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उभरते बाजारों से पिछड़ रहा भारत, विदेशी निवेशकों की नजरों में भारत की चमक फीकी

एचएसबीसी के एक नोट से पता चलता है कि इन बाजारों के पोर्टफोलियो में भारत पर अब सबसे कम दांव है। ट्रैक किए गए फंडों में से केवल एक-चौथाई ही अब भी भारत पर दांव लगा रहे हैं

Last Updated- November 09, 2025 | 9:35 PM IST
Stock Market

दुनिया भर के उभरते बाजारों (जीईएम) के निवेशकों के बीच भारत सबसे कम पसंदीदा बाजार बन गया है। एचएसबीसी के एक नोट से पता चलता है कि इन बाजारों के पोर्टफोलियो में भारत पर अब सबसे कम दांव है। ट्रैक किए गए फंडों में से केवल एक-चौथाई ही अब भी भारत पर दांव लगा रहे हैं। यह तब हुआ है जब एमएससीआई इमर्जिंग मार्केट्स (ईएम) इंडेक्स में भारत का न्यूट्रल वेट एक साल के खराब प्रदर्शन के कारण दो साल के निचले स्तर 15.25 फीसदी पर आ गया है।

अंडरवेट कॉल का मतलब है कि फंड मैनेजर अपने ईएम पोर्टफोलियो में भारत को बेंचमार्क (न्यूट्रल वेट) 15.25 फीसदी से कम आवंटित कर रहे हैं। करीब एक साल पहले उभरते बाजारों में भारत निवेशकों की पहली पसंद था। पिछले 12-13 महीनों में 30 अरब डॉलर (करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा) की विदेशी बिकवाली के बाद भारत इस रैंकिंग में नीचे आया है।

एचएसबीसी में इक्विटी रणनीति प्रमुख (एशिया-प्रशांत) हेरल्ड वैन डेर लिंडे ने कहा, विदेशी फंडों ने भारत में अपने निवेश को काफी हद तक कम कर दिया है। इस बदलाव का एक बड़ा कारण यह है कि निवेशक कोरियाई और ताइवानी तकनीकी शेयरों और चीनी इंटरनेट कंपनियों के जरिये एशिया में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) से जुड़े शेयरों में निवेश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि एआई सौदों पर अब हर कोई दांव लगा रहा है। इस कारण कई निवेशक इसे लेकर असहज हैं।

लिंडे ने कहा, हम भारत को एआई के लिए हेज के लिहाज से उपयोगी दांव के रूप में देखते हैं। साथ ही, एआई के प्रति उन्माद से असहज लोगों के लिए विविधीकरण के स्रोत के रूप में मानते हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले महीनों में भारत में विदेशी निवेश बढ़ने की संभावना है।

यह रुझान शायद पहले ही शुरू हो चुका है। अक्टूबर में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारतीय शेयरों में शुद्ध खरीदार रहे और उन्होंने 11,050 करोड़ रुपये का निवेश किया। कुछ बाजार विश्लेषकों का कहना है कि यह बदलाव चीन में बिकवाली को दर्शाता है।
बैंक के मुख्य एशिया इक्विटी रणनीतिकार ने कहा, भारतीय और चीनी शेयरों को अक्सर एक दूसरे को काउंटर बैलेंस के रूप में देखा जाता है। अगर एक ऊपर जाता है तो दूसरा गिरता है। कुल बात यह है कि विदेशी निवेशक चीन में तेजी लाने के लिए भारतीय शेयर बेचकर धन जुटाते हैं और भारत में तेजी के लिए चीन में बिकवाली करते हैं।

लेकिन इस बार मामला अलग हो सकता है। उन्होंने कहा, हमारा मानना ​​है कि भारत और मुख्यभूमि चीन दोनों मिलकर अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। चीन में मौजूदा तेजी मुख्य रूप से स्थानीय निवेशकों के कारण है, जिसमें विदेशी भागीदारी बहुत कम है। चीनी परिवारों के पास भारी नकदी जमा है और वे शेयरों में उनका कम निवेश है। हमें उम्मीद है कि वे सक्रिय खरीदार बने रहेंगे।

First Published - November 9, 2025 | 9:35 PM IST

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