केंद्र सरकार ने इस सप्ताह संसद में दो विधेयक पेश किए। इनसे उसे चुनिंदा अहितकर वस्तुओं पर कर लगाने का अधिकार मिलेगा। एक तरह से देखा जाए तो यह माल एवं सेवा कर (जीएसटी) दरों को दुरुस्त करने के बाद तार्किक कदम है। सितंबर में जीएसटी परिषद ने निर्णय लिया था कि वह मोटे तौर पर 5 और 18 फीसदी की दो दरों की व्यवस्था अपनाएगी। इसके अलावा चुनिंदा अहितकर और विलासिता वाली वस्तुओं को 40 फीसदी कर के दायरे में रखा गया था।
इस बदलाव के बाद अधिकांश वस्तुओं पर क्षतिपूर्ति उपकर समाप्त कर दिया गया। अहितकर वस्तुओं पर इसे बनाए रखा गया ताकि महामारी के दौरान राज्यों को राजस्व की कमी की भरपाई के वास्ते लिए गए ऋण का बाकी हिस्सा चुकाया जा सके। जैसे-जैसे यह ऋण पूरी तरह चुका दिया जाएगा, नए विधेयक यह सुनिश्चित करेंगे कि अहितकर वस्तुओं पर कर में कमी न आए।
केंद्रीय उत्पाद शुल्क (संशोधन) विधेयक, 2025 के उद्देश्यों और कारणों के विवरण में यह स्पष्ट किया गया है कि तंबाकू और तंबाकू उत्पादों पर जीएसटी एवं क्षतिपूर्ति उपकर लगाए जाने के साथ ही केंद्रीय उत्पाद शुल्क दरों में उल्लेखनीय कमी की गई थी। अब क्षतिपूर्ति की भरपाई के लिए ऋण पूरी तरह चुकता होने के बाद उपकर समाप्त हो रहा है, इसलिए सरकार उत्पाद शुल्क बढ़ा रही है। इसके अलावा स्वास्थ्य सुरक्षा से राष्ट्रीय सुरक्षा उपकर विधेयक 2025 सरकार को चुनिंदा वस्तुएं बनाने में इस्तेमाल होने वाली मशीनों पर मासिक उपकर लगाने का अधिकार देगा। ऐसी वस्तुओं में पान मसाला या अन्य ऐसी वस्तुएं शामिल हैं जिन्हें बाद में अधिसूचित किया जा सकता है।
इन उपकरों से इकट्ठा धनराशि का इस्तेमाल जन स्वास्थ्य एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के कामों में किया जाना है। चूंकि यह उपकर होगा इसलिए केंद्र सरकार को इसे राज्यों के साथ साझा करने की आवश्यकता नहीं होगी। खास तौर पर जीएसटी को सहज बनाए जाने का अधिकतर अंशधारकों ने स्वागत किया था। उसी सुधारवादी भावना के तहत सरकार चाहती तो आसानी से उपयुक्त लगने वाली वस्तुओं पर जीएसटी दर के ऊपर सिन टैक्स (अहितकर वस्तुओं पर) लगा सकती थी।
ऐसा करने से कर ढांचा साधारण बना रहता और संग्रह को अन्य केंद्रीय करों की तरह राज्यों के साथ साझा किया जा सकता है। उपकर लगाने से बचना चाहिए। राज्य सरकारों की यह चिंता वाजिब है कि उपकर संग्रह पर अधिक निर्भरता कर राजस्व के प्रवाह को बाधित करती है क्योंकि उपकर बांटे जाने वाले पूल का हिस्सा नहीं होता है। आदर्श रूप में उपकर केवल असाधारण हालात में एक अस्थायी उपाय के रूप में लागू किया जाना चाहिए।
हालांकि नए विधेयक कुछ हद तक राजस्व संरक्षण में मदद करेंगे लेकिन जीएसटी संग्रह ऐसे स्तर पर रह सकता है जो शायद अनुकूल न हो। नवंबर में शुद्ध जीएसटी संग्रह एक साल पहले के मुकाबले 1.3 फीसदी बढ़ा। इसमें क्षतिपूर्ति उपकर शामिल नहीं था। आंकड़ों को इस प्रकार भी देखा जा सकता है कि अधिकांश वस्तुओं के लिए जीएसटी दरों में कमी के बावजूद संग्रह में कमी नहीं आई है। यह बात ध्यान देने लायक है कि संग्रह से पता चल रहा है कि दरें घटने के बाद त्योहारी मांग बढ़ गई। आने वाले महीनों में देखना होगा कि मांग बनी रहती है या नहीं।
जीएसटी संग्रह में संभावित कमी का असर केंद्र और राज्य सरकारों दोनों पर पड़ेगा। वर्तमान में अप्रैल से अक्टूबर के बीच केंद्र सरकार का सकल कर राजस्व संग्रह साल दर साल केवल 4 फीसदी बढ़ा है और पूरे वर्ष के राजस्व लक्ष्य को हासिल करने के लिए इसे कहीं अधिक तेजी से बढ़ाना होगा। यदि आने वाले महीनों में जीएसटी संग्रह घटता है तो हालात मुश्किल हो सकते हैं। एक बार उपकर संग्रह समाप्त हो जाने और राजस्व संग्रह की स्पष्ट तस्वीर सामने आने के बाद जीएसटी परिषद अगले सुधारों पर विचार कर सकती है। मध्यम और लंबी अवधि में राजस्व की सुरक्षा के लिए आगे दरों में तब्दीली जरूरी हो सकती है।