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मजबूत आईटी ढांचा सबके लिए जरूरी: अरुंधती भट्टाचार्य

BFSI Summit: भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की पहली महिला चेयरपर्सन रहीं भट्टाचार्य ने बताया कि एक मजबूत आईटी व्यवस्था सभी संगठनों के लिए महत्त्वपूर्ण है।

Last Updated- October 30, 2025 | 11:30 PM IST
Arundhati Bhattacharya

देश की अग्रणी एआई सीआरएम प्लेटफॉर्म सेल्सफोर्स इंडिया की चेयरपर्सन और सीईओ व पूर्व बैंकर अरुंधती भट्टाचार्य ने बिज़नेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई समिट 2025 में निवेदिता मुखर्जी के साथ बातचीत की। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की पहली महिला चेयरपर्सन रहीं भट्टाचार्य ने बताया कि एक मजबूत आईटी व्यवस्था सभी संगठनों के लिए महत्त्वपूर्ण है। संपादित अंश:

सेल्सफोर्स मे आए अब आपको 5 साल हो गए हैं, स्टेट बैंक से आने के बाद आप तकनीक की दुनिया को किस तरह से देखती हैं?

जब मैं बैंक में थी, तब भी मुझे एक विश्वास था और अब भी है कि अगर कोई संकठन आईटी को गंभीरता से नहीं लेता तो एक निश्चित समय के बाद उसका टिके रहना मुश्किल है। यह मायने नहीं रखता कि आपकी किराना की दुकान है या आप एचआर, लॉजिस्टिक्स, मैन्युफैक्चरिंग या सेवा क्षेत्र में हैं। मजबूत आईटी व्यवस्था सभी संगठनों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। तकनीक बहुत तेजी से बदल रही है। अब हम एजेंटिक एआई के साथ काम कर रहे हैं। पिछले 13 महीनों में हमने लंबी दूरी तय की है और एजेंटिक उद्यमों की घोषणा कर रहे हैं। तकनीक की दुनिया में भी बदलाव की गति अभूतपूर्व है।

स्टेट बैंक की दुनिया से तकनीक की गति तक बदलाव कैसा रहा?

स्टेट बैंक एक अच्छी चीज सिखाता है कि आप सीखते हुए नेतृत्व कैसे कर सकती हैं। आपका नियमित स्थानांतरण होता है, विभिन्न जगहों पर, विभिन्न पदों पर, समुदायों में और टीमों के साथ आपको काम करने का मौका मिलता है। मैं अक्सर कहा करती थी कि स्टेट बैंक में मेरे जैसी महिला के लिए नियम सरल है- जिस क्षण मुझे अपने बाल काटने के लिए एक अच्छा व्यक्ति मिल जाता है और कोई ऐसा व्यक्ति जो मेरी साड़ी के लिए एक उचित ब्लाउज सिलता है, मुझे पता चल जाता है कि स्थानांतरित होने का समय आ गया है! यह आपको खुद से सीखने की क्षमता देता है, और इससे बहुत मदद मिली। एक अगुआ के रूप में आपको मूल्यवर्धन करना शुरू कर देना चाहिए, जब आप काम शुरू करते हैं। यह तब मुश्किल होता है, जब आप अलग फील्ड में आते हैं। लेकिन स्टेट बैंक ने हमें यह सिखाया। बैंकर के रूप में 40 साल काम करने के बाद लगभग 5 पीढ़ी छोटी उम्र के लोगों के साथ काम करने में इस बदलाव ने मेरा बहुत साथ दिया।

अगर आपको एक महिला नेता के रूप में अपनी यात्रा के बारे में बताना हो तो कैसे बताएंगी?

मैंने इसके बारे में कभी सटीक तरीके से सोचा नहीं। अगर आप भारत में कामकाजी महिला हैं तो आपको तय करना होता है कि परिवार के दायित्वों का ध्यान रखते हुए कार्यस्थल की नई जिम्मेदारियां कैसे निभाई जाएं। कई बार ऐसा वक्त आएगा, जब आपको लगता है कि यह सही नहीं है, लेकिन आपको स्थिति को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ना होता है। कई महिलाएं पूछती हैं कि क्या मुझे अपने जूनियर पुरुष सहकर्मियों से सम्मान पाने या उन्हें अपनी बात समझाने में कठिनाई हुई? मैंने कभी ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया। या तो मैं बहुत भाग्यशाली थी, या उन्होंने जो कुछ मरी पीठ के पीछे कहा, वह कभी मेरे कान तक नहीं पहुंचा। मुझे लगता है कि मेरी संवाद करने की क्षमता ने मेरा साथ दिया। अगर लोग उत्साहित हैं और कोई बात मानते हैं तो इसमें लैंगिक अंतर मायने नहीं रखता। उन्हें पता होता है कि वे योगदान कर सकते हैं और सफल हो सकते हैं।

क्या अध्ययन अवकाश के अलावा महिला सहकर्मियों के लिए की गई कुछ चीजें साझा कर सकती हैं?

