देश के सेमीकंडक्टर उद्योग को गति देने का सरकार का प्रयास सदिच्छा से भरा हुआ है लेकिन इस प्रक्रिया में करदाताओं के पैसे का ही नुकसान हो सकता है। सरकार ने इस दिशा में दो तरफा प्रयास किए हैं।
पहला, उसने बनने वाले सेमीकंडक्टर की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए फाउंन्ड्रीज पर होने वाले व्यय के 30 से 50 फीसदी हिस्से की भरपाई की पेशकश की है। दूसरा, उसने हार्डवेयर और सेमीकंडक्टर के लिए 55,392 करोड़ रुपये मूल्य की उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना की भी घोषणा की है। सन 2022 में घोषित तीसरा तत्त्व है डिजाइन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम यानी डीएलआई। यह घरेलू कंपनियों, स्टार्टअप और छोटे तथा मझोले उपक्रमों को पांच वर्ष तक वित्तीय मदद की पेशकश करती है।
इसका लक्ष्य है सेमी कंडक्टर डिजाइन में शामिल कम से कम 20 घरेलू कंपनियों को बढ़ावा देना और उन्हें अगले पांच वर्षों में 5,000 करोड़ रुपये का टर्नओवर हासिल करने में मदद करना। सरकार इस योजना के जिस दूसरे चरण पर विचार कर रही है वह है घरेलू चिप डिजाइन कंपनियों में हिस्सेदारी बढ़ाना। सरकार का विचार है कि घरेलू डिजाइन कंपनियों को वैश्विक कंपनियों को हिस्सेदारी बेचने से रोका जाए।
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चिप निर्माण से जुड़े बौद्धिक संपदा अधिकार को देश में रखने की इच्छा सैद्धांतिक तौर पर मजबूत है। देश में सेमीकंडक्टर को लेकर समुचित माहौल नहीं होने के कारण बड़े पैमाने पर प्रतिभा पलायन हुआ और सिलिकन वैली के शीर्ष चिप निर्माताओं ने भारत में डिजाइन केंद्र स्थापित करके भारत की प्रतिभाओं का लाभ उठाया।
सेमीकंडक्टर कारोबार में मूल्यवर्धन की बुनियाद डिजाइन है, न कि निर्माण। यही कारण है कि सिलिकन वैली की दिग्गज कंपनियां मसलन इंटेल, क्वालकॉम, एनविडिया तथा बाद में एएमडी तथा अन्य कंपनियों ने महंगी विनिर्माण प्रक्रिया में निवेश नहीं किया। इसके बजाय इन कंपनियों ने अपना पूरा ध्यान उन्नत तकनीक विकसित करने पर लगाया और सन 1970 के दशक में ही एशिया में ताइवान, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और जापान जैसी जगहें तलाश कीं ताकि एक विशालकाय वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला तैयार की जा सके। बौद्धिक संपदा पर ध्यान केंद्रित करके सिलिकन वैली बिना विनिर्माण प्रक्रिया पर दबदबा कायम किए इस पूरे उद्योग पर भारी असर रखती है। घरेलू चिप डिजाइन कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदने के भारत सरकार के प्रस्ताव को इस संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
इस योजना के साथ दिक्कत यह है कि यह इस उद्योग के गुणों की अनदेखी करती है। सेमीकंडक्टर डिजाइन उद्योग अत्यधिक प्रतिस्पर्धा वाले नवाचारी माहौल में फलता-फूलता है जो गतिशीलता पर निर्भर है। इसके अलावा इसमें लगातार नाकामियों को सहन करने की भी क्षमता होनी चाहिए। ऐसा रचनात्मक माहौल तैयार करने के लिए सरकार को खुद को भी रातोरात बदलना होगा। समय खपाऊ मंजूरी प्रणाली जहां डिजाइनरों से निवेश हासिल करने के लिए अपने डिजाइन की अवधारणा पेश करने को कहा जाता हो वह इसमें मददगार न हो सकेगी।
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दूसरी बात, निजी क्षेत्र के साथ काम करने का भारत सरकार का प्रदर्शन कोई खास अच्छा नहीं रहा है। बाल्को और हिंदुस्तान जिंक जैसी कंपनियों की बात करें तो इनमें सरकार ने विनिवेश के बाद हिस्सेदारी बनाए रखी थी लेकिन ये उदाहरण चिप निर्माण के क्षेत्र में सरकारी हिस्सेदारी को लेकर बहुत भरोसा नहीं पैदा करते। अधिक रचनात्मक रुख यह होगा कि घरेलू चिप निर्माताओं को भारत और विदेशों में बाजार तैयार करने में मदद करके प्रोत्साहित किया जाए।
इसके लिए आंशिक रूप से कारोबारी सुगमता की राह की दिक्कतों को दूर करना होगा। सिलिकन वैली तभी फली-फूली जब उसने उपभोक्ता वस्तुओं के तेजी से विकसित होते बाजार पर ध्यान दिया। व्यापक अर्थव्यवस्था में से अकेले औद्योगिक क्षेत्र के दिग्गजों को चुनने से बहुत अच्छे नतीजे नहीं हाथ लगेंगे।