दिल्ली सरकार ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले पदक विजेता खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए भारी भरकम नकद पुरस्कार और सरकारी नौकरियां देने का निर्णय किया है। सरकार का यह कदम राज्य में स्वस्थ खेल संस्कृति विकसित करने का एक प्रयास है। मुख्यमंत्री खेल प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत ओलिंपिक और पैरालिंपिक में स्वर्ण पदक विजेताओं के लिए पुरस्कार राशि 3 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 7 करोड़ रुपये कर दी गई है। इसी तरह रजत पदक विजेताओं को अब 5 करोड़ रुपये और कांस्य पदक विजेताओं को 3 करोड़ रुपये मिलेंगे।
एशियाई और पैरा एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक विजेताओं को दिल्ली सरकार की ओर से 3 करोड़ रुपये, रजत पदक विजेताओं को 2 करोड़ रुपये और कांस्य पदक विजेताओं को 1 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी।
राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वालों को 2 करोड़ रुपये, रजत पदक विजेताओं को 1.5 करोड़ रुपये और कांस्य पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को 1 करोड़ रुपये देने की घोषणा की गई है। राष्ट्रीय खेलों में दिल्ली का प्रतिनिधित्व करने वाले पदक विजेताओं को 11 लाख रुपये दिए जाएंगे।
यह कदम उत्साहजनक है लेकिन भारत के सबसे संपन्न राज्यों में से एक द्वारा खेलों पर भारी भरकम खर्च करने के निर्णय को पंजाब और हरियाणा जैसे पड़ोसी राज्यों के साथ रचनात्मक प्रतिस्पर्धी संघवाद के प्रयास के रूप में भी देखा जा सकता है। दिल्ली के इन पड़ोसी राज्यों में खिलाड़ियों का लगातार सहयोग किया जाता है और राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय खेलों में इसके उल्लेखनीय परिणाम भी मिले हैं। इन दोनों राज्यों के खिलाड़ियों ने 2024 पेरिस ओलिंपिक खेलों में भारत के कुल 22 पदकों में से 15 पदक जीते थे और भारत के 117 सदस्यीय दल में से 42 इन्हीं दोनों राज्यों के थे।
उदार नकद पुरस्कार और सरकारी नौकरियों का वादा कम से कम खेल को व्यवहार्य करियर विकल्प के रूप में देखने की आवश्यकता को देर से ही सही, मिली मान्यता को दर्शाता है। ‘खेलो इंडिया’ और ‘टारगेट ओलिंपिक पोडियम स्कीम’ (टॉप्स) जैसी केंद्रीय योजनाओं के साथ राज्य में अब शीर्ष स्तर के खिलाड़ियों के लिए पर्याप्त सहयोग उपलब्ध है। हालांकि, यह खर्च भारत में खेलों को मिलने वाली वित्तीय सहायता की प्रकृति में बड़े बदलाव को प्रतिबिंबित नहीं करता है जहां करदाताओं के पैसे और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों ने ही दशकों से भारत के अग्रणी खिलाड़ियों को सहारा दिया है। क्रिकेट या बैडमिंटन जैसे खेलों में सफल खिलाड़ियों को आकर्षक विज्ञापन अनुबंध मिल जाते हैं।
इसलिए इन अपवादों को छोड़ दें तो भारतीय खेलों के लिए निजी कॉरपोरेट क्षेत्र से मिलने वाला धन अपेक्षाकृत कम है जबकि पश्चिमी देशों में यह सरकार की ओर से दी जाने वाली महत्त्वपूर्ण वित्तीय सहायता के पूरक की तरह है। यह विडंबना ही है कि एक ऐसा राज्य जिसके पास एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर की पर्याप्त खेल सुविधाएं उपलब्ध हैं, चैंपियन बनाने के मामले में पिछड़ा हुआ है। इसलिए दिल्ली सरकार के प्रयासों का कम से कम एक हिस्सा उपयुक्त खेल पारिस्थितिकी तंत्र और खेल संस्कृति विकसित करने पर भी खर्च किया जाना चाहिए।
इसमें शहर भर में सरकारी धन से तैयार खेल सुविधाओं तक बेहतर पहुंच प्रदान करना शामिल होना चाहिए, जो फिलहाल तो राजनेताओं और अफसरशाही के कब्जे में दिखती हैं। एक कुख्यात मामला भी सुर्खियों में आया था जहां पालतू कुत्ते को घुमाने के लिए स्टेडियम से खिलाड़ियों को बाहर निकाल दिया गया था। पदक विजेताओं को पुरस्कृत करना प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के लक्ष्य को ऊंचा, तेज और मजबूत बनने के लिए प्रोत्साहित करने का अच्छा तरीका है लेकिन जमीनी स्तर पर प्रतिभा को बढ़ावा देने में इसका सीमित प्रभाव पड़ेगा, खास तौर पर निम्न आय वर्ग के प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के बीच। हरियाणा के पास कुछ दशक से इस प्रक्रिया को प्रबंधित करने का साबित मॉडल है।
राज्य ने इच्छुक खिलाड़ियों के लिए सस्ते और आसानी से उपलब्ध सरकारी धन से तैयार बुनियादी ढांचे और कोचिंग सुविधाओं के साथ सामुदायिक और पारिवारिक भागीदारी को मिलाकर अनूठा वातावरण तैयार किया है जिसने पहलवानों, फुटबॉल और हॉकी खिलाड़ियों, मुक्केबाजों, तीरंदाजों और क्रिकेटरों की फौज पैदा की है। इनमें से कई महिलाएं हैं। पैसे का उत्पादक तरीके से उपयोग सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली के खेल प्रतिष्ठान को पहले इस तरह की सर्वश्रेष्ठ प्रणालियों का अध्ययन करना चाहिए।