बीमा नियामक के सरेंडर मूल्य मानदंडों में बदलाव ग्राहकों के हित में है। इससे ग्राहकों में बीमा की पहुंच बढ़ेगी। बीमा के दिग्गजों ने बिजनेस स्टैंडर्ड के बीएफएसआई इनसाइट समिट में संकेत दिया कि इसके प्रभाव को विभिन्न तरीकों से कम कर रहे हैं।
जीवन बीमा पैनल में प्रमुख कंपनियों के मुख्य कार्याधिकारी ने ‘बढ़ते दायरे का मामला?’ विषय पर चर्चा की। हालांकि कंपनियों को सरेंडर चार्ज से दिक्कत थी। कंपनियां कमीशन के ढांचे में बदलाव कर इस समस्या से निपट पाई हैं। एचडीएफसी लाइफ इंश्योरेंस की प्रबंधन निदेशक (एमडी) व मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) विभा पडलकर ने कहा, ‘नियामक ग्राहक अनुकूल सोल्यूशन की ओर बढ़ रहा है। हालांकि सरेंडर चार्ज चिंता का मुख्य विषय है।
यह बीमा की पहुंच बढ़ाने की दिशा में लंबा रास्ता तय करेगा। भारत में सबसे ज्यादा पर्यावरण अनुकूल उत्पाद हैं और यह पारदर्शी भी हैं। कुल मिलाकर, हम 2047 तक सभी को बीमा मुहैया कराने की कोशिश कर रहे हैं। हमें तकलीफ है। हम दीर्घावधि के गारंटिड उत्पाद मुहैया करवा रहे हैं और तेजी से बढ़ती ब्याज दर के दौर में बीच में पॉलिसी खत्म करने से संपत्ति देनदारियों बेमेल होने की आशंका हो सकती है। मुझे लगता है कि यह अब इतिहास है।’
हम नहीं चाहते हैं कि ग्राहक बीच में छोड़ें। दरअसल यह दीर्घावधि के उत्पाद हैं और हम देखेंगे कि यह कैसे आगे बढ़ेंगे। ये वृद्धि से जुड़ी पीड़ाएं हैं। बीमा कंपनियां कमीशन के ढांचे के अलावा अन्य तरीकों से भी प्रभाव को कम कर रही हैं।
कोटक लाइफ इंश्योरेंस के सीईओ महेश बालासुब्रमण्यन ने कहा, ‘हमारे साझेदारों के कमीशन को स्थगित किया और ग्राहकों ने धन वापस लिया। इससे हमें कुछ कमीशन के ढांचे पर फिर से कार्य करना पड़ा। हमने अपने वितरण के तहत इसे किया है। हम इसका एक हिस्सा कारोबार के मार्जिन के तौर पर समाहित करने पर विचार कर रहे हैं। इसलिए हमें दिए जाने वाले ब्याज पर भी नजर डालनी होगी। अभी हममें से किसी ने भी इस आधार पर ब्याज दर में बदलाव नहीं किया है।
साल 2014 में उद्योग में सरेंडर वैल्यू बढ़ी थी और यह माना गया कि इसका कोई नकारात्मक असर नहीं होगा। बीमा नियामक ने जीवन बीमा में 1 अक्टूबर, 2024 से सरेंडर वैल्यू में बदलाव किया है। आईसीआईसीआई प्रू लाइफ के एमडी व सीईओ अनूप बागची ने कहा, सैद्धांतिक तौर पर नियमन से पहले पिछले दिसंबर में हम अपना प्रोडक्ट लेकर आए थे, जिन पर सरेंडर चार्ज शून्य था।
लेकिन ऐसा करने के लिए आपको कमीशन को लेवल पर लाना होगा और अग्रिम कमीशन का कोई अंश नहीं होना चाहिए। लोग सरेंडर करने के लिए पॉलिसी नहीं खरीदते। सरेंडर वैल्यू के मामले में या तो आपके पास नकदी की अस्थायी समस्या है या स्थायी। अगर समस्या अस्थायी है तो हम पॉलिसी के बदले कर्ज की पेशकश करते हैं, जो त्वरित और आसानी से हो जाता है। अगर आपकी नकदी की समस्या स्थायी है और आप सरेंडर के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं तो आप बहुत ज्यादा गंवाते नहीं हैं। हालांकि कुछ जुर्माना हो सकता है क्योंकि यह लंबी अवधि का प्रोडक्ट है।
पैनल का मानना है कि जो भी चीजें दीर्घावधि में ग्राहकों की दिलचस्पी को बनाए रखने पर केंद्रित हैं उसे भुनाए जाने की प्राथमिकता में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। पॉलिसी को भुनाए जाने की रणनीति को प्रोत्साहित करने का सुझाव नहीं दिया जाता है।
वैसे मामले में जहां स्थायी रूप से भुनाए जाने का विकल्प है, उससे जुड़ी लागत कम रखनी चाहिए। इसका हल करने के लिए कंपनियों को डेफर्ड कमीशन और क्लॉबैक कमीशन जैसी रणनीति अपनानी चाहिए। इसी तरह यूलिप बाजार भी कुछ वक्त में स्थिर होने की उम्मीद है। कुल मिलाकर उद्योग ग्राहकों के हितों की सुरक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है क्योंकि कोई भी चीज जो भरोसे को बढ़ा सकता है वह इस क्षेत्र के लिए लाभदायक है।