ब्रसेल्स स्थित थिंक टैंक ब्रूगेल के निदेशक जेरोनिम जेटल्मेयर ने रुचिका चित्रवंशी और असित रंजन मिश्र के साथ बातचीत में कहा कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था को बहुत अधिक बंद करके अपने विकास की गति को सीमित कर रहा है और तेजी से विकास के लिए उसे अधिक व्यापार की अनुमति देनी चाहिए। प्रमुख अंश…
ट्रंप प्रशासन के तहत अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था चरमरा रही है। अंतरराष्ट्रीय नियम बनने का भविष्य क्या है?
यह अच्छा नहीं दिख रहा है। मध्यम मार्ग यह हो सकता है कि अमेरिका व कुछ अन्य देशों को छोड़कर हम बहुपक्षवाद या बहुपक्षता बनाए रखने में कामयाब हों। विश्व व्यापार संगठन अस्तित्व में रहकर उस अर्थ में काम कर सकता है। भले ही अमेरका के साथ कुछ खास देशों के साथ संबंध के मामले में एमएफएन का उल्लंघन हो रहा हो और इस तरह के कमज़ोर विश्व व्यापार संगठन की सफलता का मानक यह होगा कि यह मूल रूप सेअमेरिका से इतर देशों के समूह के भीतर व्यापार युद्धों को रोकता है। ऐसे में ट्रंप के साथ कुछ व्यापार युद्ध हो सकता है, लेकिन शेष दुनिया से अनिवार्य रूप से व्यापार युद्धों के संबंध में शांतिपूर्ण है और शायद कुछ मध्यस्थता और विवाद निपटान तंत्र अभी भी काम करेंगे।
प्रस्तावित बहुपक्षीय विकास बैंक सुधार की दिशा में कुछ खास नहीं हुआ। क्या विचार हैं?
इसका समाधान होना चाहिए। यह शर्मनाक है कि भारत का हिस्सा कुछ यूरोपीय देशों की तुलना में भी कम है, जो आकार में बहुत छोटे हैं। इस समय यूरोप में ऐसा करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति बढ़ी है, क्योंकि हमें भारत की अधिक जरूरत है। इसमें बड़ी बाधा चीन और अमेरिका के बीच प्रतिद्वंद्विता है। आप चीन को भी बड़ा हिस्सा दिए बगैर यह अच्छे तरीके से नहीं कर सकते।
कई देशों को उम्मीद थी कि यूरोपीय संघ शुल्क वार्ताओं पर अमेरिका के आगे झुकने से पहले विरोध करेगा। ऐसा नहीं हुआ?
ऐसा इसलिए है क्योंकि यूक्रेन के कारण हम अमेरिकी सेना पर बहुत निर्भर हैं। यूरोपीय संघ प्रभावी रूप से रूस के खिलाफ एक हाइब्रिड युद्ध में है। रूस को लेकर हम बहुत बड़ी समस्या में हैं और ऐसे में हमें अभी अमेरिका की आवश्यकता है। यदि हम सैन्य रूप से मजबूत होते, तो हमने निश्चित रूप से इन वार्ताओं में और भी सख्त रुख अपनाया होता।
ट्रंप भी यूरोप पर बहुत दबाव डाल रहे हैं कि भारत और चीन जैसे देशों पर द्वितीयक प्रतिबंध लगाए। ऐसा होगा?
मैं इसके पक्ष में नहीं हूं। भारत पर द्वितीयक प्रतिबंध लगाना मुझे राजनीतिक या आर्थिक रूप से उचित नहीं लगता।