facebookmetapixel
Asia Cup 2025: एशिया कप भारतीय क्रिकेट टीम के नाम, फाइनल मुकाबले में पाकिस्तान को पांच विकेट से पटकाViasat देगी सैटेलाइट कम्युनिकेशन को नया आकार! भारत में स्टार्टअप के साथ मिनी जियोसैटेलाइट बनाने के लिए कर रही बातचीतथर्ड पार्टी दवा उत्पादन को मिलेगा दम, नए बाजारों में विस्तार को बढ़ावा मिलने की उम्मीदBS Poll: रीपो रेट में बदलाव के आसार नहीं, महंगाई पर दिखेगा जीएसटी कटौती का असर!HAL: तेजस एमके-1ए और बढ़ते ऑर्डर बुक के साथ 20% रेवेन्यू ग्रोथ और मार्जिन में सुधार की उम्मीदगायतोंडे की 1970 की पेंटिंग 67.08 करोड़ रुपये में बिकी, भारतीय कला की नई कीर्तिमान कायमPM मोदी बोले: RSS की असली ताकत त्याग, सेवा और अनुशासन में निहित, 100 वर्ष की यात्रा प्रेरणादायकलगातार कमजोर प्रदर्शन का कारण बताना मुश्किल, शेयर विशेष रणनीति पर जोर: सायन मुखर्जीUNGA में बोले जयशंकर: भारत अपने विकल्प चुनने को स्वतंत्र, ग्लोबल साउथ की आवाज बनाए रखेगाKarur Stampede: 40 की मौत, 60 घायल, PM मोदी ने 2-2 लाख रुपये के मुआवजे का किया ऐलान

भारतीय मसालों का अतीत और वर्तमान: ग्लोबल बाजारों में जगह बनाने के लिए और प्रयास करें

पिछले एक दशक में मसालों का उत्पादन करीब 60 लाख टन से बढ़कर 1.2 करोड़ टन यानी दोगुना हो गया है। बता रहे हैं सूरिंदर सूद

Last Updated- September 28, 2025 | 10:18 PM IST
Spices
Photo: Shutterstock

भारत का मसाला क्षेत्र लंबे समय से काफी अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। वर्ष 2024-25 में इसने न केवल उत्पादन ब​ल्कि निर्यात में भी नया रिकॉर्ड बनाया है। लेकिन इस क्षेत्र के और विस्तार के लिए अभी कुछ कमियां दूर करने की जरूरत है। पिछले एक दशक में मसालों का उत्पादन करीब 60 लाख टन से बढ़कर 1.2 करोड़ यानी दोगुना हो गया है। यही नहीं, इस दौरान निर्यात की मात्रा में 88 फीसदी और मूल्य में 97 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2024-25 में लगभग 4.72 अरब डॉलर मूल्य के 17.9 लाख टन मसालों का निर्यात किया गया।

उत्पादन और निर्यात में यह शानदार वृद्धि न केवल भारत को ‘मसालों की भूमि’ के रूप में बल्कि वैश्विक स्तर पर अग्रणी उत्पादक एवं निर्यातक के तौर पर इसकी छवि को और मजबूत करती है। यह मसालों की खुशबू ही है जिसने 15वीं शताब्दी के अंत में महान वास्को डी गामा सहित कई खोजकर्ताओं को इस धरती की ओर आक​र्षित किया।
लेकिन मसाला क्षेत्र से जुड़े विश्लेषक मौजूदा ​​स्थिति से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हैं। उनका स्पष्ट कहना है कि मसालों के उत्पादन और कारोबार को सुदृढ़ करने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। अनुकूल जलवायु, वार्षिक एवं बारहमासी मसाला फसलों को उगाने की लंबी परंपरा, सकारात्मक सरकारी नीतियां और तेजी से बढ़ती अंतरराष्ट्रीय मांग जैसे तमाम महत्त्वपूर्ण पहलू इस व्यवसाय की संभावनाओं के पंख खोल रहे हैं। विश्लेषकों का कहना है कि देश का मसाला बाजार वर्तमान में अनुमानित लगभग 2 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर आने वाले पांच वर्षों में 5 लाख करोड़ रुपये या उससे भी अ​धिक हो सकता है।

सबसे अच्छी बात यह है कि यहां कृषि-पारिस्थितिक स्थितियों में ऐसी विविधता है कि देश के वि​भिन्न हिस्सों में सभी प्रकार के मसालों की खेती की जा सकती है। अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन द्वारा औपचारिक रूप से मान्यता प्राप्त मसालों की 109 किस्मों में से 75 का उत्पादन यहां होता है। मसाला क्षेत्र का विस्तार करने के लिए अनुसंधान और विकास के जरिए कुछ गैर-पारंपरिक मसाला फसलों को उगाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इससे भारत को वैश्विक मसाला बाजार में अपनी स्थिति मजबूत करने में खासी मदद मिलेगी।

