भारत में डिजिटल भुगतान में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) की भूमिका महत्त्वपूर्ण बनी हुई है। 2025 की पहली छमाही में डिजिटल भुगतान की कुल संख्या में 85 प्रतिशत भुगतान यूपीआई से हुआ है। बहरहाल मूल्य के हिसाब से देखें तो यूपीआई की कुल भुगतान में हिस्सेदारी 9 प्रतिशत है, जिससे पता चलता है कि यूपीआई के माध्यम से छोटे लेनदेन ही हुए हैं। इस्तेमाल में आसान होने, दक्षता और हमेशा उपलब्धता के कारण यूपीआई भारत में व्यापक दौर पर खुदरा भुगतान में इस्तेमाल हो रहा है।
कैलेंडर वर्ष 2019 में यूपीआई से 1,079 करोड़ भुगतान हुआ था, जो 2024 में बढ़कर 17,221 करोड़ हो चुका है। इस माध्यम से लेनदेन का कुल मूल्य 2019 के 18.4 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2024 में 246.8 लाख करोड़ रुपये हो गया है। कैलेंडर वर्ष 2025 की पहली छमाही में यूपीआई से लेनदेन की संख्या 10,637 करोड़ और इसका मूल्य 143.3 लाख करोड़ रुपये रहा है।
बहरहाल रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (आरटीजीएस) व्यवस्था से भुगतान का मूल्य सबसे ज्यादा 69 प्रतिशत है, लेकिन संख्या के हिसाब से यह महज 0.1 प्रतिशत है। इसका इस्तेमाल अधिक धन के भुगतान में होता है। थोक भुगतान में इसे तरजीह दी जाती है, जिसमें न्यूनतम भुगतान की राशि 2 लाख रुपये है।
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 से 2024-25 के दौरान संख्या के हिसाब से आरटीजीएस से लेनदेन 13.70 प्रतिशत और मूल्य के हिसाब से लेनदेन 13.78 प्रतिशत बढ़ा है।
रिजर्व बैंक की भुगतान प्रणाली रिपोर्ट में कहा गया है, ‘आरटीजीएस से लेनदेन मुख्यतः ग्राहक लेनदेन हैं, जो मात्रा के लिहाज से 99 प्रतिशत से ज्यादा और मूल्य के लिहाज से 89 प्रतिशत है। ग्राहक लेनदेन में धन प्रेषण करने वाले बैंक के ग्राहकों द्वारा शुरू किए गए सभी लेनदेन शामिल हैं, जिनमें खुदरा ग्राहकों और कॉर्पोरेट दोनों के लेनदेन शामिल हैं।’