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दिलचस्प और महत्त्वपूर्ण होंगे कर्नाटक चुनाव

Last Updated- December 12, 2022 | 3:44 PM IST
Assembly Election 2023

गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजे आ जाने के बाद कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की आंखें अब कर्नाटक पर होंगी जहां छह महीने में चुनाव होने हैं। दोनों दलों के नेतृत्व की अपनी-अपनी समस्या है। भाजपा सांसद नलिन कटील का प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकाल अगस्त में समाप्त हो गया। तब से वहां किसी दूसरे नेता को अध्यक्ष नहीं बनाया गया है।

जुलाई 2021 में मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के एक वर्ष बाद बीएस येदियुरप्पा अभी भी कर्नाटक में भाजपा के सबसे बड़े नेता हैं। उन्हें भाजपा की सबसे बड़ी निर्णय लेने वाली संस्था यानी भाजपा संसदीय बोर्ड में शामिल करके एक तरह से उनका पुनर्वास किया गया है। लेकिन वास्तव में येदियुरप्पा की इच्छा यह थी कि उनके पुत्र को पार्टी में किसी पद पर बिठाया जाए। परंतु ऐसा नहीं हुआ। येदियुरप्पा ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का हरसंभव तरीके से विरोध किया लेकिन यात्रा ज्यादातर लोगों के अनुमान से बेहतर साबित हुई।

कांग्रेस के नेता केंद्रीय जांच एजेंसियों की चुनौतियों से जूझ रहे हैं और उनकी अपनी अलग दिक्कतें भी हैं। पार्टी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस प्रमुख डीके शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के बीच नजर आ रही नई दोस्ती को जरूरत से ज्यादा तवज्जो नहीं देनी चाहिए क्योंकि यह एक भ्रम भी साबित हो सकता है।

कांग्रेस के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी कर्नाटक के हैं और राज्य में उनकी खुद की भी राजनीतिक पूंजी है जिससे दबाव बढ़ता ही है। एचडी देवेगौड़ा के जनता दल सेक्युलर के बारे में अनुमान लगाना मुश्किल है और अगर कांग्रेस के साथ उसे भी शामिल कर लिया जाए तो राज्य की राजनीतिक स्थिति काफी जटिल नजर आती है।

महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच का तनाव भी इस बात का उदाहरण है कि आगामी चुनावों में राजनीतिक दलों के लिए कितना कुछ दांव पर लगा है। दोनों राज्यों का झगड़ा नया नहीं है। कर्नाटक सरकार ने चीजों को अपने हाथ में लेने की कोशिश की और मराठी तथा कन्नड़ भाषी बेलगाम (अब बेलागावी) को राज्य की दूसरी राजधानी घोषित कर दिया। लेकिन महाराष्ट्र एकीकरण समिति भी चुप नहीं बैठी है। वास्तव में राजनीति को तो नियंत्रित किया सकता है लेकिन भावनाओं पर हमेशा नियंत्रण नहीं किया जा सकता है।

कर्नाटक के तमाम क्षेत्रों की बात करें तो शायद सबसे दिलचस्प इलाका दक्षिण कन्नड़ का है जहां मंगलूरु सबसे प्रभावशाली इलाका है। इस क्षेत्र का सामाजिक आर्थिक विकास और राजनीति तेज बदलाव का नतीजा है। मंगलूरु अमीर और खूबसूरत लोगों का शहर है। ऐश्वर्य राय और सुनील शेट्टी दोनों यहीं से आते हैं। यहां कई शैक्षणिक संस्थान हैं और इसने तेजी से बढ़ते मध्य वर्ग को गति प्रदान की है। परंतु यहां बीड़ी बनाने वाले, बुनकर और श्रमिक तथा अन्य पिछड़े तबके भी रहते हैं।

