इससे निवेशकों का संबंध म्युचुअल फंड स्कीम्स से लंबे समय तक बना रहता है।
डिस्ट्रीब्यूशन खर्च में कमी: कॉरपोरेट SIP में कंपनी ही माध्यम बनती है, जिससे AMCs को व्यक्तिगत निवेशकों तक पहुंचने के लिए मार्केटिंग या डिस्ट्रीब्यूशन पर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता।
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कॉरपोरेट SIP कर्मचारियों के लिए एक आसान, अनुशासित और लॉन्ग टर्म निवेश का जरिया है। इससे उन्हें कई फायदे हो सकते हैं। उदाहरण के लिए…
सुविधाजनक निवेश प्रक्रिया: निवेश राशि हर महीने वेतन से सीधे कटती है, जिससे मैनुअल भुगतान की जरूरत नहीं पड़ती और निवेश समय पर होता है।
अनुशासित बचत की आदत: हर महीने ऑटोमैटिक कटौती से नियमित निवेश की आदत बनती है, जो लंबे समय में बड़ा फंड तैयार करने में मदद करती है।
कम उम्र में निवेश की शुरुआत: कॉरपोरेट SIP से कर्मचारी अपने करियर की शुरुआत में ही निवेश शुरू कर सकते हैं, जिससे कंपाउंडिंग का अधिक लाभ मिल सकता है।
लॉन्ग टर्म लक्ष्यों के लिए मददगार: यह निवेश रिटायरमेंट प्लानिंग, बच्चों की पढ़ाई या घर खरीदने जैसे लॉन्ग टर्म फाइनेंशियल लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करता है।
चूंकि कॉरपोरेट SIP के तहत निवेशक आमतौर पर उन्हीं स्कीमों में निवेश करते हैं जो कंपनी और AMC के बीच तय की गई होती हैं। ऐसे में किसी खास स्कीम के लिए अधिक झुकाव या गलत तरीके से प्रोडक्ट बेचने (mis-selling) की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता है।
Moneyfront के को‑फाउंडर और सीईओ मोहित गांग कहते हैं, “यह बाजार में आम प्रचलन है, जहां बड़े कॉरपोरेट या राष्ट्रीय स्तर के डिस्ट्रीब्यूटर म्युचुअल फंड हाउसों से कुछ खास स्कीमों के लिए जुड़ते हैं। ये स्कीम आमतौर पर उनकी आंतरिक रिसर्च या चयन मानदंडों के आधार पर तय होती हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “अक्सर इसके बाद सेल्स टीम को उन्हीं चुनी हुई स्कीमों को बेचने या प्रमोट करने के लिए प्रेरित किया जाता है। इससे यह जोखिम पैदा होता है कि ग्राहक की जोखिम प्रोफाइल और सुझाए गए उत्पाद में असंगति हो सकती है। साथ ही, गलत तरीके से प्रोडक्ट बेचने (mis-selling) की आशंका भी रहती है, क्योंकि रिलेशनशिप मैनेजर्स (RMs) को कुछ स्कीमों पर ज्यादा इंसेंटिव दिया जाता है, इससे पक्षपात (bias) की संभावना बढ़ जाती है।”
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कॉरपोरेट SIP में निवेश कर्मचारी के नाम पर किया जाता है, लेकिन पेमेंट नियोक्ता (कंपनी) द्वारा किया जाता है। चूंकि यह एक थर्ड-पार्टी ट्रांजैक्शन माना जाता है, इसलिए म्युचुअल फंड हाउसों को सेबी और AMFI के नियमों के तहत थर्ड-पार्टी डिक्लेरेशन प्राप्त करना जरूरी होता है।
शाह बताते हैं कि यह डिक्लेरेशन यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि फंड का स्रोत वैध है और यह पुष्टि करता है कि निवेशक और भुगतान करने वाला व्यक्ति (कंपनी) दो अलग-अलग और पहचाने जा सकने वाले पक्ष हैं। यह डिक्लेरेशन निवेश के माध्यमों के दुरुपयोग और मनी लॉन्ड्रिंग जैसी गतिविधियों को रोकने में भी अहम भूमिका निभाता है।
इसमें आमतौर पर कर्मचारी और नियोक्ता के बीच संबंध का स्वरूप, नियोक्ता की ओर से कर्मचारी की ओर से भुगतान करने की सहमति, और दोनों पक्षों के पैन कार्ड व एड्रेस प्रूफ जैसे जरूरी दस्तावेज शामिल होते हैं।
BPN FINCAP के डायरेक्टर ए. के. निगम के मुताबिक, रेगुलर और कॉरपोरेट SIP के बीच मुख्य अंतर निवेश के तरीके और प्रक्रिया में होता है। रेगुलर SIP में निवेशक खुद निवेश करता है, जबकि कॉरपोरेट SIP में निवेश नियोक्ता (कंपनी) के माध्यम से होता है। कॉरपोरेट SIP में आमतौर पर एक तय राशि सैलरी से कटती है, जबकि रेगुलर SIP में निवेशक अपनी सहूलियत के हिसाब से राशि तय कर सकता है। इसलिए, यह तय करते समय कि कौन-सा विकल्प आपके लिए बेहतर है, आपको अपनी व्यक्तिगत निवेश जरूरतों, वित्तीय लक्ष्यों और कंपनी द्वारा दी जा रही सुविधाओं को ध्यान में रखना चाहिए।
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SIP की अवधि पूरी हो जाने के बाद निवेश पारंपरिक अर्थों में अपने आप मैच्योर (mature) नहीं होता। शाह बताते हैं कि SIP के दौरान खरीदी गई म्युचुअल फंड यूनिट्स कर्मचारी के फोलियो या डिमैट खाते में बनी रहती हैं। इन यूनिट्स पर पूरा नियंत्रण कर्मचारी के पास होता है और वह चाहे तो इन्हें होल्ड कर सकता है या फिर जब चाहे रिडीम कर सकता है, बशर्ते उस स्कीम पर लागू एग्जिट लोड या लॉक-इन पीरियड का पालन किया गया हो।
जब म्युचुअल फंड में रिडेम्पशन की रिक्वेस्ट दी जाती है, तो रिडेम्पशन की रकम सीधे कर्मचारी के नाम पर दर्ज बैंक खाते में ट्रांसफर की जाती है। इस प्रक्रिया में नियोक्ता (कंपनी) की कोई भूमिका नहीं होती।