ट्रंप प्रशासन ने नए आवेदकों के लिए एकमुश्त लगने वाला एच-1बी वीजा शुल्क बढ़ाकर 1,00,000 डॉलर कर दिया है। पहले यह फीस वीजा के लिए आवेदन करने वाली कंपनी के आकार के अनुसार 2,000 से 5,000 डॉलर तक हुआ करती थी। ट्रंप प्रशासन का यह नया फैसला भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कंपनियों को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेगा जो अमेरिका में अपनी परियोजनाएं क्रियान्वित करने के लिए ऐसे वीजा पर बहुत अधिक निर्भर रहती हैं। अमेरिका में कौशल की कमी दूर करने के लिए एच-1बी वीजा शुरू किया गया था।
भारतीय आईटी एवं आईटी-सक्षम सेवाओं (आईटीईएस) में काफी तेजी आई है जो पिछले 30 वर्षों में 12.1 फीसदी वार्षिक चक्रवृद्धि दर से बढ़ रही हैं। इन सेवाओं का बड़े पैमाने पर अमेरिका को निर्यात होता है। हाल के वर्षों में भारत से सॉफ्टवेयर सेवाओं के निर्यात में अमेरिकी की हिस्सेदारी 54-55 फीसदी रही है। भारत ने वर्ष 2022-23 में अमेरिका को 100 अरब डॉलर मूल्य से अधिक की सेवाओं का निर्यात किया। भारत की अर्थव्यवस्था की सूरत बदलने में आईटी क्षेत्र ने प्रमुख भूमिका निभाई है।
भारतीय आईटी क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.4 फीसदी योगदान देता है और 2026 तक इसके बढ़कर 10 फीसदी तक पहुंचने का अनुमान जताया जा रहा है। आईटी क्षेत्र लगभग 55 लाख प्रत्यक्ष नौकरियां प्रदान करता है। वर्ष 2022-23 में आईटी सेवाओं का निर्यात 194 अरब डॉलर था जिससे भारत का चालू खाता अधिक मजबूत बना हुआ है। अब ट्रंप द्वारा लगाए गए शुल्कों के साथ 50 फीसदी से अधिक आईटी सेवा निर्यात पर प्रतिकूल असर होने के जोखिम के बाद भारत के जीडीपी और रोजगार पर इसका प्रभाव पड़ सकता है।
भारतीय आईटी सेवाओं ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। नैसकॉम के एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2022 में भारतीय आईटी कंपनियों एवं उनके ग्राहकों ने अमेरिका बिक्री में 396 अरब डॉलर मूल्य का योगदान किया और 16 लाख नौकरियों को सहारा दिया। वर्ष 2021 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में उन्होंने 198 अरब डॉलर से अधिक का योगदान दिया। इस प्रकार, अमेरिका को भारत से आईटी एवं आईटी सक्षम सेवाओं का निर्यात दोनों ही देशों के लिए लाभ की स्थिति प्रदान करता है।
अमेरिकी कंपनियों के लिए भारतीय आईटी कंपनियों की जगह दूसरी देशों की कंपनियों की सेवाएं लेना आसान नहीं है इसलिए वीजा शुल्क में इस तरह की तेज वृद्धि से बचने या उसे प्रबंधित करने के लिए वैकल्पिक तरीके खोजे जा सकते हैं। सबसे पहले भारतीय आईटी कंपनियां भारत से ही अपने अमेरिकी ग्राहकों को सेवाएं दे सकती हैं जैसा कोविड महामारी के दौरान हुआ था।
इससे अमेरिका में उनकी उपस्थिति कम हो जाएगी। अमेरिकी नागरिकता और आव्रजन सेवा डेटा के अनुसार टीसीएस और इन्फोसिस जैसी शीर्ष आईटी कंपनियों की पिछले पांच वर्षों में एच-1बी फाइलिंग में औसतन 46 फीसदी कमी आई है। आने वाले समय में इस चलन को गति मिल सकती है।
दूसरी बात, प्रमुख आईटी कंपनियां एच-1बी वीजा पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए अमेरिका में स्थानीय नियुक्तियों में बढ़ोतरी कर सकती हैं। वास्तव में यह बताया गया है कि प्रमुख भारतीय आईटी कंपनियों में से एक एचसीएल टेक के अमेरिका में कुल कर्मचारियों में 80 फीसदी स्थानीय लोग हैं। तीसरी बात, आईटी कंपनियां अमेरिका के पास के देशों जैसे कनाडा से लोगों की भर्ती करने पर विचार कर सकती है। चौथी बात, इससे भारत में वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) को काफी बढ़ावा मिलने की संभावना है।
