भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के अध्यक्ष आर दिनेश का कहना है कि क्षमता के अधिकतम उपयोग और अर्थव्यवस्था में बदलाव को देखते हुए निजी क्षेत्र के लिए निवेश अनिवार्य है। रुचिका चित्रवंशी से बातचीत में उन्होंने कहा कि अगली सरकार को भूमि, श्रम और कृषि सुधार पर ध्यान देने की जरूरत है। प्रमुख अंश…
क्या आपको लगता है कि सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय पर जोर दने के बाद निजी क्षेत्र बड़े निवेश के लिए तैयार है?
निजी क्षेत्र की कुल पूंजीगत व्यय में हिस्सेदारी 36 से 37 फीसदी रही है और यह वित्त वर्ष 2024 में भी रहने की संभावना है। ऐसा नहीं कि निजी पूंजीगत व्यय नहीं हो रहा है। सभी क्षेत्र को मिलाकर कराए गए हमारे सीआईआई सर्वे से पता चलता है कि क्षमता उपयोग 75 से 95 फीसदी के बीच है। 75 फीसदी क्षमता उपयोग पर लोग निवेश पर विचार शुरू कर देते हैं और 95 फीसदी पर उनके लिए निवेश करना अनिवार्य बन जाता है।
सीमेंट और स्टील क्षेत्र में यह पहले ही शुरू हो चुका है। नए निवेश हो रहे हैं। कुल मिलाकर वैश्विक आर्थिक स्थिति बहुत उतार-चढ़ाव वाली है। इस समय भारत के उद्योग के पास संतुलन और लचीलेपन के साथ उच्च क्षमता उपयोग की ताकत है। ऐसे में उनके लिए निवेश करना अनिवार्य है। यह बहुत ज्यादा बढ़ता नहीं दिख रहा है क्योंकि सरकार ने बुनियादी ढांचे में निवेश जारी रखा है।
क्या उद्योग जगत में उत्साह वापस आ गया है?
भारतीय उद्योग भविष्य और अवसरों को लेकर आशावादी है। इसे मान लिया गया है। हमें बेहतर वृद्धि दिख रही है। विश्वास सूचकांक इस तिमाही में बढ़कर 68 फीसदी हो गया है, जो पिछली तिमाही में 67 फीसदी था। यह सही राह पर आगे बढ़ रहा है।
अगली सरकार का शीर्ष एजेंडा क्या होना चाहिए?
सबसे पहले तो हम चाहते हैं कि वृद्धि के साथ समावेशी विकास जारी रहे। हमें लगता है कि ऐसा तीन-चार तरीकों से हो सकता है, जिसमें भूमि, श्रम और कुछ हर तक कृषि क्षेत्र में व्यापक सुधार शामिल है। यह केंद्र सरकार के स्तर पर हुआ है और अब राज्यों के स्तर पर इस पर सहमति बनानी है। हमारे हिसाब से जीएसटी की तरह का ढांचा इसमें तेजी लाने में मददगार हो सकता है।
दूसरे, एमएसएमई के हिसाब से देखें तो इन्हें धन मुहैया कराने के लिए इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम बेहतर योजना थी। अगर आप रेटिंग के साथ इस कारोबार को औपचारिक बनाना चाहते हैं तो फिनटेक और बैंक साथ आ सकते हैं। इससे ग्रीन और डिजिटल ट्रांजैक्शन, कौशल में सहयोग आदि के लिए कोष बनाया जा सकता है। तीसरा मसला नौकरियों के सृजन का है। लॉजिस्टिक्स और पर्यटन क्षेत्र बेहतर रोजगार सृजन हो सकता है और इन क्षेत्रों को मदद करने से भारत में नौकरियों के सृजन में मदद मिल सकती है।
पिछले 5 साल में कुछ बड़ी चुनौतियां क्या रही हैं?
आर्थिक गतिविधियों के हिसाब से हमने बहुत कठिन दौर देखा है। कोविड महामारी आई। लेकिन इनका प्रबंधन ताकत रही है। हकीकत यह है कि भारत ने इनसे बेहतरीन तरीके से निपटने में सफलता पाई है और ताकतवर बनकर उभरा है। कारोबार सुगमता, कारोबार की लागत जैसे प्रमुख क्षेत्रों में सरकार ने अनुपालन और कई उल्लंघनों को गैर अपराध बनाने के हिसाब से बहुत कुछ किया है। लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना है।
कारोबार की लागत पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया है। यह भारत के लिए एक बहुत बड़ी कमजोर कड़ी थी। हमने भारत को विनिर्माण और यहां तक कि सेवाओं का प्रतिस्पर्धी केंद्र बनाने की दिशा में उल्लेखनीय सुधार किया है।
विकसित भारत 2047 के लक्ष्य में भारत के उद्योग जगत की भूमिका को आप किस रूप में देखते हैं और क्या इसके पहले लक्ष्य पूरा हो सकता है?
अगर यह पहले हो जाता है तो हमारे लिए खुशी की बात है, लेकिन वास्तव में 2047 इसके लिए सही वक्त है। भारतीय उद्योग जगत के लाभ के हिसाब से देखें तो यह देखना होगा कि भारतीय उद्योग कैसे आगे बढ़ता है और अधिक प्रतिस्पर्धी बनता है और किस तरीके से बहुराष्ट्रीय कंपनियां बनाने की क्षमता बनाता है।
विनिर्माण बनाम सेवा के बहस को आप किस रूप में देखते हैं? क्या विनिर्माण पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है?
हमें इससे चिंतित नहीं होना चाहिए कि कौन-सा क्षेत्र बढ़ रहा है। महत्त्वपूर्ण यह है कि हम बढ़ें। विनिर्माण बढ़ना चाहिए, लेकिन सेवाओं की कीमत पर ऐसा नहीं होना चाहिए। भारत के लिए विनिर्माण प्रमुख है और इसके विकास में क्षमता, प्रौद्योगिकी की क्षमता और स्थिरता, अवसर प्रदान कर रहे हैं।