वित्तीय योजनाओं और उत्पादों के बारे में हिंदी में जानकारी और साधन दोनों बढ़ रहे हैं। इसका असर हिंदी क्षेत्रों तथा बाजार में भाषा की बढ़ती पैठ के रूप में देखा जा सकता है।
बीते कुछ वर्षों में शेयर बाजार तथा वित्तीय बाजारों में आम लोगों की रुचि लगातार बढ़ी है। इसमें हिंदी में बढ़ती सामग्री की काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। बैंकों, ब्रोकरेज हाउस, म्युचुअल फंड और वित्तीय सेवा प्रदाता कंपनियों द्वारा विकसित और इस्तेमाल किए जा रहे ऐप्लिकेशन में हिंदी भाषा की उपलब्धता तथा हिंदी में पठनीय सामग्री उपलब्ध होने के कारण देश के दूरदराज इलाकों में रहने वाले लोगों को भी निवेश संबंधी निर्णय लेने में सहूलियत हो रही है। यही कारण है कि जिंस से लेकर शेयर बाजार, प्राथमिक और द्वितीयक बाजार, म्युचुअल फंड तथा अन्य वित्तीय उत्पादों में खुदरा निवेशकों का योगदान काफी तेजी से बढ़ा है। पिछले वर्ष विभिन्न कंपनियों की प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश की कामयाबी में भी खुदरा निवेशकों का अहम योगदान था।
बढ़े हिंदी में वित्तीय समझ के साधन
कोरोना काल के दौरान और उसके बाद आम लोगों के बीच बाजार और निवेश को लेकर हिंदी में डिजिटल सामग्री की मांग तेजी से बढ़ी है। पहले जहां लोग ऐसी सामग्री के लिए मुख्यधारा के हिंदी समाचार पत्रों और हिंदी बिज़नेस समाचार चैनलों पर निर्भर थे, वहीं अब यह निर्भरता अब कम हुई है। अब लोगों के पास यूट्यूब चैनल, ब्लॉग, वेबसाइट, ओटीटी प्लेटफॉर्म, सोशल मीडिया आदि के माध्यम से हिंदी भाषा में अत्यधिक विविधतापूर्ण सामग्री पहुंच रही है। विशेषज्ञों के अनुसार बाजार का विस्तार पूरी तरह 3वी यानी वॉयस (आवाज), वीडियो और वर्नाकुलर (देसी भाषाएं) के आधार पर हो रहा है।
कैसे हुआ यह बदलाव?
पिछले कुछ वर्षों में आए इस बदलाव की सबसे बड़ी वजह लोगों तक इंटरनेट की आसान और सस्ती पहुंच तथा स्मार्ट फोन की घटती कीमत और बढ़ता इस्तेमाल है। इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार देश भर में फिलहाल 69 करोड़ से अधिक लोग इंटरनेट का नियमित रूप से इस्तेमाल करते हैं। इनमें 35.1 करोड़ लोग ग्रामीण तथा 34.1 करोड़ लोग शहरी क्षेत्रों के रहने वाले हैं। रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि 2025 तक देश में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की तादाद 90 करोड़ का स्तर पार कर सकती है।
गूगल की वर्ष 2021 की सालाना सर्च रिपोर्ट के अनुसार फिलहाल देश में 65 करोड़ से अधिक लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं। यह आंकड़ा हर तिमाही में औसतन 2.5 करोड़ की रफ्तार से बढ़ रहा है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि लगभग 40 प्रतिशत उपभोक्ता तब तक ऑनलाइन खरीदारी नहीं करते हैं जब तक कि उन्हें अपनी भाषा में पर्याप्त जानकारी नहीं मिल जाती है। गूगल सर्च में ट्रांसलेशन का बढ़ता इस्तेमाल भी यही बताता है कि लोग अपनी भाषा में जानकारी जुटाने की हरसंभव कोशिश करते हैं।
मोबाइल कंपनियों और ऐप की पहल
मोबाइल कंपनियों और ऐप डेवलप करने वाली कंपनियों की भी हिंदी सामग्री को बढ़ावा देने में अहम भूमिका है। मोबाइल कंपनियां अंग्रेजी के साथ हिंदी तथा अन्य भाषाओं को पर्याप्त तवज्जो दे रही हैं। कंटेंट लोकलाइजेशन को बढ़ावा दिया जा रहा है और ऐप्लिकेशन डेवलपर भी हिंदी में विभिन्न प्रकार के ऐप तथा अन्य सामग्री लेकर आ रहे हैं। गूगल इंडिक ऐप्लिकेशन की मदद से मोबाइल फोन पर हिंदी टाइप करना अंग्रेजी के समान ही आसान हो गया है। ऑनलाइन लेनदेन के बढ़ते चलन ने भी बाजार की पहुंच को दूर-दूर तक पहुंचाने में सहायता की है।
आईएएमएआई की रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में फिलहाल करीब 34.6 करोड़ लोग ऑनलाइन लेनदेन करते हैं। 2019 में यह तादाद केवल 23 करोड़ थी। ऑनलाइन लेनदेन के सुविधाजनक होने के कारण भी शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश करने वालों के बीच का अंतर कम हुआ है। निवेश करने के लिए अब लोगों को किसी वित्तीय सलाहकार के पास जाकर तकनीकी जानकारी जुटाने की जरूरत नहीं रह गई है। बल्कि उनके मोबाइल फोन पर ही सारी जानकारी उनकी भाषा में उपलब्ध है। सुविधाजनक ऑनलाइन लेनदेन ने इसे और आसान बनाया है।