हालांकि, भारत के दृष्टिकोण से जीसीसी में वेतन उतने आकर्षक नहीं हो सकते हैं जितने कि अमेरिका में भारतीय आईटी कंपनियों द्वारा नियोजित ऑन-साइट पेशेवरों के लिए है मगर जीसीसी आईटी एवं आईटी-सक्षम सेवाओं के लिए दूसरा सबसे अच्छा विकल्प बन सकता है। विशेष रूप से छोटी आईटी कंपनियों को ऐसे चलन से अधिक लाभ होने की संभावना है।
भारतीय कंपनियां अमेरिका में मांग की बदौलत आगे बढ़ती रही हैं लेकिन हाल के घटनाक्रम उनके लिए एक चेतावनी हैं और यह उनकी कमजोरी को उजागर करते हैं। हमेशा से कंपनियों ने बुनियादी सेवाएं प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया है। 30 से अधिक वर्षों के संचालन के बाद अब यह उनके लिए मूल्य श्रृंखला में ऊपर बढ़ने और बुनियादी सेवाएं प्रदान करने के साथ-साथ वैश्विक मांग वाले नवीन उत्पाद बनाने के लिए एक अधिक लचीला व्यवसाय ढांचा तैयार करने का समय है। प्रमुख भारतीय कंपनियों को गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, एनवीडिया और ओपन एआई जैसी वैश्विक कंपनियां बनने की आकांक्षा रखनी चाहिए।
वैश्विक मांग के साथ नवीन उत्पाद पेश करने के लिए भारतीय आईटी कंपनियों को अनुसंधान और विकास पर खर्च बढ़ाने की जरूरत होगी। भारतीय कंपनियां अपने राजस्व का लगभग 1 फीसदी ही आरऐंडडी पर खर्च करती हैं और यह प्रवृत्ति 2021 से नहीं बदली है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने दीर्घकालिक नवीन योजनाएं एवं उत्पाद तैयार करने के बजाय अपने शेयरधारकों को अल्पकालिक लाभ देने को प्राथमिकता दी है। नकदी से भरपूर होने के बावजूद उन्होंने मुनाफे काे दोबारा निवेश करने के बजाय शेयरों की पुनर्खरीद और पर्याप्त लाभांश का भुगतान करने का विकल्प चुना है।
उदाहरण के लिए शीर्ष पांच भारतीय कंपनियों ने वर्ष2017 से अब तक 1.10 लाख करोड़ रुपये से अधिक के शेयर वापस खरीदे हैं। इसी तरह, शीर्ष तीन आईटी कंपनियों ने 2020-21 से अब तक 41,000 करोड़ से अधिक के लाभांश दिए हैं। अमेरिका में आईटी कंपनियां काफी अधिक यानी अपने राजस्व का 13 से 15 फीसदी हिस्सा आरऐंडडी पर खर्च करती हैं।
भारतीय कंपनियों को आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) सहित नए उत्पाद तैयार करने के लिए शोध एवं विकास (आरऐंडडी) में अधिक निवेश करना होगा। इसके लिए उन्हें अपनी ताकत (मजबूत नकदी प्रवाह और अपेक्षाकृत कम वेतन) का लाभ उठाना होगा। यह मानने के कई कारण हैं कि आरऐंडडी में रणनीतिक निवेश के साथ वे अमेरिका और यहां तक कि चीन में अपने समकक्षों की तुलना में बहुत कम लागत पर एआई जैसे नवीन उत्पादों को ला सकती हैं।
संक्षेप में, एच-1बी वीजा शुल्क में बढ़ोतरी ने भारतीय कंपनियों के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। अत्यधिक अनिश्चित वैश्विक आर्थिक वातावरण में अपनी वृद्धि बनाए रखने के लिए उन्हें पारंपरिक सेवाओं के साथ-साथ नवाचार पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अपने व्यवसाय मॉडल में बदलाव करने की जरूरत है।
(लेखक सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकनॉमिक प्रोग्रेस, नई दिल्ली में सीनियर फेलो हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)