मौजूदा समय में भारत से काली मिर्च, इलायची, मिर्च, अदरक, हल्दी, जीरा, अजवाइन, सौंफ, मेथी, लहसुन, जायफल और जावित्री जैसे बड़े स्तर पर उगाए जाने वाले कुछ ही मसालों का निर्यात किया जाता है। खास यह कि अभी जितने मसालों का उत्पादन और निर्यात यहां से होता है, उनमें दो-तिहाई हिस्सेदारी पांच मसालों मिर्च, जीरा, हल्दी, अदरक और धनिये की है। इसलिए, वैश्विक मसाला उत्पादन में लगभग 48 फीसदी हिस्सेदारी होने के बावजूद अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारत का हिस्सा अपेक्षाकृत कम है।

कुल उत्पादित मसालों में 75 फीसदी से अ​धिक की खपत देश में ही होती है। खराब बात यह है कि अधिकांश निर्यात कच्चे मसालों का होता है। अर्थात प्रसंस्कृत मसाले और इनसे बनने वाले उत्पादों जैसे अर्क, तेल और ओलियोरेजिन की निर्यात हिस्सेदारी बहुत कम है। पर्याप्त प्रचार नहीं होने के कारण जीआई टैग समेत भारत में विशेष रूप से उत्पादित मसालों का निर्यात भी बहुत ही कम होता है। खास तौर पर विकसित देशों में जैविक मसालों की तेजी से बढ़ती मांग का लाभ नहीं उठाया जा रहा है जबकि भारत में ऐसा करने की पर्याप्त क्षमता है।

सरकार जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन दे रही है। भारत के मसाले लगभग 200 देशों में जाते हैं। इनमें भी सबसे अधिक निर्यात चीन, अमेरिका, बांग्लादेश और मलेशिया को होता है। ब्रिटेन, सऊदी अरब, इंडोनेशिया, जर्मनी, थाईलैंड और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में भी भारी मात्रा में मसाले भारत से ही जाते हैं। इस समय मसाला निर्यातकों के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक यह है कि इस क्षेत्र में वियतनाम, इंडोनेशिया, ब्राजील और चीन जैसे नए ​खिलाड़ी उतर गए हैं। इससे प्रतिस्पर्धा बहुत अ​धिक बढ़ गई है। ये देश स्वास्थ्य, तंदुरुस्ती और दवा (न्यूट्रास्युटिकल पढ़ें) उद्योगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए मसालों के मूल्यवर्धित और अनूठे व्युत्पन्न पेश कर रहे हैं। अपने चिकित्सीय गुणों एवं प्रतिरक्षा बढ़ाने की क्षमता के कारण कोविड महामारी के बाद इनकी मांग तेजी से बढ़ी है।

कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करने और वैश्विक मसाला केंद्र के रूप में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए भारत को कई मोर्चों पर परिवर्तनकारी कदम उठाने होंगे। घरेलू मांग पूरी करने और निर्यात में वृद्धि के लिए मसालों का उत्पादन व्यापक स्तर पर बढ़ाना होगा। मसाला फसलों के रकबे में विस्तार की बहुत अ​धिक गुंजाइश नहीं होने के कारण नई तकनीक और बेहतर कृषि पद्धतियों को अपनाकर उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। लेकिन इस दौरान यह भी देखना होगा कि उत्पादन लागत अधिक न बढ़े ताकि वैश्विक बाजार में मूल्य के स्तर पर भारत प्रतिस्पर्धा में बना रहे।

फिलहाल बागवानी आरऐंडडी के लिए तय बजट का 2 फीसदी से भी कम हिस्सा मसाला फसलों को आवंटित किया जाता है। इसे बढ़ाने की जरूरत है। खासकर निर्यात होने वाले कार्गो में रासायनिक अवशेषों को तय सीमा के भीतर रखने के लिए कीटनाशकों का सुरक्षित उपयोग सुनिश्चित करना भी आवश्यक है। ऐसा नहीं होने पर कई बार माल को बंदरगाह पर ही अस्वीकार कर दिया जाता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अब स्वच्छता और पादप स्वच्छता मानकों का बहुत अ​धिक ख्याल रखा जाता है। वैश्विक मसाला बाजार में भारत को प्रभुत्व बनाए रखने के लिए इन सब बातों पर ध्यान देना बेहद जरूरी है।

First Published - September 28, 2025 | 10:18 PM IST

संबंधित पोस्ट