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लेखक : रमा बिजापुरकर

आज का अखबार, लेख

‘हम तो ऐसे ही हैं’ के रवैये वाला भारत: जटिल, जिज्ञासु और मनमोहक

पिछले महीने ‘दीवाली कब है’ का भ्रम देश के कई हिस्सों में था क्योंकि पंचांग के अनुसार अमावस्या की तिथि 20 और 21 अक्टूबर दोनों दिन पड़ रही थी। इस भ्रम के बीच फ्रांसीसी दूतावास से दीवाली की शुभकामनाओं वाला एक आकर्षक वीडियो (हालांकि, इन दिनों किसी डिजिटल सामग्री के बारे में पुख्ता तौर पर […]

आज का अखबार, लेख

खपत के रुझान से मिल रहे कैसे संकेत? ग्रामीण उपभोग मजबूत, शहरी अगले कदम पर

हम उपभोग में क्या अभूतपूर्व उछाल की कगार पर हैं? यह लेख इस बात का आकलन करने के लिए है कि उपभोक्ताओं के नजरिये से क्या हो सकता है। उपभोक्ता आधारित आकलन वास्तव में कंपनी के प्रदर्शन आधारित या सूचीबद्ध कंपनियों के प्रदर्शन आधारित आकलनों की तुलना में इस तरह के घटनाक्रम को बेहतर ढंग […]

आज का अखबार, लेख

भारत के मास मार्केट संभावनाओं को खोलने के लिए जरूरी है रचनात्मक नीतिगत पहल

हाल की विदेशी चुनौतियों के कारण हमारा ध्यान अब घरेलू खपत पर गया है ताकि यह अंदाजा लगाया जा सके कि क्या यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि को बरकरार रख सकता है। सभी की नजरें और उम्मीदें मांग बढ़ाने वाली पारंपरिक नीतियों पर टिकी हैं। आयकर दरों में पहले की गई कटौती से, […]

आज का अखबार, लेख

आकांक्षाओं से थकी हुई: मध्य वर्ग की बदलती प्रकृति को समझना जरूरी

अर्थशास्त्री सुबीर गोकर्ण (अब दिवंगत) ने 2007 के आसपास इस अखबार में ‘मिडल क्लास ओरिजिन्स’(मध्य वर्ग की उत्पत्ति) शीर्षक से एक ऐतिहासिक लेख लिखा था। उसमें कही गईं बातें आज लगभग 20 साल बाद और भी ज्यादा प्रासंगिक हैं। मध्य वर्ग की उत्पत्ति अथवा वह प्रक्रिया जिससे यह वर्ग उभरा, बहुत मायने रखती है। इस […]

आज का अखबार, लेख

ग्राहक-केंद्रित बनें, ग्राहक-उन्मत्त नहीं: कंपनियां सोच-समझकर चुनें अपना रास्ता

एक समय में ‘कस्टमर सेंट्रिक’(ग्राहक-केंद्रित) शब्दावली बेहद लोकप्रिय थी लेकिन अब उसकी जगह तेजी से एक अधिक प्रभावशाली शब्द ‘कस्टमर अबसेस्ड’(ग्राहक-जुनूनी या ग्राहक आसक्त) ले रहा है। यह शब्द अब बोर्डरूम प्रेजेंटेशन में, ‘मोट’ (बाजार में मजबूत पकड़) और ‘पिवट’ (दिशा बदलना) जैसे शब्दों के साथ, सबसे पसंदीदा बन गया है। गौर करने वाली बात […]

आज का अखबार, लेख

बोर्ड के लिए ‘लक्ष्मण रेखा’ का सम्मान जरूरी

भारतीय कंपनियों के निदेशकमंडल (बोर्ड) कई बदलाव से होकर गुजरे हैं। नए नियमों, बाजार की गतिविधियों, नए अनुभव एवं वैश्विक संचालन मानकों के कारण बोर्ड में ये बदलाव दिख रहे हैं। स्वयं हमारे एवं अपने प्रतिस्पर्धियों के तजुर्बे के आधार पर अब हम एक ऐसे पहलू की तरफ ध्यान खींचना चाहते हैं जिसे लेकर भारतीय […]

आज का अखबार, लेख

स्त्रियों के समावेशन की जमीनी हकीकत

देश के सभी हवाई अड्डों पर पुरुष और महिला यात्रियों के लिए अलग-अलग सुरक्षा जांच और बॉडी स्कैनिंग की व्यवस्था है। अधिकतर देशों में ऐसा नहीं है। वहां सभी लोग एक ही स्कैनर वाली चौखट से गुजरते हैं। हां, अगर किसी महिला की और जांच की जरूरत पड़ती है तो उसके लिए महिला सुरक्षाकर्मी होती […]

आज का अखबार, लेख

कपड़ों और भोजन में अपनी विरासत की झलक

इस बार गणतंत्र दिवस की झांकियां ‘विरासत और विकास’ के इर्द-गिर्द थीं, जो हमें यह परखने का अच्छा मौका देती हैं कि उदारीकरण के बाद से हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पर भारतीयता का कितना रंग चढ़ा है और यह भी कि विदेशी वस्तुओं के प्रति लगाव से देसी सामान के साथ सहज होने तक हमने […]

आज का अखबार, लेख

वर्ष 2025 में कैसे हो खपत पर बातचीत?

वर्ष 2024 में देश के भीतर घरेलू उपभोग की स्थिति पर गरमागरम और गहन चर्चा देखने को मिलीं। अर्थशास्त्री, शेयर बाजार विश्लेषक, मीडिया और बाजार के जानकार अपने-अपने नजरिये से इस बारे में बात करते रहे। पहले से ही मौजूद भ्रम को आंकड़ों ने और बढ़ा दिया, जब उन्होंने विरोधाभासी संकेत देने शुरू किए। मसलन […]

आज का अखबार, लेख

विकसित भारत के लिए बदला दृ​ष्टिकोण

विकसित भारत एक ऐसा सुखद नागरिक-आधारित दृ​ष्टिकोण है, जो उम्मीद जगाता है कि एक दिन हम जरूर अपने लक्ष्य को अपने दम पर हासिल करने में कामयाब होंगे। यह वै​श्विक रैंकिंग प्रतिस्पर्धा से अलग हट कर वह विमर्श है, जो पिछले कुछ वर्षों से सरकार और उद्योग जगत की नीतियों में स्पष्ट झलक रहा है। […]

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