भारत पर रूस से तेल की खरीद रोकने के लिए अमेरिका के दबाव के बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को कुआलालंपुर में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में तेजी से सिकुड़ते ऊर्जा व्यापार पर अफसोस जताया और कहा कि इस वजह से ऊर्जा बाजार में विकृतियां, आपूर्ति श्रृंखला में अविश्वसनीयता एवं बाजारों तक पहुंच में बाधा उत्पन्न हो रही है।
पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में जयशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। यहां अपने राष्ट्रीय बयान में उन्होंने रूसी कच्चे तेल की खरीद पर पश्चिमी देशों के दोहरे मानदंडों का उल्लेख किया। जयशंकर ने कहा, ‘सिद्धांतों को चुनिंदा तरीके से लागू किया जाता है। जो दूसरों को उपदेश दिया जाता है, उसका स्वयं पालन करना आवश्यक नहीं समझा जाता।’
जयशंकर भारत पर अमेरिकी टैरिफ संबंधी एकतरफा फैसले की पहले भी आलोचना कर चुके हैं, जिसमें अमेरिका ने भारत पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत शुल्क लगाया है, जबकि कुछ यूरोपीय देशों और चीन को इससे छूट दी गई जबकि वे भी रूस से कच्चा तेल खरीद रहे हैं। भारत ने अमेरिकी कार्रवाई को ‘अनुचित, अनुचित और अनुचित’ बताया है।
जयशंकर ने महत्त्वपूर्ण खनिजों के आयात में भारत की कठिनाइयों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा, ‘हम जटिल समय में मिल रहे हैं। आपूर्ति श्रृंखलाओं की विश्वसनीयता और बाजारों तक पहुंच के बारे में चिंताएं बढ़ी हैं।’ उन्होंने कहा कि तकनीक के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बहुत तेज हो गई है तथा प्राकृतिक संसाधनों की खोज और भी अधिक।
इससे पहले यहां जयशंकर ने पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के मौके पर अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो के साथ बातचीत की। यह बैठक भारत और अमेरिका के बीच एक व्यापार समझौते पर मतभेदों को हल करने और भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद के संदर्भ में हुई। पिछले हफ्ते अमेरिका ने दो रूसी तेल निर्यातकों, रोसनेफ्ट और लुकऑयल पर प्रतिबंध लगाए। इसका असर भारतीय रिफाइनरों द्वारा रूसी कच्चे तेल की खरीद पर पड़ सकता है।
विदेश मंत्री ने सोशल मीडिया पर कहा, ‘कुआलालंपुर में सोमवार सुबह अमेरिका के विदेश मंत्री रुबियो से मिलकर खुशी हुई। हमारे द्विपक्षीय संबंधों के साथ-साथ क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की सराहना की।’ लेकिन भारत या अमेरिका के विदेश विभाग ने इस बैठक के विवरण पर प्रेस बयान जारी नहीं किया।
शिखर सम्मेलन में अपने संबोधन में जयशंकर ने मौजूदा चुनौतियों का सामना करने के लिए दुनिया के बहुध्रुवीय होने की बात कही। उन्होंने यह भी कहा कि बदलाव सतत प्रक्रिया है और दुनिया बदली परिस्थितियों से निपट लेगी। जयशंकर ने कहा, ‘परिस्थिति के साथ संतुलन कायम किए जाएंगे, गणनाएं की जाएंगी, नई समझ बनेगी, नए अवसर उभरेंगे और हालात से निपटने को स्वीकार्य समाधान निकाले जाएंगे।’
उन्होंने कहा, ‘दिन के अंत में प्रौद्योगिकी, प्रतिस्पर्धा, बाजार, डिजिटलीकरण, संपर्क, प्रतिभा और गतिशीलता ऐसी वास्तविकता है, जिसे अब अनदेखा नहीं किया जा सकता।’ उन्होंने कहा कि बहुध्रुवीयता न केवल यहां रहने बल्कि सतत विकास के लिए भी जरूरी है। इन मुद्दों पर वैश्विक स्तर पर गंभीर चर्चा करने की जरूरत है। जयशंकर ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि भारत गाजा शांति योजना का स्वागत करता है और यूक्रेन में संघर्ष की जल्द समाप्ति चाहता है। उन्होंने इन संघर्षों के कारण प्रभावित लोगों को होने वाली पीड़ा और अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर इसके प्रभावों का भी रेखांकित किया।
उन्होंने कहा, ‘हम उन संघर्षों को भी देख रहे हैं जिनके देर-सबेर गंभीर परिणाम सामने आने हैं। गहरी मानवीय पीड़ा के अलावा ये संघर्ष खाद्य सुरक्षा कड़ी को कमजोर करते हैं, ऊर्जा प्रवाह को खतरे में डालते हैं और व्यापार को बाधित करते हैं।’ विदेश मंत्री ने कहा कि आतंकवाद लगातार बड़ा खतरा बना हुआ है। इसके बारे में विश्व को जीरो सहनशीलता वाला रवैया अपनाना होगा। इसमें कोई अस्पष्टता नहीं होनी चाहिए। आतंकवाद के खिलाफ हमारे बचाव के अधिकार से कभी समझौता नहीं किया जा सकता है।
जयशंकर ने कहा कि भारत पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन की गतिविधियों और भविष्य को लेकर इसके दृष्टिकोण का समर्थन करता है। उन्होंने कहा, ‘इंडो-पैसिफिक पर आसियान आउटलुक और 1982 के यूएनसीएलओएस (समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन) के प्रति हमारी साझा प्रतिबद्धता के अनुरूप समुद्री सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए हम पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं।’
जयशंकर ने कहा कि 2026 को आसियान-भारत समुद्री सहयोग वर्ष के रूप में मनाया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘विशेष रूप से अधिक राष्ट्र इंडो-पैसिफिक ओशंस इनिशिएटिव में शामिल हुए हैं।’ मंत्री ने प्रधानमंत्री मोदी के प्रस्तावों को दोहराते हुए कहा कि भारत गुजरात के प्राचीन बंदरगाह लोथल में आयोजित होने वाले ईएएस मैरिटाइम हेरिटेज फेस्टिवल की मेजबानी करेगा और समुद्री सुरक्षा सहयोग पर सातवें ईएएस सम्मेलन की मेजबानी करने का भी इरादा रखता है।
अमेरिका के विदेश मंत्री रुबियो के अलावा जयशंकर ने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज और न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन के साथ अलग-अलग बैठकें भी कीं। जयशंकर ने क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा करने के लिए जापान के विदेश मंत्री मोतेगी तोशिमित्सु और मलेशिया के विदेश मंत्री मोहम्मद हाजी हसन से भी मुलाकात की।