भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कुछ राज्यों के राजकोषीय प्रबंधन को लेकर चिंता जताई है। रिजर्व बैंक ने कहा कि वित्त वर्ष 2023-24 में उनका घाटा सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के 4 प्रतिशत से ऊपर चला गया है। इसका राष्ट्रीय औसत 3.1 प्रतिशत है।
रिजर्व बैंक ने सोमवार को एक रिपोर्ट में कहा है कि इन राज्यों का कर्ज उनके जीएसडीपी के 35 प्रतिशत से ज्यादा हो गया है, जबकि राष्ट्रीय औसत 27.6 प्रतिशत है।
गैर प्राथमिकता वाली वस्तुओं और सेवाओं, सब्सिडी, ट्रांसफर पर कोई अतिरिक्त आवंटन करने से इन राज्यों की राजकोषीय स्थिति खराब हो सकती है और इससे पिछले 2 साल में हासिल राजकोषीय समेकन बाधित हो सकता है। यह रिपोर्ट साल में एक बार जारी होती है।
राजकोषीय सततता की मध्यावधि चुनौतियों का उल्लेख करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ राज्यों में पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) लागू करने से जोखिम बढ़ा है। रिजर्व बैंक ने चेतावनी दी है कि इस बदलाव से राज्य के वित्त पर उल्लेखनीय बोझ पड़ सकता है, जिससे वृद्धि केंद्रित पूंजीगत व्यय की उनकी क्षमता पर असर पड़ सकता है।
केंद्रीय बैंक के अनुमान में कहा गया है कि अगर सभी राज्य राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) की जगह ओपीएस लागू करते हैं तो कुल मिलाकर इसका राजकोषीय बोझ एनपीएस की तुलना में 4.5 गुना ज्यादा हो जाएगा और इससे 2060 तक जीडीपी पर सालाना 0.9 प्रतिशत अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। अगर ओपीएस लागू किया जाता है तो पुराने ओपीएस पर सेवानिवृत्त् हुए लोगों की पेंशन देनदारी प्रभावित होगी और यह 2060 तक के लिए बढ़ेगा।
इससे पिछले सुधारों को तगड़ा झटका लगेगा और इससे आगामी पीढ़ी के हितों से समझौता करना पड़ेगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्तीय क्षमता बढ़ाने के लिए रणनीति बनाने की जरूरत है। इसमें सामाजिक, आर्थिक और सामान्य सेवाओं की कुशल और बाधा रहित डिलिवरी पर जोर दिया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक वस्तु एवं सेवा कर लागू किए जाने से अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने में मदद मिली है और अतिरिक्त बोझ डाले बगैर कर का आधार बढ़ा है।
रिजर्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कर प्रशासन दुरुस्त करने, कर चोरी रोकने के लिएआंकड़ों के विश्लेषन, राज्यों के राजस्व विभागों को संस्थागत मजबूती देने की सिफारिश की है।