वित्तीय योजनाओं और उत्पादों की ओर आम लोगों के बढ़ते रुझान को कई उदाहरणों की मदद से समझा जा सकता है:
डीमैट खातों में बढ़ोतरी
देश में मौजूद ढेरों ब्रोकरेज हाउस जहां पहले अपने ग्राहकों को केवल अंग्रेजी में सलाह तथा रिपोर्ट मुहैया कराते थे वहीं अब मांग को देखते हुए उन्होंने हिंदी में सामग्री उपलब्ध कराना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि हाल के दिनों में ज्यादातर डीमैट खाते दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों में खुले हैं। अगस्त 2022 के अंत तक देश में कुल मिलाकर 10.05 करोड़ डीमैट खाते थे। अकेले अगस्त माह में 22 लाख नये डीमैट खाते खोले गए हैं।
नैशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (एनएसडीएल) और सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विस लिमिटेड (सीडीएसएल) के आंकड़ों के मुताबिक करीब ढाई साल की अवधि में देश में डीमैट खातों की संख्या में करीब 150 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। मार्च 2020 तक देश में डीमैट खातों की संख्या 4.09 करोड़ थी। वित्त वर्ष 19-20 में 50 लाख नए डीमैट खाते खुले, 20-21 में 1.5 करोड़ तथा 21-22 में तीन करोड़ खाते खुले।
म्युचुअल फंड के जरिये निवेश में जबरदस्त इजाफा
एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) की मासिक रिपोर्ट के अनुसार जुलाई 2022 में म्युचुअल फंड खातों की कुल संख्या पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 29 फीसदी बढ़कर रिकॉर्ड 13.55 करोड़ तक जा पहुंची। खुदरा निवेशकों के म्युचुअल फंड खातों (फोलियो) की कुल संख्या भी बढ़कर 10.80 करोड़ की रिकॉर्ड ऊंचाई तक पहुंच गयी। खुदरा निवेशकों की बढ़ती भागीदारी की पुष्टि इस बात से भी होती है कि जुलाई में एसआईपी (सिप) की प्रबंधन योग्य परिसंपत्ति का आंकड़ा पहली बार छह लाख करोड़ रुपये के स्तर को पार कर गया। एसआईपी खातों की संख्या भी बढ़कर अब तक के उच्चतम स्तर पर यानी 5.61 करोड़ तक चली गई। ये आंकड़े यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि छोटे-छोटे शहरों के निवेशक म्युचुअल फंड योजनाओं में निवेश को लेकर बहुत अधिक उत्साहित हैं। जाहिर है इसमें हिंदी सामग्री की भूमिका की अनदेखी नहीं की जा सकती है।
जिंस बाजार में भागीदारी
जिंस यानी कमोडिटी एक्सचेंजों पर भी कारोबार (खासकर एग्री कमोडिटी) में बढ़ोतरी इस बाजार को लेकर आम लोगों के बढ़ते रुझान को दिखाता है। एनसीडीईएक्स के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2021-22 में एक्सचेंज के रोज के औसत कारोबार में 47 फीसदी की तेजी दर्ज की गई और यह कोविड के पहले के स्तर से ऊपर चला गया। यह स्थिति तब है जब कई अहम जिंस के कारेाबार पर प्रतिबंध लगा हुआ है। कमोडिटी डेरिवेटिव मार्केट के एग्री डेरिवेटिव क्षेत्र में 80 फीसदी कब्जा इसी एक्सचेंज का है। ओरिगो कमोडिटीज़ के सह-संस्थापक सुनूर कौल कहते हैं, ‘पिछले कुछ वर्षों में संचार माध्यमों के विकास के साथ देश में हिंदी को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ी है और यही वजह है कि कारोबारी गतिविधियों में हिंदी की भागीदारी बढ़ रही है।’
कौल कहते हैं, ‘अगर हम अपने कारोबार की बात करें तो देशभर में हमसे जुड़ा कारोबारी तबका हिंदी बोलता और समझता है। यही वजह है कि हम उनके लिए अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी में भी कमोडिटीज़ की रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं और साथ ही उनके लिए हिंदी में वीडियो भी बना रहे हैं। कंपनी की बैठकों में भी हिंदी को बढ़ावा दिया जाता है।’
वहीं फिनसेफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की संस्थापक मृण अग्रवाल कहती हैं, ‘व्यापक पहुंच के लिए पर्सनल फाइनैंस (पीएफ) सामग्री का हिंदी में होना अनिवार्य है। मुख्यधारा के मीडिया और सोशल मीडिया में बहुत सारी हिंदी सामग्री उपलब्ध है लेकिन बचत, निवेश, उधार और वित्तीय नियोजन पर ऐसी सामग्री की आवश्यकता है जो सरल और समझने में आसान हो।’
कुल मिलाकर बाजार और हिंदी दोनों अब एक दूसरे की आवश्यकता बन गए हैं और एक दूसरे के साथ से दोनों लाभान्वित हो रहे हैं।