सामाजिक और आर्थिक रिश्तों में बदलाव सन 1970 के दशक में आरंभ हुआ जब देवराज अर्स का शासन था। उन्हें प्रदेश का एक महान नेता माना जाता है जिन्होंने भूमि सुधारों को अंजाम दिया जिसके चलते पिछड़ी जातियों को नई पहचान मिल सकी। उदाहरण के लिए बिलावा नामक ताड़ी निकालने वाले समुदाय को कारोबारियों, राजनेताओं, होटल मालिकों, आयात-निर्यात करने वाले कारोबारी आदि के रूप में पहचान मिली। दूसरी ओर कर्नाटक के जैनों को मध्यकाल में सामंती वंशवादी शासकों के प्रति वफादारी के बदले भारी पैमाने पर जमीन दी गई थी लेकिन वे अब अपनी जमीन का बड़ा हिस्सा गंवा चुके हैं। इन बातों के चलते क्षेत्र में बड़ा आर्थिक-सामाजिक परिवर्तन आया है।

अतीत में मोटे तौर पर पिछड़े और गरीब कांग्रेस का समर्थन करते थे जबकि भाजपा के मतदाताओं में उच्च वर्ग के लोग, जमीन पर मालिकाना हक रखने वाले तथा सारस्वत ब्राह्मण हुआ करते थे। लेकिन सालों के दौरान सामाजिक और आर्थिक गतिशीलता के कारण ये रेखाएं धुंधली पड़ गई हैं। आज तटीय इलाके के सभी सहकारी संगठनों या जिला सहकारी बैंकों पर ऐसे लोगों का कब्जा है जो हिंदुत्व के साथ सहानुभूति रखते हैं।

सन 1994 के बाद से दक्षिण कन्नड़, उडुपी और उत्तरी कन्नड़ जिलों से सबसे अधिक भाजपा विधायक जीत कर आए। सन 2018 के विधानसभा चुनावों में इन क्षेत्रों से भाजपा के 16 विधायक जीते। कांग्रेस के पास जहां पहले 13 विधायक थे, वहीं 2018 में केवल तीन बचे। प्रधानमंत्री सितंबर में मंगलूरु में थे जहां उन्होंने करीब 4,000 करोड़ रुपये की परियोजनाएं शुरू कीं।

पुराना मैसूर क्षेत्र जनता दल सेक्युलर का गढ़ रहा है लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। 2018 में भाजपा को यहां 22 सीटें मिली थीं जबकि कांगेस को 32 और जनता दल सेक्युलर को 31 सीटों पर जीत मिली। प्रदेश की 224 विधानसभा सीटों में से 89 यहीं हैं और इसलिए यह इलाका सभी दलों के लिए अहम है। तेलंगाना की सीमा पर आंध्र कर्नाटक इलाका है जहां अमीर खनन कारोबारियों का दबदबा है।

2018 में कांग्रेस को यहां 40 में से 21 सीटों पर जीत मिली थी जबकि भाजपा केवल 15 सीटें जीत सकी थी। मध्य कर्नाटक जिसमें शिवमोगा (येदियुरप्पा और भाजपा के संगठन सचिव बीएल संतोष का गृह नगर) आता है वहां 2018 में भाजपा को 24 और कांग्रेस को केवल 11 सीट मिली थीं। बेंगलूरु शहर भाजपा का गढ़ रहा है और इसमें बदलाव आता नहीं दिखता।

कर्नाटक में कांग्रेस और भाजपा का काफी कुछ दांव पर लगा हुआ है। वहां कांग्रेस की नजर भाजपा पर है। इन हालात में भाजपा नेता यह नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर क्यों केंद्रीय पार्टी नेतृत्व स्थानीय नेतृत्व की समस्या नहीं हल कर रहा है। वहीं कांग्रेस कार्यकर्ता यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि पार्टी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से कैसे लाभान्वित होगी।कर्नाटक की राजनीति पर नजर रखिए। वहां का चुनाव बहुत दिलचस्प और महत्त्वपूर्ण साबित होने वाला है।

First Published - December 12, 2022 | 2:52 PM IST

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