वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर तिमाही) के दौरान शहरी बेरोजगारी की दर घटकर 6.4 प्रतिशत पर आ गई है। यह 2017 से संकलित किए जा रहे आंकड़ों में सबसे कम बेरोजगारी है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा सोमवार को शहरी भारत के लिए जारी तिमाही आवर्ती श्रम बल सर्वे (पीएलएफएस) के आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं की बेरोजगारी दर में तेज गिरावट के कारण ऐसा हुआ है।
वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में बेरोजगारी दर घटकर 6.6 प्रतिशत पर पहुंची थी, जो वित्त वर्ष 2024 की चौथी तिमाही में 4 तिमाहियों के उच्च स्तर 6.7 प्रतिशत पर थी। महिलाओं के लिए चालू साप्ताहिक स्थिति (सीडब्ल्यूएस) के तहत समग्र बेरोजगारी दर इस तिमाही के दौरान 8.4 प्रतिशत रही है, जो इसके पहले की तिमाही के 9 प्रतिशत से कम है। सीडब्ल्यूएस में गतिविधि की स्थिति सर्वेक्षण की तारीख से पहले के पिछले 7 दिनों की अवधि के आधार पर निर्धारित की जाती है।
वहीं पुरुषों की बेरोजगारी दर घटकर वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में 5.7 प्रतिशत पर आ गई है, जो वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में 5.8 प्रतिशत थी। सर्वे में आगे कहा गया है कि 15 से 29 साल के उम्र के युवाओं की शहरी बेरोजगारी दर दूसरी तिमाही में घटकर 15.9 प्रतिशत रह गई है, जो इसके पहले की तिमाही में 16.8 प्रतिशत थी।
ये आंकड़े महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि इस वर्ग में शामिल लोग सामान्यता श्रम बाजार में पहली बार आए होते हैं और इससे कारोबार में तेजी का पता चलता है। इस तिमाही के दौरान युवाओं की बेरोजगारी दर की तुलना में युवतियों की बेरोजगारी दर तेजी से गिरी है।
दूसरी तिमाही में श्रम बल हिस्सेदारी दर (एलएफपीआर) सुधरकर 50.8 पर आ गई है, जो पहली तिमाही में 50.1 थी। इसमें शहरों में रहने वाले ऐसे लोग शामिल होते हैं, जो नौकरी कर रहे होते हैं, या रोजगार की तलाश में होते हैं। पहली तिमाही की तुलना में दूसरी तिमाही में पुरुष और महिलाओं दोनों में काम को लेकर ज्यादा उत्साह रहा है, वहीं पुरुषों के लिए एलएफपीआर (75 प्रतिशत), महिलाओं के एलएफपीआर (25.5 प्रतिशत) से अधिक बनी हुई है।
रोजगार की व्यापक स्थिति के हिसाब से सर्वे से पता चलता है कि दूसरी तिमाही में पहली तिमाही की तुलना में स्वरोजगार वाले पुरुषों (39.8 प्रतिशत) की हिस्सेदारी घटी है, वहीं स्वरोजगार करने वाली महिलाओं की हिस्सेदारी (40.3 प्रतिशत) बढ़ी है।
बहरहाल वेतनभोगी कर्मचारियों की हिस्सेदारी बढ़कर 49.4 प्रतिशत हो गई है, जबकि अस्थायी कर्मचारियों की संख्या इस तिमाही के दौरान घटकर 10.7 प्रतिशत रही है। वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही के दौरान महिला वेतनभोगी कर्मचारियों की हिस्सेदारी घटकर 53.8 प्रतिशत पर आ गई है, जबकि पुरुष वेतनभोगी कर्मचारियों की हिस्सेदारी बढ़कर बढ़कर 47.9 प्रतिशत हो गई है।
श्रम अर्थशास्त्री सामान्यतया स्वरोजगार या अस्थायी कर्मचारियों की तुलना में वेतन मिलने वाले रोजगार को सामान्यतया बेहतर रोजगार मानते हैं। वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में सेवा क्षेत्र के कर्मचारियों की हिस्सेदारी मामूली घटकर 62.3 प्रतिशत रह गई है, जो इसके पहले की तिमाही में 62.4 प्रतिशत थी।
हालांकि द्वितीयक (विनिर्माण) क्षेत्र के कर्मचारियों की संख्या भी दूसरी तिमाही में बढ़कर 32.3 प्रतिशत हो गई है, जो वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में 32.1 प्रतिशत थी। श्रम बल के आंकड़ों की नियमित अंतराल पर उपलब्धता के महत्त्व को देखते हुए, एनएसओ ने अप्रैल 2017 में शहरी क्षेत्रों के लिए 3 महीने के अंतराल पर श्रम बल भागीदारी गतिशीलता को मापने के लिए भारत का पहला कंप्यूटर-आधारित सर्वेक्षण शुरू किया।