लेबनान में मध्य सितंबर में दो दिनों तक पेजर और वॉकी-टॉकी में विस्फोट से पश्चिम एशिया सहित पूरी दुनिया सहम गई। इस प्रकरण से पश्चिम एशिया में जारी टकराव में एक नया पहलू जुड़ गया है। इन विस्फोटों में 40 लोग मारे गए और हजारों घायल हुए। गनीमत थी कि ऐसा कोई उपकरण उड़ान के दौरान किसी हवाई जहाज में मौजूद नहीं था, वरना एक भीषण दुर्घटना हो सकती थी।
खबरों के अनुसार हिजबुल्ला ने फरवरी 2024 से पेजर और वॉकी-टॉकी का इस्तेमाल शुरू किया था। हिजबुल्ला को डर था सेलफोन इस्तेमाल करने पर इजरायल की सुरक्षा एजेंसियां उनके ठिकाने तक आसानी से पहुंच सकती थीं। जिन पेजरों में विस्फोट हुए थे उन्हें ताइवान की कंपनी गोल्ड अपोलो ने ‘मेड-इन-ताइवान’ ब्रांड नाम से उतारा था। मगर इन्हें हंगरी स्थित बीएसी कंसल्टिंग नाम की इकाई ने ‘विनिर्मित’ किया था। हालांकि, बीएसी और हंगरी सरकार दोनों ने यह दावा किया कि ये उपकरण किसी और ने बनाए थे और बीएसी केवल इन्हें बेच रही थी।
अमेरिका के समाचार पत्र द न्यूयॉर्क टाइम्स का कहना है कि इजरायल की एक एजेंसी ने विनिर्माण इकाई तैयार की और इन उपकरणों में प्लास्टिक विस्फोटक रख दिए। गोल्ड अपोलो का कहना है कि हंगरी और ताइवान के बीच पेजर से जुड़े वित्तीय लेन-देन पश्चिम एशिया की वित्तीय इकाइयों के माध्यम से हुए थे।
यह बात तो बिल्कुल साफ है कि इससे पहले कि ये पेजर और वॉकी-टॉकी लेबनान में हिजबुल्ला तक पहुंच पाते बीच में ही किसी ने कारनामा कर दिया था। मगर आपूर्ति श्रृंखला और लेन-देन व्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था में विभिन्न देशों के बीच आदान-प्रदान के स्थापित तौर तरीकों की तरह ही होती हैं।
किसी एक देश की कोई कंपनी कई अन्य देशों में अपने उत्पाद बेच सकती है और कई स्रोतों से पुर्जे मंगाकर उन्हें किसी दूसरी जगह तैयार भी कर सकती है। इससे संबंधित बौद्धिक संपदा या संपदाएं भी कई देशों के न्याय क्षेत्रों के दायरे में आ सकती हैं।
मगर ये सारी बातें अंत में लागत एवं ढुलाई साधन (लॉजिस्टिक) पर आकर ठहर जाती हैं। किसी देश में मानव श्रम सस्ता हो सकता है तो कोई दूसरा कुछ खास पुर्जे तैयार करने के लिहाज से अधिक सस्ता साबित हो सकता है। शोध एवं विकास कार्य भी किसी भिन्न देश में हो सकते हैं। माल ढुलाई, कर एवं शुल्क दरें और व्यापार समझौतों की भी विशिष्ट भूमिकाएं होती हैं।
उदाहरण के लिए भारत इलेक्ट्रॉनिकी, दूरसंचार नेटवर्किंग उपकरणों एवं अन्य वस्तुओं का विनिर्माण कर मूल्य व्यवस्था में आगे बढ़ना चाहता है। देश में विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन एवं अन्य नीतिगत सुविधाएं दी जा रही हैं। भारत वाहनों के निर्यात का एक बड़ा स्रोत है और कुछ कंपनियां भारत में अपने संयंत्रों से केवल वाहनों के निर्यात पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।
भारत में मौजूद इकाइयों को कई पुर्जे स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध हो जाते हैं जबकि कई उपकरण बाहर से भी मंगाए जाते हैं। इसके बाद स्थानीय श्रमिक बाकी बचे कार्य को अंजाम दे देते हैं।
इससे आर्थिक क्षमता में इजाफा होता है। मगर इसका यह मतलब भी है कि कोई उत्पाद तैयार करने के लिए जो उपकरण एक जगह लगाए जाते हैं उनमें कई दूसरे स्थानों से मंगाए पुर्जे लगे हो सकते हैं। उदाहरण के लिए कोरिया के किसी उपकरण में थाईलैंड या वियतनाम के पुर्जे लगे हो सकते हैं।
इसके अलावा दूसरी जगहों में स्थित इकाइयों के जरिये इन पुर्जों का विपणन भी तर्कसंगत लगता है। कार जैसी आधुनिक उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक वस्तु या नेटवर्क उपकरण में हजारों पुर्जे लगे होते हैं इसलिए आपूर्ति व्यवस्था को सीधा-सपाट रखना लगभग नामुमकिन होता है।
कोविड महामारी के दौरान आपूर्ति व्यवस्था टूटने से वैश्विक अर्थव्यवस्था को गहरा झटका लगा था। दुनिया में सेमीकंडक्टर और सक्रिय दवा सामग्री की उपलब्धता सदैव कम रही है, कोविड के कारण दूसरी औद्योगिक वस्तुएं की आपूर्ति भी प्रभावित हो गई थी। इसका कारण यह था कि जिन जगहों से ये वस्तुएं आती थीं उनमें कहीं न कहीं लॉकडाउन लगा हुआ था।
लगभग सभी स्मार्ट वस्तुओं में चिप एवं सेंसर का इस्तेमाल होने से समस्या और बढ़ जाती है। मोटे तौर पर कहें तो चिप का इस्तेमाल अब हर जगह होने लगा है और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) की मदद से चिप का इस्तेमाल समय के साथ बढ़ता ही जा रहा है। चिप अंदर लगे सॉफ्टवेयर से चलते हैं जिसे समझना या ज्यादातर मामलों में बदलना असंभव होता है। लिहाजा उनमें कुछ उनमें मैलवेयर हो सकते हैं जिनका पता लगा लगभग असंभव होता है।
याद रहे कि पेजर में विस्फोट होने से पहले तक वे बखूबी काम कर रहे थे। अगर किसी चिप में पहले से कोई कोड डाल दिया जाए तो आपात स्थिति में इसका कार्य प्रभावित किया या रोका जा सकता है। ऐसे कोड या मैलवेयर की आशंका के कारण ही कई देश चीन से दूरसंचार एवं बिजली उपकरण मंगाने से पहले कई बार सोचते हैं।
यह एक खतरनाक स्थिति है जिसका जिक्र कई विश्लेषकों ने किया है। पेजर विस्फोट के बाद यह वास्तविकता बन गई है। प्रत्येक सुरक्षा एजेंसी और आतंकवादी नेटवर्क इस स्थिति का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। चूंकि, किसी भी उपकरण में लगे सभी इलेक्ट्रॉनिक पुर्जों की जांच कर पाना मुश्किल है इसलिए यह स्थिति और भयावह हो जाती है। वैश्विक अर्थव्यवस्था उन नए खतरों की जद में आ गई हैं जिन्हें समझ पाना भी अत्यधिक मुश्किल है।