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खपत के रुझान से मिल रहे कैसे संकेत? ग्रामीण उपभोग मजबूत, शहरी अगले कदम पर

उपभोक्ता आधारित आकलन वास्तव में कंपनी के प्रदर्शन आधारित आकलनों की तुलना में इस तरह के घटनाक्रम को बेहतर ढंग से समझाते हैं

Last Updated- October 07, 2025 | 11:34 PM IST
Consumption

हम उपभोग में क्या अभूतपूर्व उछाल की कगार पर हैं? यह लेख इस बात का आकलन करने के लिए है कि उपभोक्ताओं के नजरिये से क्या हो सकता है। उपभोक्ता आधारित आकलन वास्तव में कंपनी के प्रदर्शन आधारित या सूचीबद्ध कंपनियों के प्रदर्शन आधारित आकलनों की तुलना में इस तरह के घटनाक्रम को बेहतर ढंग से समझाते हैं।

हम, घरेलू उपभोग वृद्धि की तीन प्रमुख स्थितियों का जायजा लेते हैं: पहला, जब लोगों को अधिक पैसा मिलता है, चाहे उन्होंने वह कमाया हो, उधार लिया हो, या कल्याणकारी योजनाओं से पैसे मिले हों। दूसरा, जब लोग जो चीजें खरीदना चाहते हैं वे सस्ती हो जाती हैं या जब ऋण की लागत कम हो जाती है और तीसरा, जब लोगों को लगता है कि आर्थिक माहौल बेहतर हो रहा है और भविष्य में ऐसा कुछ भी नहीं होगा जिसके कारण उन्हें आज खर्च करने में असुरक्षा महसूस हो।

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दरों में कटौती ने मर्सिडीज कारों से लेकर सरसों तेल और होटल के कमरों से लेकर स्वास्थ्य बीमा तक सभी क्षेत्रों में कीमतें कम कर दी हैं। विशिष्ट वर्ग को लाभ पहुंचाने वाले कल्याणकारी हस्तांतरणों, आयकर कटौती, या किसी विशेष श्रेणी के उत्पाद शुल्क कटौती के विपरीत, यह उपाय सभी को लाभ पहुंचाता है।

यह अधिक आमदनी को प्रोत्साहित करता है और खर्चीली प्रीमियम वस्तुओं और सेवाओं के खरीदारों को प्रोत्साहित करता है जो निजी उपभोग खर्च में एक बड़े हिस्से का योगदान करते हैं और जिनके पास खर्च करने के लिए अतिरिक्त रकम होती है ताकि वे और भी अधिक खर्च करें। यह मामूली आय वाले, कम खर्च करने वाले उपभोक्ताओं को भी खर्च बढ़ाने में सक्षम बनाता है जो अपनी सामर्थ्य से अधिक खर्च की इच्छा रखते हैं। त्योहारों के सीजन में जीएसटी दर में कटौती, कम महंगाई और संभावित रूप से कम उधार लेने के लागत का माहौल, खपत के लिए एक मजबूत अनुकूल स्थिति बनाती है।

कंपनियों ने ऐतिहासिक रूप से अपने मार्केटिंग से जुड़े प्रयासों में तेजी और मंदी के रुझान दर्शाएं हैं सिवाय कुछ अनुभवी उपभोक्ता कंपनियों के जो स्थिरता की राह अपनाती हैं। जब वे समर्थन वाला माहौल देखती हैं तब मार्केटिंग पर खर्च करती हैं और सामग्री की लागत में वृद्धि को खुद संभालती हैं ताकि राजस्व में वृद्धि के रूप में उन्हें रिटर्न मिले।

हालांकि, जब माहौल कठिन होता है और उन्हें शेयर बाजार को खुश करने की आवश्यकता होती है तब वे इसका उल्टा करती हैं और राजस्व वृद्धि के बजाय लाभ वृद्धि को चुनती हैं। इस सीजन में कॉरपोरेट जगत में तेजी का माहौल है और कंपनियों तथा खुदरा विक्रेताओं द्वारा त्योहारों पर जोर दिए जाने से खपत के लिए और अनुकूल स्थिति बनती है।

आमदनी पर बात किए जाने से पहले उस उपभोक्ता आत्मविश्वास की बात करते हैं जो देश में खपत की कहानी में हमेशा गायब रहा है। प्रधानमंत्री द्वारा इसे ‘जीएसटी बचत उत्सव’ के रूप में प्रचारित करना, इसे त्योहारों के आयोजनों से प्रतीकात्मक रूप से जोड़ना, ‘उपभोक्ता भारत’ के लिए एक मजबूत संकेत देता है। वास्तव में उपभोग को लेकर संकोच बरतने का कोई कारण नहीं है और ऐसे में इस पल को भुनाना सुरक्षित है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के शहरी उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण के अनुसार, देश के शहरी क्षेत्रों में उपभोक्ता विश्वास कम रहा है। (भारत में भविष्य को लेकर आत्मविश्वास का पैमाना संवेदनशील नहीं है क्योंकि हर अध्ययन से पता चलता है कि भारतीय हमेशा भविष्य के बारे में बहुत आशावादी रहते हैं, भले ही वे वर्तमान में कितने भी तनावग्रस्त क्यों न हों। इसके बजाय, इसका जायजा लेना अधिक मायने रखता है कि वे आज की स्थिति को एक साल पहले की तुलना में, कैसा समझते हैं)।

