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राष्ट्र की बात: सत्ताधारी पक्ष बचाव में और विपक्ष आक्रामक

मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल में कांग्रेस के सभी विचारों को कल्पना से परे बताते हुए खारिज करने से दूरी बना ली है। अब वह उनमें से कई विचारों को लागू भी कर रही है।

Last Updated- August 11, 2024 | 9:44 PM IST
Modi will visit America at the end of the month, unlike the much publicized 'Howdy Modi' program of 2019, this time the visit will be low-profile. माह के अंत में अमेरिका जाएंगे मोदी, वर्ष 2019 के बहु प्रचारित 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम के उलट लो-प्रोफाइल होगा इस बार का दौरा

हम अक्सर क्रिकेट से जुड़े हालात और रूपकों की मदद से राजनीतिक जटिलताओं को समझने का प्रयास करते हैं। इस समय ओलिंपिक खेल और यूरो कप चल रहे हैं इसलिए हॉकी और फुटबॉल का जिक्र अधिक उचित होगा। आइए देखते हैं कि कैसे हॉकी या फुटबॉल के खेल में आने वाले बदलाव हमारी राष्ट्रीय राजनीति के परिवर्तनों को दर्शाते हैं। इनके संकेत संसद के मॉनसून या बजट सत्र में मिले हैं।

ओलिंपिक हॉकी के अंतिम आठ के मुकाबले को याद कीजिए जहां भारत को ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ करीब 42 मिनट तक केवल 10 खिलाड़ियों के साथ खेलना पड़ा था। इसका फायदा उठाते हुए ग्रेट ब्रिटेन ने लगातार हमले किए और भारत सामने आकर खेलने के लिए संघर्ष करता रहा। परंतु जब कभी भारत ने हमला किया तो खेल एकदम नाटकीय रूप से बदला नजर आया। बुरी तरह हाशिये पर धकेले जाने के बाद जवाबी हमले का ऐसा उदाहरण जबरदस्त है। बचाव के पूरे समय गोलकीपर पी आर श्रीजेश ने शानदार प्रदर्शन किया। राष्ट्रीय राजनीति में भी इस समय ऐसा ही हो रहा है।

2024 के आम चुनाव ने राष्ट्रीय राजनीति को नए सिरे से संतुलित किया है और यह बात हम 4 जून से जानते हैं। पूरा विपक्ष एकदम हाशिये पर धकेल दिया गया था और नाउम्मीद हो चुका था। तभी उसे जवाबी हमला करने का अवसर मिला। फर्क यह था कि ज्यादातर लोगों को यह उम्मीद नहीं थी कि जवाबी हमला इतना तगड़ा और प्रभावी होगा कि विजेता को अपनी योजनाएं और रणनीति बदलनी पड़ेगी। इस दौरान राहुल गांधी को एकदम अलग ढंग से देखा जा रहा है। ध्यान रहे यह वही राजनेता है जिसका हमारे इतिहास में सबसे अधिक मखौल उड़ाया गया है। अब निष्पक्ष होकर देखते हैं कि क्या हो रहा है। यहां उन विचारों और प्रचार अभियान के बिंदुओं की सूची प्रस्तुत है जो कांग्रेस के घोषणापत्र से लिए गए हैं:

  • युवाओं की बढ़ती बेरोजगारी के मद्देनजर रोजगार बढ़ाने के लिए सब्सिडी दी जाए और इंटर्नशिप की योजना बनाई जाए।
  • गरीब, बेरोजगारों और किसानों को नकद सहायता दी जाए।
  • किसानों के लिए सभी प्रमुख फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी हो और उनकी कर्जमाफी की जाए।
  • अग्निपथ योजना पर सवाल।
  • राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना और उसके बाद लाभ और सहायता का हर वर्ग को उसकी संख्या के आधार पर आवंटन करना।

इनमें से कई को भाजपा ने झूठ बताकर खारिज कर दिया। जाति से जुड़े मुद्दों की अनदेखी कर दी गई और इसके प्रतिवाद में हिंदू विचारों के उभार का सहारा लिया गया। हकीकत तो यह है कि कांग्रेस के जाति जनगणना के बाद वितरण के समाजवादी रुख को सीधे तौर पर ‘रेवड़ी’ करार देकर खाजिर कर दिया गया। आम भाषा में कहें तो कहा गया कि कांग्रेस मुफ्त उपहारों की मदद से वोट खरीदना चाहती है। अब हमें देखना होगा कि आगे चलकर क्या हुआ।

मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में उन विचारों से तेजी से दूर हुई है जिनके तहत वह राहुल गांधी और कांग्रेस के विचारों को कल्पना से परे और मजाक मानती थी। अब वह उनमें से कई को लागू कर रही है। आइए कुछ उदाहरण देखते हैं:

