मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने गुरुवार को कार्बन सीमा समायोजन व्यवस्था (CBAM) यानी यूरोपीय देशों में लगने वाले कार्बन कर को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने विकसित देशों से सकारात्मक सोच अपनाने की अपील की है, ताकि विकसित देशों में आर्थिक गतिविधियां सुनिश्चित करना विकासशील देशों के लिए घाटे का सौदा न हो।
सीईए ने कहा, ‘अगर विकासशील देश, विकसित देशों के लोगों का जीवन और संपत्ति सुनिश्चित करते हैं तो उन्हें उसके बदले क्या मिल रहा है? विकसित देश उसके लिए किस तरह के प्रीमियम के भुगतान को इच्छुक हैं? निश्चित रूप से यह सीबीएएम नहीं हो सकता है।’
कार्बन सीमा समायोजन व्यवस्था का मकसद यूरोपीय संघ में प्रवेश करने वाले लोहा, स्टील, सीमेंट, उर्वरक और एल्यूमीनियम जैसे ऊर्जा-गहन उत्पादों पर कार्बन टैरिफ या टैक्स लगाना है।
कार्बन कर 1 जनवरी 2026 से प्रभावी होगा। परीक्षण की अवधि 1 अक्टूबर 2023 से शुरू हुई है। इस दौरान कार्बन की बहुलता वाले स्टील, सीमेंट, उर्वरक, एल्युमीनियम और हाइड्रोकार्बन उत्पाद जैसे सात क्षेत्रों को ईयू के साथ उत्सर्जन के आंकड़े साझा करने होंगे।
आर्थिक मामलों के विभाग और एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी)की ओर से आयोजित एक क्षेत्रीय कार्यशाला को संबोधित करते हुए सीईए ने यह बात कही।
नागेश्वरन ने जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन से भूराजनीतिक जोखिम है, लेकिन जो देश अक्षय ऊर्जा की ओर बढ़ रहे हैं, वे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता के दौर की तुलना में ज्यादा असुरक्षित हो रहे हैं, खासकर जब दुर्लभ और अहम खनिज की आपूर्ति की बात आती है।
उन्होंने कहा, ‘आपूर्ति के कुछ स्रोतों पर निर्भरता जोखिम की बात है, जिसे बीमा के दायरे में लाने की जरूरत है। अगर ऐसा कोई जोखिम आता है तो क्या बीमा उद्योग इसके लिए तैयार है? या यह कुछ ऐसा है, जिसे सिर्फ अंतरराष्ट्रीय सहयोग की व्यवस्था से ही किया जा सकता है।’
सीईए ने कहा कि वित्तीय संस्थानों को ऊर्जा के बदलाव की स्थिति में फंसी संपत्तियों के जोखिम से बचाव की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘बैंकों का बीमा कैसे करेंगे? अगर संपत्तियों को बैंक बट्टे खाते में डालते हैं तो उन्हें और पूंजी की जरूरत पड़ सकती है। आकस्मिक पूंजी लाने की जरूरत होगी।’
नागेश्वरन ने विश्व के विकसित देशों में गलत नीतियों के कारण डर पैदा होने और उसके कारण विकासशील देशों में उत्पादन और रोजगार पर पड़ने वाले असर का बीमा कराने की जरूरत का भी उल्लेख किया।
उन्होंने कहा, ‘बीमा घाटे के खिलाफ एक बचाव है। हम आज भले ही सभी उत्सर्जन कम कर दें, लेकिन पहले हो चुके उत्सर्जन के प्रभाव मौजूद रहेंगे। यह हमारे साथ कई दशकों से है। ऐसे में विकासशील देशों को इसे निपटने के लिए कदम उठाने होंगे, जिससे उत्पादन और रोजगार को नुकसान होगा।’ सीईए ने वित्तीय सहायता या मुआवजा उपलब्ध कराने को लेकर विकसित देशों से एक व्यवस्था बनाने की अपील की। उन्होंने कहा, ‘यह एक तरह का बीमा है, जो पिछले कुछ साल में नहीं हो पाया है।’
नागेश्वरन ने यह भी कहा कि वैश्विक तापमान में वृद्धि का मसला केवल विनाश और निराशा से जुड़ा नहीं है। उच्च तापमान से जुड़ी मौतों में इससे वृद्धि हो सकती है, वहीं ठंड से जुड़ी मौतों में गिरावट आएगी। उन्होंने कहा, ‘अनुकूलन बीमा का सबसे अच्छा स्वरूप है। इसके लिए नीतिगत ढांचे में अनुकूलन और लचीलेपन पर उतना ही ध्यान देने की जरूरत है, जितना कि अभी सिर्फ उत्सर्जन पर ध्यान दिया जा रहा है।’