आर्थिक स्थिति पर शहरी उपभोक्ताओं की धारणा अब भी नकारात्मक क्षेत्र में हैं, हालांकि जनवरी 2025 से धीरे-धीरे नकारात्मकता में कमी आती गई। आय की धारणा मार्च 2025 से सकारात्मक क्षेत्र में प्रवेश कर गई है और गैर-आवश्यक वस्तुओं पर खर्च अभी-अभी नकारात्मकता से उबरा है। यदि सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र छंटनी को रोक देता है तब उच्च और उच्च मध्यम आय वर्ग का उपभोग कीमतों में कटौती और आपूर्तिकर्ता के जोर पर अच्छी प्रतिक्रिया देगा।

ग्रामीण उपभोग के लिए, जुलाई 2025 के आरबीआई ग्रामीण उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण (आरसीसीएस) में उसी अवधि के नाबार्ड ग्रामीण आर्थिक स्थिति और भावना सर्वेक्षण (आरईसीएस) की तुलना में बहुत कम सकारात्मक खबर दिखाई देती है। रिजर्व बैंक का आरसीसीएस अर्थव्यवस्था और रोजगार की केवल थोड़ी सकारात्मक धारणा दिखाता है, लेकिन आय की धारणा हल्की नकारात्मक हैं हालांकि जनवरी 2025 से सभी संकेतक सुधर रहे हैं।

हम जानते हैं कि जब प्रकृति (अच्छा मॉनसून और फसलें) और सरकार (समर्थन मूल्य, सब्सिडी और हस्तांतरण, बुनियादी ढांचे में और ऋण प्रवाह में सुधार) के सकारात्मक कार्य एक स्तर पर होते हैं तब ग्रामीण क्षेत्र में खपत के लिहाज से बेहतरीन प्रदर्शन होता है। नाबार्ड आरईसीएस उस ओर इशारा करता है, जिसमें पिछले एक साल में आय में सुधार के कारण मजबूत सकारात्मक धारणाएं हैं और यह सड़क के बुनियादी ढांचे को लेकर और भी अधिक है।

करीब 89 फीसदी परिवारों ने सरकारी हस्तांतरण या सब्सिडी हासिल करने की सूचना दी, जिनमें से 30 फीसदी ने कहा कि यह उनकी आय के 10 फीसदी से अधिक था। हम जानते हैं कि समर्थन मूल्य बढ़ाए गए हैं। इसमें जीएसटी से जुड़ी कीमतों में कटौती को जोड़ दें, तब सभी आय वर्गों में मजबूत ग्रामीण उपभोग वृद्धि पर दांव लगाना सुरक्षित लगता है क्योंकि भारत के आधे उच्च-आय वाले उपभोक्ता ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े हैं।

किसे फायदा होगा, इस तरह के सवालों का जवाब उन फैसलों पर निर्भर करेगा जो उपभोक्ताओं के अलग-अलग वर्ग अपने विशेष तर्क के आधार पर लेंगे। सभी आकार और श्रेणियों के उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं को सर्वव्यापी तरीके से तरजीह दी जाएगी क्योंकि इनमें से अधिकांश को उत्पादकता और जीवन में सक्षमता के लिए बेहतर माना जाता है। इस मामले में, उच्च-मध्यम से उच्च आय वाले खरीदार सबसे अहम होंगे, जो अपने पुराने सामान को बदल रहे हैं और अपग्रेड कर रहे हैं।

टिकाऊ वस्तुओं के संबंध में, सीमित आमदनी वाले उपभोक्ताओं का हमेशा से यह मूलमंत्र रहा है कि ‘कम में समझौता करने के बजाय, ज्यादा के लिए थोड़ा और प्रयास करें’ और कीमतों में कटौती इस सोच को और बढ़ावा देती है। बाजार में बहुत सारी छिपी हुई, लेकिन पूर्वयोजना वाली रुकी हुई मांग है जो अब तेजी से सामने आएगी। लोगों की ‘चलो इसी से काम चला लेते हैं’ वाली सोच अब ‘चलो इसे खरीद ही लेते हैं, यह एक अच्छा मौका है’ में बदल जाएगी। हालांकि, इसमें से कुछ बिक्री मासिक किस्त पर आधारित है और इसे ‘सामान्य स्थिति’ नहीं माना जाना चाहिए।

कीमतों में कमी का सकारात्मक असर अगले साल भर में धीरे-धीरे दिखेगा, जब शहरी उपभोक्ताओं के जीवन की हकीकत और धारणाओं में सुधार होगा। यात्रा और मनोरंजन से जुड़े अनुभव सभी के लिए नई आकांक्षा वाली श्रेणी बन जाएंगे और उच्च आमदनी वाले लोग बेहतर सेवाएं देंगे। बाजार में पहले की तरह कड़ी प्रतिस्पर्धा रहेगी, जैसी स्थिति अब तक रही थी। कम आय वाले लोग अपनी बचत को महंगी चीजें खरीदने के बजाय ईंधन पर या मासिक किस्त चुकाने में लगा सकते हैं।


(लेखिका ग्राहक आधारित कारोबार रणनीति के क्षेत्र में कारोबारी सलाहकार हैं)

First Published - October 7, 2025 | 11:23 PM IST

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