हाल की विदेशी चुनौतियों के कारण हमारा ध्यान अब घरेलू खपत पर गया है ताकि यह अंदाजा लगाया जा सके कि क्या यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि को बरकरार रख सकता है। सभी की नजरें और उम्मीदें मांग बढ़ाने वाली पारंपरिक नीतियों पर टिकी हैं। आयकर दरों में पहले की गई कटौती से, भारत के उपभोक्ताओं के एक छोटे लेकिन ज्यादा खर्च करने वाले वर्ग को मदद मिली। साथ ही, अब वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की दरों में होने वाली कटौती से कई उपभोक्ता वस्तुओं के दाम कम होंगे, जिससे उपभोक्ता खर्च में एक जरूरी लेकिन एकबारगी बढ़ोतरी होगी।
हालांकि, भारत के व्यापक जनसमूह वाले बाजार को विकसित करने के लिए और भी रचनात्मक और रणनीतिक नीतियों की जरूरत है ताकि हम उसकी खपत की पूरी क्षमता का लाभ उठा सकें। इससे एक ऐसे भविष्य के लिए तैयारी होगी जहां घरेलू खपत वास्तव में आर्थिक विकास का बड़ा सूत्रधार बन सकती है। बड़ी कंपनियों और अमीर उपभोक्ताओं के लिए बनी बाजार नीतियां, बड़े जनसमूह वाले बाजार तक नहीं पहुंच पातीं हैं। कुछ कंपनियों को छोड़कर, बड़ी भारतीय कंपनियां इन उपभोक्ताओं पर ध्यान नहीं देतीं क्योंकि इनसे जुड़े उत्पाद, कम दाम लेकिन बहुत अधिक मात्रा में बिकने वाले और कम मुनाफा देने वाले होते हैं। अपनी कम आय और कम आत्मविश्वास के कारण ही ये उपभोक्ता छोटी स्थानीय कंपनियों और चीन से आयातित सामान पर निर्भर रहते हैं।
ऐसी उम्मीद कम ही है कि बड़ी कंपनियां अचानक अपना मन बदलेंगी और चीन की तरह बड़े पैमाने पर उत्पादन क्षमता में निवेश करेंगी ताकि व्यापक जनसमूह के बाजार की जरूरतें पूरी की जा सकें। अमीर जैसे-जैसे और अमीर होते जा रहे हैं, बड़ी कंपनियों के लिए एक ऐसे बाजार में लगातार निवेश करने का आर्थिक तर्क कम आकर्षक होता जा रहा है जो लंबे समय तक तो पैसा कमा सकता है, लेकिन वहां तक पहुंचना मुश्किल है। वे वास्तव में किसी ‘बदसूरत बत्तख’ के एक ‘अमीर हंस’ में बदलने का इंतजार करेंगे, जिनके लिए सेवाएं देना उनके लिए फायदेमंद होगा लेकिन इसमें लंबा समय लगेगा।
भारत के सबसे अमीर 20 फीसदी परिवार ऐतिहासिक रूप से बहुत ज्यादा कमाने वाले, अधिक खर्च करने वाले, बचत करने वाले (और निवेशक) रहे हैं। उनकी आमदनी झटकों को झेलने में सक्षम है और वे बेहतर गुणवत्ता वाली चीजें ढूंढ़ने और उनके लिए अधिक पैसे देने को तैयार रहते हैं। अपनी शिक्षा और व्यवसाय के स्तर के कारण वे ऐसा करते रहेंगे। वे नीतिगत बदलाव के बिना भी खपत करेंगे, हालांकि वे खर्च में तुरंत बढ़ोतरी का भी एक स्रोत हैं। अगर आईफोन या लैपटॉप की कीमतें कम होती हैं तब वे उन्हें जल्द ही बदलना चाहेंगे या ज्यादा गैजेट खरीदेंगे। अगर स्टांप ड्यूटी कम होती है, तब वे अधिक कीमत वाले घर खरीदेंगे। वे बड़ी कंपनियों के तरजीही ग्राहक हैं जो उन्हें विविधतापूर्ण सामान उपलब्ध कराकर उनका ध्यान रखती हैं।
अगले सबसे अमीर 20 फीसदी परिवार, जो शीर्ष 20 फीसदी का ही एक हल्का स्वरूप हैं, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति उतनी मजबूत नहीं है लेकिन वे बड़ी उपभोक्ता-केंद्रित कंपनियों की नजर में हैं क्योंकि वे उनकी मौजूदा रणनीतियों के लिए वृद्धि का अगला तार्किक स्रोत हैं। भले ही उनकी खपत में वृद्धि उतनी स्थिर न हो, लेकिन आर्थिक रूप से मुश्किल समय में भी उनकी खपत की रफ्तार बनी रहती है। सबसे खराब स्थिति में भी वे कम कीमत पर कम गुणवत्ता वाली चीजें ही सही, लेकिन खरीदते जरूर हैं। यह समूह अधिक या सस्ते ऋण और टिकाऊ सामान, कारों और घरों की कीमतों में कमी को देखते हुए अपनी सक्रियता दिखाता है बशर्ते कि इस माहौल ने उनकी भविष्य की आमदनी को लेकर उनके आत्मविश्वास को कम न किया हो, जो शीर्ष अमीर 20 फीसदी वर्ग की तुलना में ज्यादा नाजुक है।
