सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन (2G Spectrum allocation) के संबंध में उसके साल 2012 के फैसले में संशोधन करने के लिए नहीं कहा है। उच्च पदस्थ सूत्रों ने आज यह जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि इसकी अर्जी में प्रशासनिक तौर पर स्पेक्ट्रम आवंटन की अनुमति भी नहीं मांगी गई है। सूत्रों ने कहा कि मोबाइल सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम की नीलामी जारी रहेगी और दूरसंचार विधेयक में वर्णित विशेष क्षेत्रों के लिए स्पेक्ट्रम आवंटन प्रशासनिक रूप से किया जाएगा।
सरकार ने पिछले साल 12 दिसंबर को सर्वोच्च न्यायालय में अर्जी दाखिल की थी। अर्जी पर शुक्रवार या अगले सप्ताह की शुरुआत में सुनवाई की जा सकती है।
एक वरिष्ठ सरकारी सूत्र ने कहा ‘पूर्ण पारदर्शिता के आलोक में इस बात के मद्देनजर कि दूरसंचार क्षेत्र में मुकदमेबाजी (इस मुद्दे पर) का इतिहास रहा है, हमने विधेयक पेश करने से पहले सर्वोच्च न्यायालय में विविधतापूर्ण अर्जी दायर की थी, जिसमें बताया गया था कि हम इसे पेश करने से पहले क्या करना चाहते हैं। यह दूरसंचार विधेयक 18 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया गया था। यह अर्जी केवल स्पष्टीकरण के लिए थी। यह अदालत से कोई अनुमति लेने के लिए नहीं थी।’
फरवरी 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि दूरसंचार स्पेक्ट्रम जैसे दुर्लभ सार्वजनिक संसाधनों के आवंटन के लिए नीलामी पसंदीदा तरीका है। मूल याचिकाकर्ता सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन के नाम पर इसे ‘सीपीआईएल फैसला’ के रूप में जाना जाता है।
इसमें अदालत ने स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए ‘पहले आओ, पहले पाओ’ पद्धति की आलोचना की। इसने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा आवंटित 2जी स्पेक्ट्रम को रद्द कर दिया था।
केंद्र ने अपनी नवीनतम अर्जी में सर्वोच्च न्यायालय को बताया है कि इसके बाद से सरकार कुछ मामलों में प्रशासनिक रूप से स्पेक्ट्रम जारी कर रही है, जहां नीलामी तकनीकी या आर्थिक रूप से पसंदीदा या बेहतरीन तरीका न हो।
