एक समय में ‘कस्टमर सेंट्रिक’(ग्राहक-केंद्रित) शब्दावली बेहद लोकप्रिय थी लेकिन अब उसकी जगह तेजी से एक अधिक प्रभावशाली शब्द ‘कस्टमर अबसेस्ड’(ग्राहक-जुनूनी या ग्राहक आसक्त) ले रहा है। यह शब्द अब बोर्डरूम प्रेजेंटेशन में, ‘मोट’ (बाजार में मजबूत पकड़) और ‘पिवट’ (दिशा बदलना) जैसे शब्दों के साथ, सबसे पसंदीदा बन गया है। गौर करने वाली बात यह है कि ‘ग्राहक-केंद्रित’ और ‘ग्राहक को लेकर जुनून’ जैसी शब्दावली बिल्कुल एक जैसी नहीं हैं। वास्तव में, वे एक-दूसरे के लिए आईने जैसे हैं। ‘ग्राहक-केंद्रित’ शब्दावली के केंद्र में ध्यान ग्राहकों की दुनिया पर होता है जबकि ‘ग्राहक के प्रति जुनून’ का केंद्र मार्केटिंग करने वालों की दुनिया पर होता है।
सेमीकंडक्टर कंपनी एएमडी के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) हेक्टर रुइज के अनुसार, ग्राहक केंद्रित रणनीति की एक बहुत अच्छी परिभाषा यह है कि ग्राहक जो कुछ भी चाहता है, वह सब कुछ न करने के बजाय ग्राहक के फायदे के लिए हर काम करना। बेशक, इसे ऐसे तरीके से करना जिससे कंपनी को खुद भी फायदा हो। ग्राहक केंद्रित रणनीति का मतलब यह समझना है कि हम अपने ग्राहक के लिए क्या बेहतर कर सकते हैं, जो ग्राहक को सच में महसूस हो। यह वह फायदा नहीं है जो मार्केटिंग वाले सोचते हैं कि ग्राहकों को मिलना चाहिए। वहीं, ग्राहक के प्रति जुनून का मतलब अक्सर यह होता है कि ग्राहक से अधिक से अधिक पैसे कैसे कमाए जाएं।
कई बार कंपनियों की प्रेजेंटेशन में ऐसी स्लाइड दिखती है जिस पर लिखा होता है ‘हममें ग्राहकों को अपनाने के लिए जुनून है’। इसमें ग्राहक को केंद्र में रखकर दिखाया जाता है कि कौन से तरीके अपनाए जाएं जिनसे कंपनी ग्राहक की जेब से और पैसा निकाल सके, जैसे उन्हें और चीजें बेचना, अधिक महंगी चीजें बेचना या उन्हें अपने साथ जोड़े रखने की तरकीब। इसमें यह नहीं दिखता कि कंपनी ग्राहक के लिए क्या करेगी। इसमें ऐसी बहुत सी भ्रामक, ‘ग्राहक केंद्रित’ बातें लिखी होती हैं जैसे ‘हम ग्राहकों को खुश कर देंगे’ या ‘हम दुनिया भर में ग्राहकों के पसंदीदा आपूर्तिकर्ता बनेंगे।’ ये सारी बातें सिर्फ कंपनी के बारे में होती हैं, इनमें से एक भी शब्द यह नहीं बताता कि वे ग्राहकों की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए क्या करेंगे।
ग्राहकों के साथ बार-बार उत्पादों की जांच करना भी ग्राहक केंद्रित रणनीति नहीं है बल्कि यह उत्पाद केंद्रित रणनीति है यानी, सिर्फ उत्पाद पर ध्यान देना। ग्राहकों से बार-बार यह पूछना कि किसी उत्पाद या सेवा से उनकी क्या उम्मीदें हैं (और फिर शिकायत करना कि ग्राहकों को नहीं पता), यह भी ग्राहक केंद्रित रवैया नहीं है। यह ऐसा है जैसे आप फैसले लेने की जिम्मेदारी ग्राहकों पर छोड़ रहे हों और उन्हें ही कंपनी का मार्केटिंग निदेशक बना रहे हों। ग्राहक का काम तो अपनी समस्या या परेशानी बताना है, या यह समझना है कि उनके लिए कौन सी चीज फायदेमंद है (यानी, एक अंदरूनी प्रक्रिया जिससे वे तय करते हैं कि कौन से फायदे वास्तव में उनके लिए मूल्यवान हैं)।
ग्राहकों का काम अपनी समस्या या परेशानी को हल करने के लिए उपाय खोजना या यह बताना नहीं है कि कंपनियां उन्हें और कैसे फायदा पहुंचा सकती हैं। उन्हें नहीं पता कि क्या किया जा सकता है। ग्राहकों को बस इतना पता है कि क्या करने से उन्हें अधिक खुशी मिलेगी। ग्राहक-केंद्रित कंपनियां यही करने के लिए लगातार मेहनत करती हैं। वे समझती हैं कि आज ग्राहक किन बातों पर समझौता कर रहे हैं, जैसे एक तीन-सितारा सस्ते होटल में ठहरने से उन्हें कोई खास एहसास नहीं होता है जबकि पांच-सितारा होटल उन्हें खास महसूस कराता है। हालांकि पांच-सितारा होटल बहुत महंगा होता है और उनकी जरूरत से अधिक सुविधाएं देता है। या फिर दूरदराज के इलाके में रहने वाला कोई छोटा ग्राहक जिसे कुछ खास चीजें खरीदने के लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। ये कंपनियां ऐसे मजबूरी के समझौतों को खत्म करने और ग्राहकों को मिलने वाले असली फायदे को बढ़ाने पर ध्यान देती हैं। ग्राहक केंद्रित होने का मतलब है कि अपने कारोबारी फैसले और योजना को इस सोच पर लाना कि ‘हम ग्राहकों के लिए क्या कर सकते हैं?’