अध्ययन अवकाश एक था और मुझे उम्मीद थी कि अन्य बैंक भी ऐसा करेंगे। हालांकि अब तक उन्होंने ऐसा नहीं किया। मुझे अभी भी उम्मीद है कि वे ऐसा करेंगे। यह बहुत उपयोगी है। मैंने पाया है कि ज्यादातर महिलाओं ने एक प्लेटफॉर्म पर काम करने की भूमिका निभाई, पुरुष सहकर्मियों की तरह शाखाओं का संचालन नहीं किया। अगले प्रमोशन के लिए आपको 2 साल तक भूमिका में और 2 साल ग्रामीण सेवाओं में काम करना होता है। ग्रामीण इलाकों में अक्सर लोग अकेली महिला को किराये पर मकान नहीं देते हैं। इसे देखते हुए हमने ऐसी ग्रामीण शाखाओं की पहचान की, जहां तैनाती पर महिलाएं रोजाना अपने घर से आ-जा सकती थीं। या हमने बैंक के नाम पर चार या पांच बेडरूम का एक स्थान लिया, ताकि ग्रामीण शाखा प्रबंधकों को रखा जा सके। इसके बाद कई महिलाओं ने दायित्व निभाया। कुछ ने कहा कि साझा आवास में रहना उनके जीवन के सबसे अच्छे साल थे। हमने सभी महिला कर्मचारियों और उनके परिजनों के लिए सर्वाइकल कैंसर का टीकाकरण भी लागू किया। मैंने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि हमारे बड़े केंद्रों में कम से कम एक महिला डॉक्टर- एक स्त्री रोग विशेषज्ञ या बाल रोग विशेषज्ञ हो ताकि महिलाओं को अपॉइंटमेंट लेने के लिए बाहर समय बिताने से बचाया जा सके।

पहले कई बैंकों में महिलाएं सीईओ थीं, अब नहीं हैं। क्या हुआ?

जब मैंने काम छोड़ा तो कई महिलाएं प्रभावशाली थीं और उनमें से कई ने बहुत कुछ किया है। जो महिला मेरी सीएफओ थीं, वह अब विश्व बैंक की सीएफओ हैं। एक अन्य, पद्माजा ने इंडियन बैंक और बाद में एनएसडीएल का नेतृत्व किया। जिन महिलाओं को मैंने डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर के रूप में छोड़ा, वे मजबूत उम्मीदवार थीं। उन्होंने एसबीआई का नेतृत्व नहीं किया, लेकिन अन्य स्थानों पर नेतृत्व किया है। हालांकि यह कठिन काम है और इसमें वक्त और लंबे कवायद की जरूरत है। हम भाग्यशाली थे कि उस दौर में सरकारी, निजी और विदेशी बैंकों में कई महिलाएं शीर्ष पर थीं। मुझे डॉ. रघुराम राजन द्वारा आयोजित एक रिसेप्शन याद है, जिसमें कमरे में सूट से ज्यादा साड़ियां थीं!

आप बाहर से आज बैंकिंग जगत को कैसे देखती हैं? आपने तनावग्रस्त संपत्तियों आदि से निपटा। क्या चीजें बेहतर हुई हैं? और आप नियामक की भूमिका को कैसे देखती हैं?

इन सब में नियामक की बहुत बड़ी भूमिका है। बैंकिंग क्षेत्र में अभी भी चुनौतियां हैं, लेकिन वे अलग हैं। अब सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक तकनीक है कि बैंक बेहतर सेवाएं देने के लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग कैसे करते हैं।

स्टेट बैंक में आपने तकनीक लाने के लिए कदम उठाए। इसे स्मार्ट बैंक कहा जाता था। क्या आप और अधिक कर सकती थीं?

उस समय जो कर सकते थे, हमने वह किया। आज कई चीजें उपलब्ध हैं जो तब उपलब्ध नहीं थीं। मुझे नहीं लगता कि हम और अधिक कर सकते थे। जब योनो आया, तो यह किसी भी निजी या विदेशी बैंकों से कहीं आगे था। शायद हम अधिक चतुर व फुर्तीले बन सकते थे, लेकिन विरासत में मिली व्यवस्था में इसकी संभावना सीमित होती है।

तकनीक के अलावा क्या कोई काम अधूरा रह गया था?

ग्राहक सेवा शायद हमेशा के लिए अधूरी रहेगी। आप कभी भी उस स्तर तक नहीं पहुंच सकते जो ग्राहक पूरी तरह से चाहते हैं। टेक्नोलॉजी को ही लें। ग्राहक सुरक्षा चाहते हैं, लेकिन यदि आप लॉग इन करने से पहले तीन जांचें लगाते हैं, तो वे बड़बड़ाते हैं। यदि लॉग इन त्वरित है, तो यह सुविधाजनक है लेकिन जोखिम भरा है।

First Published - October 30, 2025 | 11:24 PM IST

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