पिछले 12 महीनों में सोने की कीमतों ने जबरदस्त उछाल मारी है। डॉलर के मुकाबले सोने में 51% की बढ़त दर्ज की गई है, जबकि निफ्टी 50 इंडेक्स सिर्फ़ 6% ही बढ़ पाया है। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की 23 अक्टूबर की स्ट्रैटेजी रिपोर्ट के अनुसार, इस भारी अंतर ने फिर से एक पुरानी बहस को जन्म दे दिया है। जब शेयर बाजार कमजोर होता है, तो क्या निवेशकों को अपनी बचत का बड़ा हिस्सा सोने में लगाना चाहिए?
लेकिन कोटक का जवाब है, इतनी जल्दी नहीं! रिपोर्ट में कहा गया है, “शेयर निवेश हैं, सोना बीमा है।” यानी दोनों का मकसद बिल्कुल अलग है।
कोटक की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बार सोने की तेजी के पीछे ‘डर’ नहीं बल्कि निवेशकों की बढ़ती मांग है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के आंकड़ों के अनुसार, 2025 में ETF (एक्सचेंज ट्रेडेड फंड) के जरिए सोने में निवेश काफी बढ़ा है, जबकि ज्वेलरी की मांग लगभग स्थिर बनी हुई है।
कोटक का कहना है कि सोने की इस रैली के पीछे ‘करेंसी की कमजोरी’ या ‘सरकारी खर्च के डर’ जैसी दलीलें टिकती नहीं हैं। असल में पिछले तीन सालों में ज्यादातर देशों में मनी सप्लाई घटी है, बढ़ी नहीं। इसका मतलब, सोने की यह तेजी ज्यादातर FOMO (Fear of Missing Out) यानी ‘दूसरों को मुनाफा कमाते देखकर पीछे न रह जाने’ की भावना से प्रेरित है।
भारत में सोना सिर्फ निवेश नहीं, एक भावनात्मक जुड़ाव है। कोटक के आंकड़े बताते हैं कि 2011 से 2025 के बीच, भारत ने 460 अरब डॉलर के सोने और कीमती पत्थरों का आयात किया, जबकि इसी अवधि में विदेशी निवेशकों ने कुल 200 अरब डॉलर का निवेश भारतीय शेयर और बॉन्ड बाजार में किया। यानी भारतीय परिवारों ने विदेशी निवेशकों से कहीं ज्यादा पैसा सोने में लगाया।
रिपोर्ट के अनुसार, सोने की यह दीवानगी देश की अर्थव्यवस्था पर भी असर डालती है। भारत में सोने का घरेलू उत्पादन लगभग शून्य है, इसलिए जितना ज्यादा सोना खरीदा जाता है, उतना ही देश का ट्रेड डेफिसिट (व्यापार घाटा) बढ़ता है। कई बार सोने का आयात भारत के करंट अकाउंट डेफिसिट (चालू खाता घाटे) से दोगुना तक पहुंच चुका है।
कोटक का मानना है कि भले ही फिलहाल शेयर बाजार का प्रदर्शन कमजोर दिख रहा हो, लेकिन लंबी अवधि में इक्विटी ही असली संपत्ति बनाती है। रिपोर्ट के अनुसार, निफ्टी की कमाई (Earnings) FY26 में 10.4%, FY27 में 16.2%, और FY28 में 13.8% बढ़ने का अनुमान है। वैल्यूएशन भी 23.5 गुना (P/E) से घटकर FY28 तक 17.7 गुना तक आने की उम्मीद है। यानी निवेश के लिए माहौल और बेहतर हो सकता है।
दिलचस्प बात यह है कि 2025 में विदेशी निवेशक (FPI) भारतीय शेयरों से लगभग 16 अरब डॉलर निकाल चुके हैं, जबकि घरेलू निवेशक (DII) यानी भारतीय म्युचुअल फंड और इंश्योरेंस कंपनियां 70 अरब डॉलर से ज्यादा निवेश कर चुकी हैं। यह दिखाता है कि भारतीय घरानों का भरोसा अभी भी देश के शेयर बाजार पर टिका है।
कोटक की रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला आंकड़ा है। भारत के कुल घरेलू सोने का 70% हिस्सा कम आय वाले परिवारों के पास है, यानी वे जो सालाना ₹5 लाख से कम कमाते हैं (2021 के भावों पर)। इन परिवारों के लिए सोना निवेश नहीं बल्कि संकट के समय की सुरक्षा है। यानी जरूरत पड़ने पर गिरवी रखने या बेचने लायक संपत्ति। इसके उलट, ऊंची आमदनी वाले परिवार सोने को अपने निवेश पोर्टफोलियो का 5–10% हिस्सा रखते हैं, बाकी पैसा शेयर, फिक्स्ड इनकम और रियल एस्टेट में लगाते हैं।
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कोटक की सलाह साफ है