नई अर्थव्यवस्था की कई (सभी नहीं) स्टार्टअप कंपनियां जिनके डिजिटल कारोबारी मॉडल हैं, उन्होंने बड़ी कंपनियों के मुकाबले कहीं अधिक ग्राहक केंद्रित रवैया दिखाया है। उन्होंने इसमें कामयाबी पाई है कि ग्राहकों को किसी चीज से मजबूरी में समझौता न करना पड़े। साथ ही, उन्होंने भारतीय बाजार की एक मुश्किल चुनौती भी हल की है, मसलन जहां ग्राहक अच्छी गुणवत्ता बेहद कम दाम पर चाहते हैं और कंपनियां हर इकाई पर ठीक-ठाक मुनाफा कमाना चाहती हैं। स्टार्टअप कंपनियों ने लोगों और कारोबारों की समस्याओं को हल करने या उन्हें फायदा पहुंचाने वाले समाधान बनाने में पारंपरिक मार्केटिंग से कहीं अधिक ग्राहक-केंद्रित रवैया दिखाया है। शायद ऐसा इसलिए है क्योंकि उनमें फंडिंग करने वाले लगातार पूछते हैं, ‘आप सफल कैसे होंगे?’ यह बात उन्हें ग्राहकों की अनसुलझी समस्याओं पर काम करने के लिए प्रेरित करती है। वहीं, पारंपरिक मार्केटिंग आज ‘प्रदर्शन वाले मार्केटिंग मॉडल’ यानी कितने उत्पाद या सेवाएं बेची गईं उन पर अधिक ध्यान देती है न कि ग्राहकों के लिए असली फायदा बनाने या उसे देने (या उसे खोजने) पर। शोध एवं विकास (आरऐंडडी) करने वाले लोग भी अक्सर मार्केटिंग वालों से अधिक ग्राहक-केंद्रित होते हैं, शायद इसलिए क्योंकि उनका काम ही समस्याओं को हल करना या इस्तेमाल के लिए बेहतर चीजें बनाना है। अगर हम डिजिटल इंटरफेस को डिजाइन करने की बात करें तो यूआई यूएक्स विशेषज्ञों के होते हुए भी ग्राहक केंद्रित रणनीति के कई स्तर या प्रकार दिखते हैं। उदाहरण के तौर पर बैंकों के ऐप जो शायद तकनीकी रूप से तो बहुत अच्छे हो सकते हैं, लेकिन ऐप खोलते ही आपका काम पूरा करने से पहले ही आपको दूसरी चीजें बेचने लगते हैं। ऐसा लगता है यहां ग्राहकों को अपनी जद में करने वाले ग्राहकों के जुनूनी आपूर्तिकर्ताओं की भरमार है जिनका मानना है कि ग्राहक का काम जल्द से हो जाए उसकी तुलना में बैंक का काम अधिक जरूरी है। अगर गलती से सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) विभाग के तकनीशियन ग्राहकों को मेसेज भेजने का काम संभाल लें, तब हमें ऐसे संदेश मिलते हैं, ‘हमें यह बताते हुए खुशी हो रही है कि हम अब वापस ऑनलाइन हो गए हैं’ जबकि उन्हें कहना चाहिए, ‘हमें आपकी इंटरनेट सेवा में आई रुकावट और उससे हुई परेशानी के लिए खेद है। हम अब ऑनलाइन सेवाएं देने के लिए तैयार हैं।’
ग्राहक केंद्रित रवैये का मतलब लंबे, समय बर्बाद करने वाले फीडबैक फॉर्म भरवाना या सीईओ के बोनस को ‘शुद्ध प्रवर्तक स्कोर’ से जोड़ना नहीं है। इसका मतलब यह सोचना है, ‘मैं ग्राहकों की जिंदगी को कैसे बेहतर बना सकता हूं?’ जैसा वे खुद समझते हैं, न कि जैसा मैं समझता हूं और ‘मैं इसे कैसे बेहतर तरीके से करूं, जिससे उन्हें अधिक फायदा हो और मुझे कम से कम खर्च आए?’
(लेखिका ग्राहक आधारित कारोबार रणनीति के क्षेत्र में एक कारोबारी सलाहकार हैं)