  • इस बजट में बेरोजगारी को लेकर उल्लेखनीय आवंटन किया गया है और वादे भी किए गए हैं। कंपनियों को अधिक लोगों को काम देने के लिए प्रोत्साहित किया गया और पांच साल में एक करोड़ लोगों को इंटर्नशिप दिलाने की योजना बनाई गई।
  • भाजपा की राज्य सरकारें, खासकर जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं वहां की सरकारें पहले ही कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा कर रही हैं। उदाहरण के लिए हरियाणा सरकार ने पहले की 14 के मुकाबले अब सभी 24 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा दिया है।
  • अगर आप इन दिनों अखबारों में आ रहे पूरे पन्ने के विज्ञापनों को देखेंगे तो आप पाएंगे कि हरियाणा में मुफ्त उपहारों की झड़ी लगी है। 46 लाख परिवारों को केवल 500 रुपये में एलपीजी सिलिंडर दिए जा रहे हैं। स्कूली छात्राओं के लिए नि:शुल्क दूध योजना और नहर जल उपकर की माफी।
  • एक लाख रुपये तक की आय वाले परिवारों के सभी सदस्यों को हर माह 1,000 किमी नि:शुल्क बस यात्रा की सुविधा। भाजपा दिल्ली, कर्नाटक और तेलंगाना में ऐसी ही योजनाओं का मखौल उड़ा चुकी है।
  • हरियाणा ने पिछड़ा वर्ग की क्रीमी लेयर आय सीमा को भी छह लाख रुपये से बढ़ाकर आठ लाख रुपये सालाना कर दिया है। महाराष्ट्र पर ध्यान देना अधिक श्रेयस्कर होगा। वह पहले ही ऐसी रेवड़ियां घोषित कर चुकी है जो सालाना 96,000 करोड़ रुपये का बोझ डालेंगी। उनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:
  • एक खास आय वर्ग के नीचे की महिलाओं, युवाओं, वरिष्ठ नागरिकों तथा वरकारी संप्रदाय (करीब 16 लाख जातिविहीन लोगों का पंथ) को नकद हस्तांतरण तथा सब्सिडी दी जाएगी। वरकारियों को अपने सालाना पंढरपुर तीर्थ के लिए भी सब्सिडी दी जाएगी। संभव है 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले योगी भी कांवड़ियों को भी ऐसी ही सुविधा दे दें।
  • 21 से 65 आयु वर्ग की जिन महिलाओं की सालाना आय 2.5 लाख रुपये से कम हो उनको हर माह 1,500 रुपये का स्टाइपेंड दिया जाएगा। इसकी लागत करीब 46,000 करोड़ रुपये होगी।
  • कक्षा 12वीं पास करने वालों को छह माह तक 6,000 रुपये, डिप्लोमाधारियों को 8,000 रुपये और स्नातकों को 10,000 रुपये मासिक सहायता दी जाएगी ताकि वे कौशल प्रशिक्षण ले सकें।
  • पांच लोगों वाले हर परिवार को साल में तीन एलपीजी सिलिंडर नि:शुल्क दिए जाएंगे।

इन सभी उदाहरणों से यही पता चलता है कि एक दशक तक रक्षात्मक रहा विपक्ष ही इस समय एजेंडा तय कर रहा है। भाजपा जो पहले ऐसे वितरण का मखौल उड़ाती थी वह अब खुद वोट जुटाने के लिए रेवड़ी बांटने में लगी है। विपक्ष ने सत्ताधारी दल को अपनी स्थिति बदलने के लिए विवश किया है।
अगर आप मानते हैं कि यह केवल चुनाव की वजह से हो रहा है तो हम और ठोस बात उठा सकते हैं और वह है हमारी राजनीति में वैचारिक मुद्दे। प्रयास करते हैं यह जानने का कि क्या उपरोक्त दलील यहां भी लागू होती है।

सन 1989 से ही दो बातें यह तय करती रही हैं कि भारत पर कौन शासन करेगा: एक यह कि क्या धार्मिक आधार पर एकजुट लोगों को जाति के आधार पर बांटा जा सकता है? या फिर क्या जाति के आधार पर बंटे हुए लोगों को धर्म के आधार पर एक सूत्र में पिरोया जा सकता है? हमने अक्सर कहा है कि बीते 25 सालों से जाति जीत रही है। मोदी के उभार ने जातियों में बंटे हिंदू मतों को एकजुट किया। हिंदुत्व की चर्चा ने तब जोर पकड़ा। राहुल गांधी ने जाति जनगणना के नारे के साथ इसे चुनौती दी। उन्होंने इसे संसद में उठाया और जोर देकर कहा कि उनकी पार्टी इसी संसद से जाति जनगणना कराएगी। भाजपा के पास इसका जवाब नहीं है।

जाति के मसले पर जवाब नहीं होने के कारण ही भाजपा धर्म पर बहुत अधिक जोर दे रही है। नया वक्फ विधेयक, असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा की ‘भूमि जिहाद’ की बातें, योगी द्वारा ‘लव जिहाद’ के मामलों में कानून में संशोधन करके आजीवन कारावास की सजा देने का प्रस्ताव, राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा द्वारा एक समुदाय पर आबादी नियंत्रित नहीं करने का आरोप आदि इसी वजह से उठाए गए रक्षात्मक कदम हैं।

मेरे मुताबिक यह भ्रम की स्थिति है क्योंकि आम चुनाव में यह कारगर नहीं रहा। भाजपा फिर जाति के प्रश्न से जूझ रही है। जाति जनगणना को भूल जाइए, पार्टी तो 2021 में ही होने वाली सामान्य जनगणना तक की बात नहीं कर रही। भाजपा ने खुद पिछड़ी जातियों की उपश्रेणियों की बात की और दिल्ली उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी के अधीन इसके परीक्षण के लिए एक आयोग गठित किया। उसने अब तक रिपोर्ट नहीं दी। अगर उपश्रेणियां बनेंगी तो जाति जनगणना भी करनी होगी। यह राहुल गांधी की जीत होगी। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो हिंदू मतों का जातीय विभाजन जोर पकड़ेगा।

विपक्ष आराम से प्रतीक्षा कर सकता है क्योंकि उसका किसी हिंदीभाषी राज्य में शासन नहीं है। भाजपा संविधान संशोधन के बारे में सोच भी नहीं सकती है क्योंकि चुनाव प्रचार में यह बहुत बड़ा मुद्दा था। उसे अभी भी बढ़त हासिल है लेकिन वह रक्षात्मक रुख अपनाकर चुनौती देने वालों से निपटने के लिए जूझ रही है।

First Published - August 11, 2024 | 9:44 PM IST

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