कर्नाटक अब अंतरिक्ष में उड़ान भरने के लिए तैयार है। इसने यह महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल करने के लिए मंगलवार को अपनी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी (स्पेसटेक) नीति 2025-30 की घोषणा की, जिसमें 2034 तक भारत के अंतरिक्ष बाजार में 50 प्रतिशत और वैश्विक स्तर पर 5 प्रतिशत पैठ बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
बेंगलूरु टेक समिट 2025 में जारी की गई यह नीति छात्रों और पेशेवरों के लिए प्रशिक्षण के माध्यम से क्षमता निर्माण पर केंद्रित है। महिलाओं पर विशेष जोर देने के साथ-साथ इस नीति का उद्देश्य निवेश आकर्षित करना, विश्व स्तरीय इन्फ्रा का निर्माण करना और अनुसंधान एवं नवाचार को बढ़ावा देने के लिए स्पेसटेक के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करना है।
मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने कार्यक्रम में कहा, ‘यह नीति केवल एक रोड मैप नहीं है, यह कर्नाटक को देश की अंतरिक्ष महत्त्वाकांक्षाओं के केंद्र और नवाचार, विनिर्माण और अनुसंधान के लिए वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करने की एक दृष्टि है।’
सरकार जो राज्य के अंतरिक्ष पारिस्थितिक तंत्र के लिए लगभग 3 अरब डॉलर का निवेश आकर्षित करने का लक्ष्य लेकर चल रही है, वह वहां स्थित कंपनियों में निवेश करने के लिए घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय कंपनियों, एमएसएमई, स्टार्टअप, निजी इक्विटी एवं वेंचर कैपिटल फर्मों को खुलकर प्रोत्साहन देगी।
यह मिशन कौशल विकास, निवेश प्रोत्साहन, इन्फ्रा विकास, नवाचार एवं सुविधा तथा गोद लेना और जागरूकता जैसे पांच स्तंभों में 35 पहलों के माध्यम से चलाया जाएगा। इस साल की शुरुआत में जारी फिक्की-ईवाई की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 2033 तक 44 अरब डॉलर तक पहुंच सकती है, जो 2022 में 8.4 अरब डॉलर थी। कर्नाटक इसमें अपनी हिस्सेदारी 22 अरब डॉलर तक बढ़ाना चाहता है।
इसी नीति को जारी कर कर्नाटक विशेष स्पेसटेक नीति वाले तेलंगाना, गुजरात और तमिलनाडु जैसे कई अन्य राज्यों की कतार में शामिल हो गया है। कर्नाटक की नीति की प्रमुख विशेषताओं में जागरूकता और कौशल कार्यक्रमों के माध्यम से युवाओं में वैज्ञानिक स्वभाव और अंतरिक्ष टेक्नॉलजीज के प्रति जिज्ञासा बढ़ाना शामिल है। इसके अलावा अनुसंधान और विकास तथा टेक्नॉलजी हस्तांतरण को बढ़ावा देने के लिए उत्कृष्टता केंद्र और नवाचार क्लस्टर स्थापित करना, स्टार्टअप, एमएसएमई और बड़े उद्यमों के लिए वित्तीय एवं गैर-वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना, आईपी निर्माण, वैश्विक बाजार पहुंच और गुणवत्ता प्रमाणन का समर्थन करना और ग्रामीण विकास, कृषि एवं सार्वजनिक सेवा वितरण में अंतरिक्ष अनुप्रयोग इस नीति के केंद्र में हैं।
यह नीति अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम कमर्शल अंतरिक्ष गतिविधियों, रक्षा अंतरिक्ष, इलेक्ट्रॉनिक्स और खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी सहित अंतरिक्ष अनुसंधान पर जोर देती है। राज्य सरकार का कहना है कि वह अंतरिक्ष पर्यटन, अंतरिक्ष आधारित विनिर्माण और अंतरिक्ष खनन जैसे उभरते क्षेत्रों सहित अंतरिक्ष संपत्तियों के विकास, परीक्षण, लॉन्च, संचालन और निगरानी से संबंधित उद्यमों को बढ़ावा देगी।
यह नीति उपग्रहों, लॉन्चिंग वाहनों और संबंधित घटकों के डिजाइन एवं निर्माण में लगे उद्यमों का भी समर्थन करेगी। प्रणोदन, मार्गदर्शन, नेविगेशन, पेलोड, एविओनिक्स, नियंत्रण प्रणाली, बिजली प्रणाली, थर्मल प्रणाली और संरचनात्मक तत्वों में स्वदेशी क्षमताओं का विकास करने वाली फर्मों को प्राथमिकता दी जाएगी। समर्थन लॉन्चपैड, टेलीमेट्री सुविधाओं और ट्रैकिंग स्टेशनों के निर्माण के लिए व्यापक ढांचा तैयार किया जाएगा। डाउनस्ट्रीम पक्ष में पृथ्वी अवलोकन, सैटेलाइट कम्युनिकेशंस, पोजिशनिंग, नेविगेशन और टाइमिंग पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।