हालांकि, अब हमें भारत के मध्य वर्ग के 40 फीसदी परिवारों की खपत से जुड़ी अपनी नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है जो देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों को मिलाकर एकसमान जनसमूह वाला बाजार है। दीर्घकालिक लक्ष्य इसे एक अधिक उत्पादकता, उच्च-दक्षता वाले मांग और आपूर्ति (उपभोक्ता एवं उत्पादक) वाले पारिस्थितिकी तंत्र में बदलना होना चाहिए जो अपनी अधिकतम क्षमता का उपयोग कर सके। इसे भविष्य में होने वाली अनुमानित वृद्धि के शुद्ध वर्तमान मूल्य के आधार पर मापा जा सकता है।
यह उपभोक्ता वर्ग कम आय वाला है, जिसमें ज्यादातर स्वरोजगार करने वाले किसान, अनौपचारिक रोजगार में लगे लोग, या अलग-अलग कौशल वाले ‘अपना काम करने वाले’ लोग शामिल हैं। वे जानते हैं कि बाजार में क्या उपलब्ध है और वे एक उत्सुक उपभोक्ता की भूमिका में जरूर होते हैं लेकिन वास्तव में वे कीमतों का आकलन करने वाले एक समझदार विश्लेषक भी हैं। हालांकि, लंबी अवधि के रुझान के आधार पर यह वृद्धि के लिए एक पक्का दांव है लेकिन वे छोटी-मोटी परेशानियों के दौर में बहुत अधिक अस्थिरता दिखाते हैं।
अच्छी बात यह है कि हमारे लिए नई अर्थव्यवस्था ने अपने डिजिटल व्यापार मॉडल के साथ इस बदलाव को लाने का तरीका दिखाया है और यह एक ऐसा तरीका है जिसे अब नीतियों को और प्रोत्साहित करना चाहिए। यह छोटे उपभोक्ताओं और छोटे आपूर्तिकर्ताओं के जुटने और वर्चुअल बाजार के आधार पर बनाया गया है जो ऐसी मूल्य-वर्धित सेवाएं देता है जो किसी अकेले के लिए संभव नहीं है। इसकी खूबी यह है कि यह मौजूदा ढांचों के आसपास ही बदलाव लाता है। यह छोटे आपूर्तिकर्ताओं को एक मंच के माध्यम से बढ़ावा देकर रोजगार के अधिक मौके तैयार कर सकता है और छोटे ग्राहकों और आपूर्तिकर्ताओं को जोड़कर बड़े पैमाने की किफायतों का लाभ दे सकता है। यह विभिन्न तरह के छोटे आपूर्तिकर्ताओं को एक साथ लाकर, बड़ी कंपनियों की तुलना में कम लागत और अधिक दक्षता के साथ कम मूल्य वाली, अधिक विविधता वाली जरूरतें पूरी कर सकता है। क्लाउड किचन, छोटे होटल, या विभिन्न घरेलू सेवाओं को एक साथ देने वाले फर्म इसके उदाहरण हैं।
छोटे-छोटे काम करने वालों को एक साथ जोड़ने वाला यह वर्चुअल बाजार अब आगे बढ़ रहा है। यह इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह कम कीमतों वाले बाजार और दूर-दराज के इलाकों से जुड़ी उन कमियों को दूर कर सकता है, जिन्होंने बड़े पैमाने पर खपत को रोक रखा है। यह दूरदराज के इलाकों में मौजूद छोटे दुकानदारों को भी एक बड़े और प्रभावशाली वितरण प्रणाली से जोड़ सकता है। इस तंत्र के जरिए बहुत कम खर्च में अधिक से अधिक सामान और सेवाएं लोगों तक पहुंचाई जा सकती हैं। इसके अलावा, यह छोटे ग्राहकों को चीजें साझा करने की सुविधा देकर महंगी चीजों तक पहुंचने में मदद करता है, जिन्हें वे खरीदना तो चाहते हैं लेकिन खरीद नहीं पाते। उदाहरण के लिए, ट्रैक्टर, कार या शादी का महंगा सामान।
सेवा बाजार खुद काम करने वाले लोगों को एक साथ लाकर एक तरह के औपचारीकरण को बढ़ावा देता है। इससे उत्पादकता बढ़ती है, कौशल में सुधार होता है और चीजों की सही कीमत तय करने में मदद मिलती है। साथ ही लागत कम होती है और मंचों के जरिये ऋण लेना आसान हो जाता है जिससे वित्तीय पारदर्शिता भी बढ़ती है। यह सबकुछ महज एक विचार भर नहीं है। कई स्टार्टअप ने इसे जमीन पर सच करके दिखाया है। छोटे-छोटे काम करने वालों को एक साथ जोड़ने वाला यह वर्चुअल बाजार अब आगे बढ़ रहा है। इसलिए, बाजार के छोटे खिलाडि़यों के इस नए तंत्र को बढ़ावा देने के लिए नीतियां बनाना बहुत जरूरी है। ये नीतियां उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं की तरह ही महत्त्वपूर्ण हैं।
(लेखिका ग्राहक आधारित कारोबार रणनीति के क्षेत्र में कारोबारी सलाहकार हैं)