Business Standard Manthan 2024: कारोबार का मकसद क्या होता है? अगर इसका मकसद पैसे कमाना है तो कोई व्यक्ति किसी भी तरह की कंपनी स्थापित कर सकता है। लेकिन मीडिया कंपनी का मकसद लोगों को सूचनाएं देना, शिक्षित करना और मनोरंजन प्रदान करना होता है। बिज़नेस स्टैंडर्ड के पूर्व संपादक और प्रकाशक टीएन नाइनन ने कहा, ‘अगर आपका यह मिशन है, तो आप इससे संचालित होते हैं और आप धन के लिए इसे कुर्बान नहीं करते हैं।’
वह बिज़नेस स्टैंडर्ड ‘मंथन’ के उद्घाटन सत्र में बोल रहे थे। नई दिल्ली में बुधवार को दो दिन का ‘मंथन’ कार्यक्रम शुरू हुआ, जिसमें साल 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने के खाके पर चर्चा हो रही है।
नाइनन 1992 में बिज़नेस स्टैंडर्ड अखबार से सलाहकार के रूप में जुड़े और जल्द ही वह इसके संपादक बन गए, जब पूर्वी भारत के बिज़नेस अखबार की छवि को तोड़ते हुए इसका दिल्ली संस्करण शुरू हुआ। वह संपादकीय और व्यावसायिक संचालन के बीच तथाकथित चीनी दीवार – एक काल्पनिक लेकिन दुर्गम बाधा – के अपने विश्वास पर अड़े रहे।
नाइनन ने कहा, ‘मैंने इस मसले पर निरपेक्षता पर जोर दिया।’ उस दौर में संपादकीय और अखबार के कारोबार के बीच की सीमा खत्म होने लगी थी और तमाम अखबार इससे प्रभावित हुए। 1990 के दशक में अखबार की कीमत में कमी की गई, ताकि प्रसार बढ़े।
इसकी वजह से विज्ञापन पर निर्भरता बढ़ गई। इसमें हैरानी की बात नहीं कि विज्ञापन देने वालों ने दबाव बनाना शुरू किया, जिसे संपादकीय टीम भी महसूस करती थी। पेड न्यूज की समस्या शुरू हो गई और इससे जुड़े हर तरह के समझौते होने लगे।
नाइनन ने कहा, ‘हम इस तरह की गतिविधियों से पूरी तरह दूर रहे। संपादकीय की प्रमुखता बनी रही।’ उन्होंने कहा कि इसकी वजह से अकिला उरणकर और उनकी टीम की दिक्कतें बढ़ने लगीं, जो कारोबार प्रमुख थीं। लेकिन इस दौरान बिज़नेस स्टैंडर्ड की विश्वसनीयता ही उसकी पहचान बन गई। विज्ञापन के लोग भी विश्वसनीय अखबार का हवाला देकर विज्ञापन लाने लगे। लेकिन सवाल यह है कि अगर यह तरीका काम करता है, तो दूसरे अखबारों ने एक प्रतिष्ठित और विश्वसनीय ब्रांड बनाने के इस तरीके का अनुसरण क्यों नहीं किया, जिसमें संपादकीय व कारोबार की अलग-अलग सीमाएं हों?
इसका जवाब उरणकर ने दिया, जो बुधवार के इस सत्र की चर्चा में शामिल थीं। उन्होंने कहा कि बिज़नेस स्टैंडर्ड ने एक विश्वसनीय अखबार के रूप में खुद को स्थापित किया, लेकिन इसकी एक कीमत चुकानी पड़ी और धन का लोभ छोड़ना पड़ा।
बिज़नेस स्टैंडर्ड अपने उतार-चढ़ाव के दौर में अपने सिद्धांतों पर मजबूती से टिका रहा और तमाम खराब दौर भी देखे।
नाइनन 1992 में उस समय बिज़नेस स्टैंडर्ड से जुड़े, जब भारत की अर्थव्यवस्था बदलाव के दौर से गुजर रही थी। 1991 में आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई। शेयर बाजार चढ़ रहा था। कारोबार से जुड़ी खबरों और इसे लेकर सरकार के नीतिगत फैसलों में लोगों की दिलचस्पी बढ़ रही थी। यह अखबारों के लिए पांव जमाने के हिसाब से बेहतर दौर था।
27 मार्च, 1975 को शुरू हुआ बिज़नेस स्टैंडर्ड राष्ट्रीय अखबार बनना चाहता था। इसके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था, क्योंकि उसी दौर में इकनॉमिक टाइम्स राष्ट्रीय स्तर पर पांव पसार रहा था।
लेकिन सब कुछ योजना के मुताबिक नहीं चला। 1997 में अखबार के मालिकान बदल गए, जब आनंद बाजार पत्रिका ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बेचने का फैसला किया। बैंकर उदय कोटक ने इस शर्त पर अखबार खरीदा कि नाइनन इस कंपनी को चलाएंगे। नई कंपनी के रूप में बिज़नेस स्टैंडर्ड ने आकार लिया और नाइनन इस अखबार के संपादक के साथ प्रकाशक बने, जो भारतीय पत्रकारिता में एक अनूठा संयोग था।