सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने हाल ही में वर्ष 2022-23 के लिए उद्योगों के सालाना सर्वेक्षण के नतीजे जारी किए। उल्लेखनीय यह है कि वित्त वर्ष 23 में भारतीय अर्थव्यवस्था महामारी के दौरान वृद्धि में आई भारी गिरावट से उबर ही रही थी। बहरहाल ये नतीजे दिखाते हैं कि कच्चे माल के इस्तेमाल, उत्पादन और मुनाफे के मामले में भारतीय विनिर्माण काफी लचीला है।
इस सर्वेक्षण में पूरे देश को शामिल किया जाता है और यह देश में औद्योगिक आंकड़ों का प्राथमिक स्रोत है। देश के सकल घरेलू उत्पाद में 17 फीसदी का योगदान देने वाले विनिर्माण क्षेत्र ने समीक्षा अवधि में अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन इसका अपेक्षाकृत कम आकार और केंद्रीकरण चिंता का विषय है।
वित्त वर्ष 23 में विनिर्माण क्षेत्र के सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) की बात करें तो वर्तमान मूल्य पर यह पिछले साल की तुलना में करीब 7.3 फीसदी बढ़ा। औद्योगिक उत्पादन में भी 21.45 फीसदी की तेज वृद्धि दर्ज की गई। यह बात भी ध्यान देने लायक है कि वित्त वर्ष 20 और 21 में उत्पादन में भारी गिरावट आई थी, उसके बाद वित्त वर्ष 22 और 23 में इसने अच्छी वापसी भी की।
इसके अलावा तयशुदा और निवेशित पूंजी में आलोच्य अवधि में सकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई। रोजगार में सालाना आधार पर 7.43 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली। इस क्षेत्र में प्रति व्यक्ति औसत क्षतिपूर्ति में भी इजाफा हुआ। इसी प्रकार महामारी के पहले वाले वर्ष यानी 2018-19 की तुलना में प्रति व्यक्ति जीवीए में 26 फीसदी का इजाफा हुआ। इससे संकेत मिलता है कि विनिर्माण के क्षेत्र में श्रम की उत्पादकता में इजाफा हुआ। इसी पांच वर्ष की अवधि में औसत वेतन में 22 फीसदी का इजाफा हुआ।
वित्त वर्ष 23 में विनिर्माण क्षेत्र के विशुद्ध मूल्य वर्धन (एनवीए) के अनुपात के रूप में मुनाफे का हिस्सा महामारी के पहले के वर्षों यानी 2018-19 और 2019-20 की तुलना में अधिक रहा जबकि इसी अवधि में कर्मचारियों को दिए गए वेतन-भत्तों का हिस्सा महामारी के पहले के स्तर से कम रहा। यह साल दर साल आधार पर एनवीए में लाभ के हिस्से में कमी और वित्त वर्ष 22 की तुलना में वित्त वर्ष 23 में वेतन और भत्तों की हिस्सेदारी में इजाफे के बावजूद हुआ। स्पष्ट है कि देश में विनिर्माण समय के साथ पूंजी के गहन इस्तेमाल वाला होता जा रहा है।
औद्योगिक गतिविधि भी भौगोलिक रूप से कुछ खास इलाकों में और कुछ खास उत्पाद श्रेणियों में सीमित रही है। वार्षिक सर्वेक्षण के नतीजे दिखाते हैं कि केवल पांच राज्यों- महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश ने वित्त वर्ष 23 में विनिर्माण जीवीए में 54 फीसदी से अधिक का योगदान किया।
इसके अलावा आधारभूत धातुओं, रासायनिक उत्पाद उद्योगों, कोयला और रिफाइंड पेट्रोलियम, मोटर वाहन और खाद्य उत्पादों ने कुल मिलाकर विनिर्माण उत्पादन में 58 फीसदी का योगदान किया। रोजगार के मामले में महामारी के बाद के सुधार के बावजूद 2022-23 में विनिर्माण क्षेत्र में 1.8 करोड़ लोग ही रोजगारशुदा थे।
अकुशल और कम कुशल विनिर्माण में भारत ने निरंतर कमजोर प्रदर्शन किया। ऐसे में हम विनिर्माण के क्षेत्र में इतना अधिक योगदान नहीं जुटा सके कि लोगों को कृषि क्षेत्र से बाहर निकाल सकें। हमारी चिंता केवल रोजगार तैयार करने के बजाय यह होनी चाहिए कि हम किस तरह के रोजगार तैयार कर रहे हैं और उत्पादन का कितना हिस्सा कामगारों को आवंटित हो रहा है।
श्रम आय की कीमत पर आर्थिक वृद्धि भारत जैसे श्रम की प्रचुरता वाले देश में टिकाऊ नहीं साबित होगी। कम कॉरपोरेट कर, एकल खिड़की मंजूरी और उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन जैसे सरकारी हस्तक्षेपों को सीमित सफलता मिल सकी है। ऐसे में भारत को हालात में निरंतर सुधार करना होगा ताकि वह निवेश आकर्षित कर सके और यह सुनिश्चित हो सके कि आने वाला निवेश चुनिंदा राज्यों या पूंजी गहन श्रेणियों में सीमित न रह जाए।