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लंबी अवधि के बॉन्ड के प्रबंधन पर दांव

50 साल के बॉन्ड से सरकार को मिलेगा 10,000 करोड़ रुपये का फंड

Last Updated- December 05, 2023 | 7:35 AM IST
As centre pushes muni bonds, Surat, Vizag may tap markets soon

भारत में हाल में पहला 50 वर्ष की परिपक्वता अवधि वाला बॉन्ड जारी किया गया जिसे शानदार सफलता माना जा सकता है। बीमा और पेंशन फंडों ने इस दीर्घावधि बॉन्ड को लेने में काफी उत्साह दिखाया।

वर्ष 2073 में परिपक्व होने वाले करीब 10,000 करोड़ रुपये के बॉन्ड की नीलामी में बोली की उच्चतम सीमा 7.46 प्रतिशत के यील्ड (प्रतिफल) तक तय की गई जो ब्लूमबर्ग सर्वेक्षण के 7.48 प्रतिशत के पूर्वानुमान से कम थी।

एक बॉन्ड की कीमतें और इसका यील्ड विपरीत दिशा में चलता है। यदि यील्ड बढ़ता है और कीमतें कम होती हैं तब निवेशकों को जोखिम सहना पड़ता है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने वाणिज्यिक बैंकों को अगले वित्त वर्ष से अपने पूरे बॉन्ड पोर्टफोलियो (सरकारी और कॉरपोरेट दोनों बॉन्ड पत्र) को परिपक्वता की अवधि (एचटीएम) वाली श्रेणी में रखने की अनुमति दी गई है।

ऐसे में अगर बॉन्ड का यील्ड बढ़ता भी है और इसकी कीमतें घटती हैं तब बाजार कीमत के कम होने से परिसंपत्ति के मूल्य में कोई नुकसान (मार्क टू मार्केट यानी एमटीएम) नहीं होगा।

एमटीएम लेखांकन से जुड़ी प्रक्रिया है जो मौजूदा बाजार मूल्य के आधार पर किसी संपत्ति के वास्तविक मूल्य को दर्शाता है। इसका अर्थ यह है कि यदि मूल्य घटता है (जिस कीमत पर बॉन्ड खरीदा गया उसकी तुलना में वर्तमान मूल्य कम है), तब बैंकों को इसके लिए अलग से कुछ पूंजी रखने की आवश्यकता होती है।

अगर भारतीय बैंक एमटीएम घाटे से बच भी जाते हैं तब भी सैद्धांतिक रूप से दीर्घावधि के सॉवरिन पत्र को लेकर उनके सामने ब्याज दर जोखिम की चुनौती बरकरार रहती है। सिलिकन वैली बैंक (एसवीबी) के दिवालिया होने की दास्तान बिल्कुल ताजा है। लेकिन यह एक अलग कहानी थी। सबसे लंबी अवधि वाले भारतीय बॉन्ड को मुख्य रूप से बीमा कंपनियों, भविष्य निधि और पेंशन फंडों ने चुना।

वैश्विक स्तर पर दीर्घावधि वाले बॉन्ड की मांग हमेशा रही है और यहां तक कि 100 वर्ष की परिपक्वता अवधि वाले बॉन्ड की भी मांग है। बीमा और पेंशन फंड, दीर्घावधि वाले बॉन्ड की मांग करते हैं क्योंकि इससे उन्हें कुछ निश्चित अवधि के लक्ष्यों के हिसाब से पॉलिसीधारकों से जुड़ी अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मदद मिलती है।

खासतौर पर अगर भारतीय बीमा नियामक बीमा क्षेत्र के विस्तार के लिए कड़ी मशक्कत कर रहा है और हर भारतीय को बीमा कवर के दायरे में लाने की कोशिश कर रहा है तब ऐसे में 50 साल का बॉन्ड पत्र लाना बिल्कुल प्रत्याशित कदम है।

विदेशों में विश्वविद्यालयों के निवेश फंड भी ऐसे बॉन्ड को लेकर आकर्षित होते हैं क्योंकि संस्थान का संचालन काफी लंबे समय तक होता और एक सकारात्मक बात यह भी है कि इन्हें तत्काल फंड की आवश्यकता नहीं पड़ती है। यदि इस तरह के और बॉन्ड बाजार में आते हैं तो वे अधिक रेटिंग वाले कंपनियों को भी ऐसे बॉन्ड जारी करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।

इस तरह दीर्घावधि वाले बॉन्ड पत्र, सरकार की राजकोषीय उधारी का प्रबंधन करने में भी मदद करेंगे क्योंकि दीर्घावधि वाले बॉन्ड की परिपक्वता अवधि काफी लंबी होती है। ऐसे में जब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) दीर्घावधि परिदृश्य के लिए अधिक ऋण लेगा तब सकल ऋण की संख्या नियंत्रित रहेगी।

