भारत के कुल औपचारिक विनिर्माण में आधे से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों से आता है। दरअसल, शहरों से गांवों की ओर निरंतर बदलाव हो रहा है।
व्यापक रूप से कुल विनिर्माण में फैक्टरी में विनिर्मित उत्पाद और उसके उप उत्पाद आते हैं। इसमें दूसरों के लिए विनिर्माण के माध्यम से अर्जित धन के साथ-साथ किराए या बिजली की बिक्री जैसे गैर-औद्योगिक स्रोतों से अर्जित धन भी शामिल है। वर्ष 2018-19 में कुल विनिर्माण उत्पादन में शहरी हिस्सेदारी 50.5 प्रतिशत थी। बाद के महामारी वर्षों में यह आधे से भी कम हो गया। उद्योगों का नवीनतम सालाना सर्वे 2023-24 दर्शाता है कि शहरों का योगदान 49.5 प्रतिशत था। शहरों का योगदान लगातार चौथे वर्ष आधे से कम रहा।
हालांकि शहरों का उत्पादन वर्ष 2021-22 के 48.7 प्रतिशत से कुछ अधिक रहा। कई अन्य संकेतकों ने ग्रामीण क्षेत्रों में बदलाव दर्शाया है। कारखानों, विनिर्माण में लगे व्यक्तियों, श्रमिकों को मजदूरी और शुद्ध मूल्य संवर्धन का शहरी हिस्सा 2018-19 की तुलना में 2023-24 में कम है। शहरीकरण को आमतौर पर उच्च विकास की ओर ले जाता हुआ देखा जाता है।
दरअसल गतिविधियों का अत्यधिक होना श्रम बाजारों और कौशलों के बेहतर मिलान, लागतों के बंटवारे और दूसरों से सीखने के अवसरों की अनुमति देता है। यह 2016 में एशियाई विकास बैंक संस्थान के अध्ययन शहरीकरण की लागत और लाभ : भारतीय मामला में भी उजागर हुआ है। इस अध्ययन के लेखक कला सीताराम श्रीधर हैं।