अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, भारत, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया उन देशों में शामिल हैं जिनके पास परमाणु हथियार हैं। इजरायल के बारे में माना जाता है कि उसके पास गुप्त रूप से ये हथियार हैं। ईरान भी परमाणु हथियार बनाने की स्थिति में है। दक्षिण अफ्रीका ने अपने परमाणु हथियार नष्ट कर दिए हैं लेकिन वह चाहे तो बहुत जल्दी इन हथियारों को विकसित कर सकता है। दक्षिण अफ्रीका जैसे कई देश जब चाहें आसानी से परमाणु हथियार विकसित कर सकते हैं।
परमाणु हथियार संपन्न देशों के अलावा 28 देश परमाणु हथियारों के इस्तेमाल को बढ़ावा देते हैं। इनमें उत्तर अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो और कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (सीएसटीओ) के सदस्य देश, दक्षिण कोरिया और ताइवान शामिल हैं।
हिरोशिमा में तबाही मचाने वाले बम जैसी क्षमता तैयार करने की तकनीक 80 वर्षों से दुनिया में मौजूद है। थर्मोन्यूक्लियर या ‘हाइड्रोजन बम’ बनाना (जो ‘परमाणु बम’ की तुलना में कहीं अधिक शक्तिशाली होता है) कठिन है लेकिन आवश्यक नहीं क्योंकि दूसरे विश्व युद्ध के दौर का पुरानी शैली का परमाणु बम भी किसी शहर को नष्ट कर सकता है।
रेडियोएक्टिव पदार्थ को हथियार बनाने के स्तर का बनाना आसान नहीं है। हालांकि परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में इस्तेमाल होने वाले ईंधन को भी हथियार बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। इजरायल दो बार सीरिया और इराक में इस संदेह पर हमला कर चुका है कि उन संयंत्रों में परमाणु हथियार बनाने वाली श्रेणी की सामग्री इस्तेमाल की जा रही थी। ईरान का परमाणु कार्यक्रम भी एक साइबर हमले से प्रभावित हुआ जिसके बारे में कहा जाता है कि वह इजरायल की ओर से किया गया या शायद इजरायल और अमेरिका की ओर से।
आईकैन (द इंटरनैशनल कैंपेन टु अबॉलिश न्यूक्लियर वीपंस) का अनुमान है कि घोषित परमाणु हथियार संपन्न देशों और इजरायल के पास कुल मिलाकर 12,000 से अधिक परमाणु हथियार हैं। इतने हथियार कई बार व्यापक जनसंहार करने में सक्षम हैं। इनमें से महज कुछ हथियारों की वजह से इतना विनाश होगा कि धूल और मलबे के कारण वर्षों तक सूरज की रोशनी धरती पर नहीं पहुंच सकेगी और हर प्रकार की हरियाली समाप्त हो जाएगी। इस बात की गारंटी मुश्किल है कि किसी देश की ओर से किया गया पहला हमला इतना घातक होगा कि सामने वाला देश प्रतिक्रिया में दूसरा हमला नहीं कर सके।
उदाहरण के लिए अगर जमीन पर स्थित मिसाइलों पर हमला किया भी जाए तो भी परमाणु पनडुब्बियां बची रहेंगी। यानी अगर एक देश हमला करता है तो दूसरा देश प्रतिरोध करेगा। इससे दोनों को क्षति पहुंचेगी। अगर दूसरे देश को लगता है कि पहले देश ने परमाणु हमला किया है तो वह भी अपने हथियार नष्ट होने के पहले हमला करेगा।
साझा विनाश की आश्वस्ति अथवा म्युचुअली एश्योर्ड डिस्ट्रक्शन (एमएडी) का यह परिदृश्य ही उन रणनीतियों की बुनियाद है जो परमाणु युद्ध रोकने के लिए बनाई जा सकती हैं। कहा जा सकता है कि परमाणु हथियारों के कारण ही शीत युद्ध के दौरान कभी माहौल बहुत अधिक नहीं बिगड़ा। इसलिए कि नाटो और वारसा संधि के देश एमएडी को लेकर सचेत थे।
परमाणु हथियारों को लेकर सिद्धांत गढ़ने वालों का कहना है कि दुर्घटनाएं नहीं होंगी और दूसरा, इन हथियारों के प्रभारी व्यक्ति तार्किक सोच-समझ वाले लोग हैं। अतीत में कई मौकों पर तकनीकी गलतियों के कारण गलत अलार्म बजने से परमाणु हमलों को लेकर भ्रम और घबराहट की स्थिति बन चुकी है।
प्रसार के साथ भी कई आशंकाएं जुड़ी हैं। उदाहरण के लिए यूक्रेन, कोरिया, ताइवान या गाजा में जो कुछ घटित हो रहा है, वैसी स्थितियां भड़काने का काम कर सकती हैं। इसके अलावा चेतावनी देने वाली प्रणालियां और मिसाइलें अर्द्ध स्वचालित हो रही हैं। वे आर्टिफिशल इंटेलिजेंस से संचालित हैं। एक भय यह भी है कि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के कारण बड़ी दुर्घटना हो सकती है।
परंतु फिलहाल इनका नियंत्रण मनुष्यों के हाथ में है और अलग-अलग देशों में इनके नियंत्रण के लिए अलग-अलग प्रणालियां हैं। अमेरिका में परमाणु हथियारों के कोड जिस ब्रीफकेस में रखे जाते हैं उसे न्यूक्लियर फुटबॉल कहा जाता है।
क्या जिन लोगों को इन हथियारों को चलाने वाले कोड का प्रभारी बनाया गया है वे सभी समझदार और तार्किक लोग हैं? कोई नहीं जानता है कि उत्तर कोरिया का नेतृत्व कितनी समझदारी दिखाएगा। अमेरिका में नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव का चाहे जो नतीजा हो वहां का न्यूक्लियर फुटबाल किसी न किसी तरह दो बुजुर्गों में से किसी एक के हाथ में रहेगी। दोनों के बारे में आलोचक यह कहते हैं कि उन्हें मानसिक समस्याएं हैं।
एक और परमाणु क्षमता संपन्न देश का नेतृत्व एक ऐसे व्यक्ति के पास है जो खुद को ‘अजैविक’ मानता है। वहीं इसके पश्चिमी पड़ोसी देश की राजनीति इतनी उलझी हुई है कि यही नहीं पता है कि वहां परमाणु हथियारों पर किसका नियंत्रण है। एक अन्य परमाणु क्षमता संपन्न देश का शासन एक ऐसे व्यक्ति के हाथों में है जिसने बिना परमाणु हथियारों के प्रयोग किए ही गाजा को नरक में तब्दील कर दिया है।
एक अन्य परमाणु हथियार संपन्न देश यूक्रेन में अंतहीन युद्ध में उलझा हुआ है और बीते तीन साल में उसने बार-बार परमाणु हमला करने की धमकी दी है। उधर एक और देश ने हाल ही में ताईवान पर आक्रमण करने की योजना बनाई है। बेहतर पहलू पर नजर डालें तो यूनाइटेड किंगडम में चुनाव होने वाला है वहीं शायद वहां अगला प्रधानमंत्री एक विवेकसंपन्न व्यक्ति बने। फ्रांस के राष्ट्रपति भी तार्किक व्यक्ति प्रतीत होते हैं।
ये घटनाएं बहुत विश्वास पैदा करने वाली नहीं हैं क्योंकि अगर परमाणु हथियारों के एक भी प्रभारी व्यक्ति ने पागलपन का प्रदर्शन किया तो दुनिया खतरे में आ जाएगी।