कुछ दीर्घावधि बॉन्ड पत्र में कॉल और पुट विकल्प होता है जिसके तहत कुछ अवधि के बाद बॉन्ड जारीकर्ता निवेशकों को भुगतान कर बॉन्ड पत्र वापस ले सकता है। निवेशक भी इस निवेश को भुना सकते हैं। उदाहरण के तौर पर 1993 में वॉल्ट डिज्नी कंपनी ने 100 वर्ष का कॉरपोरेट बॉन्ड जारी किया जिसकी परिपक्वता अवधि वर्ष 2093 में है लेकिन इसके बावजूद 30 वर्षों (2023) के बाद कंपनी कभी भी बॉन्ड को भुना सकती है। कोका कोला ने भी 100 वर्ष का एक बॉन्ड जारी किया है।

अगर दीर्घावधि के बॉन्ड की बात करें तो 1,000 साल की परिपक्वता अवधि वाले बॉन्ड भी मौजूद हैं। कैनेडियन पैसिफिक कॉरपोरेशन ने इस तरह का बॉन्ड जारी किया है। कुछ ऐसे बॉन्ड भी हैं जिनकी कोई परिपक्वता तिथि नहीं होती है। ऐसे बॉन्ड के लिए बॉन्ड जारीकर्ता हमेशा ही कूपन भुगतान करते रहते हैं। ब्रिटेन सरकार ने इस तरह के बॉन्ड जारी किए हैं जिन्हें ‘कंसोल’ कहा जाता है।

बॉन्ड जारी करने वाली चाहे वह कोई कंपनी हो या कोई संप्रभु संस्था हो, वे इसके माध्यम से स्थिर पूंजी हासिल करते हैं, वहीं निवेशकों को ब्याज दर जोखिम का सामना करना पड़ता है। यील्ड अधिक होने पर उन्हें ऐसे बॉन्ड को बेचने की आवश्यकता पड़ जाती है तब उन्हें काफी पैसा गंवाना पड़ता है।

ऐतिहासिक रूप से दीर्घावधि बॉन्ड के लिए भी सबसे लोकप्रिय परिपक्वता अवधि 50 साल की रही है जबकि 30 साल और 100 वर्ष की परिपक्वता अवधि वाले बॉन्ड आर्थिक परिदृश्य और ब्याज दरों के आधार पर बाजार में नजर आते हैं। कोविड-19 महामारी से जूझ रहे जर्मनी के नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया राज्य ने जनवरी 2021 में 100 साल का बॉन्ड बेचकर 2 अरब यूरो जुटाए। इसके बाद फ्रांस ने भी अपने पहले 50 साल के बॉन्ड की घोषणा करने में देर नहीं लगाई।

दीर्घावधि बॉन्ड वाले रुझान में अमेरिका अपवाद हो सकता है जो दुनिया का सबसे बड़ा एकल उधारकर्ता देश है। इसने 1986 के बाद पहली बार वर्ष 2020 में 20 वर्ष वाले बॉन्ड बेचे। अमेरिकी सरकारी बॉन्ड की सबसे लंबी परिपक्वता अवधि 30 साल की होती है।

अगस्त 2019 में जब ब्याज दर बहुत कम था और 30 साल के बॉन्ड का यील्ड पहली बार 2 प्रतिशत से नीचे आ गया तब मीडिया ने यह खबर चलाई कि अमेरिका का वित्त विभाग दीर्घावधि वाले बॉन्ड जारी करने की संभावनाएं तलाश रहा था।

बराक ओबामा प्रशासन ने भी वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के बाद इसका प्रबंधन करने की कोशिश की थी। वित्त मंत्री स्टीवन म्युचिन ने 2017 में फिर से इसका प्रस्ताव रखा था। वर्ष 2019 में एक स्थायी बॉन्ड की पेशकश करने की संभावनाएं भी तलाशी गईं थीं।

9 मार्च, 2020 को 0.69 प्रतिशत के कूपन पर जारी किए गए अमेरिका के 30 वर्षीय बॉन्ड का यील्ड 23 अक्टूबर को बढ़कर 5.17 प्रतिशत हो गया।

20 अप्रैल, 2021 को 0.7 प्रतिशत की दर वाले कूपन पर जारी किए गए 50 वर्ष वाले ऑस्ट्रेलियाई बॉन्ड पत्र का यील्ड अब 3.3 प्रतिशत है। इस तरह इसका मूल्य कम हो गया है। वर्ष 2017 में 2.1 प्रतिशत कूपन पर जारी ऑस्ट्रिया के 100 वर्ष वाले बॉन्ड (पहले भी इसका जिक्र किया जा चुका है) के मूल्य में अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में 75 प्रतिशत की गिरावट देखी गई।

वैश्विक स्तर पर वित्तीय मध्यस्थ संस्थाओं के लिए इस मोड़ पर ब्याज दर जोखिम वास्तव में ऋण जोखिम (गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों में बदलने वाले ऋण) की तुलना में अधिक प्रतीत होता है। अच्छी बात यह है कि भारत की एक अलग कहानी है। अधिकांश विकसित देशों की तुलना में भारत में मुद्रास्फीति में वृद्धि (लक्ष्य की तुलना में) और नीतिगत दर दोनों में ही अधिक नरमी है। भारत की विकास गाथा की चर्चा पूरे शहर में है।

First Published - December 5, 2023 | 7:35 AM IST

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