बीएस बातचीत
सरकार एक बार फिर से महामारी वाले साल के लिए बजट पेश करने के लिए तैयार है। ऐसे में स्वास्थ्य क्षेत्र पर एक बार फिर से जोर दिया जाना लाजिमी होगा। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के श्रीनाथ रेड्डी का मानना है कि वर्षों की उपेक्षा के बाद अब स्वास्थ्य सेवा के प्रति अधिक राजनीतिक प्रतिबद्धता दिख रही है लेकिन अभी भी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। रुचिका चित्रवंशी के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि देश को प्रौद्योगिकी में निवेश करने की आवश्यकता है, लेकिन अगर स्वास्थ्य कार्यबल अपर्याप्त होगा तब यह निवेश बोझ की तरह होगा। बातचीत के संपादित अंश:
महामारी के दौर में यह दूसरा बजट होगा, ऐसे में आपको स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र के लिए सरकार से क्या उम्मीद है?
हमें पर्याप्त चेतावनियां मिल चुकी हैं क्योंकि हमारे स्वास्थ्य क्षेत्र को कोविड-19 महामारी की विभिन्न लहरों के दौरान कई तरह से चुनौती मिल चुकी है। हमने यह भी देखा है कि कई वर्षों की उपेक्षा के बाद स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत करने के लिए अब राजनीतिक प्रतिबद्धता बढ़ी है। यह बात केंद्र और राज्य सरकार दोनों के मामले में सच है। उन्होंने माना है कि जब तक हम वास्तव में स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत करने के लिए निवेश नहीं करते हैं तब तक हमें अपनी आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ सामाजिक और विकास गतिविधियों के लिए भी गंभीर नतीजे देखने पड़ सकते हैं। 2021 में सरकार द्वारा पेश किए गए बजट में भी यही बात स्पष्ट हुई थी। चुनौतियों का सामना करने के लिए काफी कुछ करने की आवश्यकता है और न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के दौरान बल्कि बाकी समय के दौरान भी लोगों की अन्य स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करने की जरूरत होती है।
वर्ष 2021 के बजट में हमने टीकाकरण के लिए बड़ा आवंटन देखा। क्या आपको लगता है कि इस साल भी हमें इतने आवंटन की जरूरत है?
मुझे ऐसा ही लगता है। इसकी सरल वजह यह है कि ज्यादातर उपलब्ध टीके जरूरी नहीं कि बहुत लंबे समय तक प्रतिरोधक क्षमता देंगे। इसके अलावा, कई लोग जो कोरोनावायरस से संक्रमित हो गए हैं उन्हें संक्रमण से संबंधित प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर ली है और यह एक सकारात्मक संकेत है। लेकिन इसमें भी कमी आती है। इसके अलावा, हमें इस तथ्य से सावधान रहना होगा कि हमें नए कोविड-19 स्वरूपों से चुनौती मिल रही है या नहीं जिसमें प्रतिरोधक क्षमता के बेअसर होने की पूरी गुंजाइश होती है। टीके कम बीमारी को रोकने में बिल्कुल सक्षम नहीं हैं लेकिन गंभीर बीमारी, अस्पताल में कम भर्ती होने और कम मौत जैसी स्थिति में कारगर हुए हैं। इसके अलावा बुजुर्गों की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है और उन्हें बेहतर सुरक्षा की जरूरत है। हमें नए टीकों की जरूरत है। ऐसे में हमें टीकाकरण कार्यक्रम में उचित निवेश करना होगा। बूस्टर टीका हर किसी के लिए आवश्यक नहीं हो सकता है लेकिन यह कम से कम उन लोगों के लिए होना चाहिए जो जोखिम में हैं।
अब स्वास्थ्य क्षेत्र में सबसे बड़ी कमियां क्या हैं? क्या यह वित्तीय संसाधन, अफसरशाही या फिर बुनियादी ढांचे से जुड़ी कमी है या कुछ और है?
हमारे पास कई राज्यों में शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों का अच्छा नेटवर्क नहीं है। यहां तक कि ग्रामीण इलाकों में भी ऐसे स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों की भारी कमी है। पिछले 10 वर्षों में मजबूत निवेश और सुधार के बावजूद अब भी उचित मात्रा में काम करने की आवश्यकता है। हमें उप-केंद्रों से लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों तक विभिन्न स्तरों पर बुनियादी ढांचे में सुधार करना होगा। हालांकि, यह जिला अस्पताल हैं जिन पर सबसे अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। हमने देखा कि कोविड-19 के दौरान जहां माध्यमिक स्तर का स्वास्थ्य सेवा महत्त्वपूर्ण है वहां हमारे जिला अस्पतालों ने नौकरियां तक नहीं बढ़ी हैं। इसको अद्यतन करने की जरूरत है। मेडिकल और नर्सिंग कॉलेज को उनके साथ जोड़ा जा सकता है ताकि वे हमारे स्वास्थ्य पेशेवरों और अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण का प्रमुख केंद्र बन सकें। हमें डिजिटल तकनीकों में भी निवेश करने की जरूरत है। लेकिन यह निवेश उतना कारगर नहीं होगा अगर हमारे पास पर्याप्त स्वास्थ्य कार्यबल नहीं होगा। चूंकि बड़ी संख्या में डॉक्टर बनने में समय लगता है ऐसे में हमें ऐसी तकनीक में निवेश करना चाहिए जो शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल देने में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मदद कर सके। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों से सबसे अच्छा बचाव है।
क्या आपको लगता है कि महामारी ने स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित मुद्दों से ध्यान हटा दिया है जिनका जिक्र आपने किया?
यह उपेक्षा लंबे समय से हो रही है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य अभियान का दायरा सीमित था। यह केवल माताओं और बाल स्वास्थ्य सेवाओं, कुछ संक्रामक रोगों और पोषण की कमी से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देता है। इसमें कभी भी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के करीब 85 प्रतिशत फीसदी जरूरतों पर गौर ही नहीं किया गया है। चाहे यह आंख से संबंधित समस्याएं हों या रक्तचाप, मधुमेह, गैर-संचारी बीमारी या मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित बीमारियों को अनदेखा किया गया। 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में कहा गया कि एक व्यापक योजना के दायरे में सबकुछ लाया जा रहा है। स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों का निर्माण किया जा रहा है। यह ठीक है लेकिन इस पर तेजी से क्रियान्वयन करने की जरूरत है। इसी तरह, उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों में बुनियादी जांच सेवाएं और आवश्यक दवाएं दी जाएंगी। हमारे खर्च का एक बड़ा हिस्सा ओपीडी वाले मरीजों से जुड़ा है जिसमें आवश्यक दवाएं और इलाज भी शामिल है। अगर आप इससे निपटते हैं तो आप लोगों के खर्च को काफी कम कर सकते हैं।