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AI विकास के साथ सुरक्षा का भी रखा जाए ध्यान, भारत को नियमन लागू करने में बिल्कुल नहीं करनी चाहिए देर

मानवता के श्रेष्ठ हितों को बढ़ावा देने और जीवन मूल्यों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत को व्यापक एआई नियमन लागू करने में बिल्कुल देर नहीं करनी चाहिए। बता रहे हैं अजय कुमार

Last Updated- September 30, 2024 | 10:14 PM IST
artificial intelligence

यूरोपीय संघ (ईयू) ने वर्ष 2018 में डेटा सुरक्षा के सामान्य नियम तैयार कर सबसे पहले डेटा सुरक्षा की दिशा में कदम बढ़ाया था। उसने एआई कानून बनाते हुए एक बार फिर बड़ी पहल की है, जिसका उद्देश्य आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) के अनियंत्रित उपयोग से होने वाले नुकसान पर अंकुश लगाना है।

भारत में भी तकनीक और एआई का इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा है। मगर भारत को अपना डिजिटल व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा (डीपीडीपी) अधिनियम लागू करने में लगभग 5 वर्ष की देर हो गई। अब एआई के लिए कायदे बनाने में सुस्ती बरतने की गुंजाइश उसके पास बिल्कुल भी नहीं है।

एआई नियमन की आवश्यकता पर हो रही चर्चा बहुत सामयिक है क्योंकि अगर यह तकनीक असामाजिक तत्त्वों के हाथ लग जाए तो समाज के लिए बड़ा खतरा बन सकती है। एआई साइबर सुरक्षा में आसानी से सेंध लगा सकती है और पूरे डिजिटल तंत्र को बेकार कर सकती है।

एआई लोगों की निजता का हनन कर सकती है और अनधिकृत निगरानी शुरू कर सकती है, साइबर अपराध में मददगार बन सकती है और अपने आप हमले भी शुरू करा सकती है। यह स्वचालित हथियार तक बना सकती है।

एआई डीपफेक वीडियो और दुष्प्रचार के जरिये तथ्य यानी वास्तविकता और कल्पना या मनगढ़ंत बातों के बीच फर्क खत्म कर सकती है, जनमत बदल सकती है और ऐसी बातों की लत लगाकर तथा समाज में अव्यवस्था फैलाकर मानसिक स्वास्थ्य खराब कर सकती है।

एआई का एक प्रभाव है, जिसकी काफी कम चर्चा होती है मगर जो लंबे अरसे में सबसे ज्यादा नुकसानदेह हो सकता है। यह है सीखने की क्षमता पर प्रभाव।

जीन रॉचलिन ने अपनी किताब ‘ट्रैप्ड इन द नेटः द अनऐन्टिसिपेटेड कॉन्सिक्वेन्सेस ऑफ कंप्यूटराइजेशन’ में कहा है वास्तविक जगत में आने वाली प्राकृतिक चुनौतियों से जूझने में आई समस्याओं से मनुष्य को सीखने में मदद मिलती है। ऑटोमेशन और प्रौद्योगिकी इन चुनौतियों को काफी कम कर देती हैं, जिससे हमारे लिए समस्याएं सुलझाना और संकट से निपटना और भी कठिन हो जाता है।

वर्ष 2009 में अटलांटिक महासागर के ऊपर एयर फ्रांस की उड़ान 447 दुर्घटना का शिकार इसलिए हो गई क्योंकि विमान में लगी फ्लाई-बाई-वायर प्रणाली तूफान में फंस गई मगर अपने दिमाग और कौशल का इस्तेमाल कर विमान को तूफान से नहीं निकाल पाए क्योंकि वे ऑटोमेशन के ही अभ्यस्त थे। एआई हमें प्रौद्योगिकी पर और भी ज्यादा निर्भर बना सकती है।

इससे समस्याएं सुलझाने तथा चुनौतियों के अनुरूप स्वयं को ढालने की हमारी क्षमता और भी कम हो सकती है। फिर भी तकनीकी क्षेत्र में प्रगति का स्वागत जरूर किया जाना चाहिए क्योंकि इनसे नुकसान से ज्यादा फायदे होते हैं। एआई भी इससे अलग नहीं है। अगर कायदे बनाकर इसके जोखिमों को ठीक तरीके से बांध दिया जाए तो अपार संभावनाओं के द्वार खुल जाएंगे।

भारत जैसे तेजी से विकास कर रहे देश में एआई कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने, शिक्षा में सुधार करने और बड़ी आबादी के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। एआई वृद्धि दर बढ़ाने और विकसित भारत का लक्ष्य तेजी से हासिल करने में भारत की मदद कर सकती है।

एआई के जोखिम कम से कम कर उसकी क्षमता का भरपूर इस्तेमाल करने के लिए भारत को इसके विकास और इस्तेमाल में मददगार व्यवस्था तैयार करनी होगी। भारत की आबादी के एक बड़े हिस्से ने पिछले कुछ समय में डिजिटल सेवाओं का इस्तेमाल शुरू किया है मगर हो सकता है कि उनके पास विकसित अर्थव्यवस्थाओं जैसी जागरूकता और एहतियात बरतने की समझ नहीं हो। इसलिए सतर्कता बरतना और पहले से ही जरूरी उपाय करना आवश्यक है।

भारत का एआई नियामकीय ढांचा ‘3-3-3’ प्रारूप में तैयार किया जा सकता है। इसमें पहला ‘3’ तीन प्रमुख सिद्धांतों से संबंधित है। पहला परमिसिव डेवलपमेंटल ईकोसिस्टम है, जिसमें एआई तकनीक के विकास के लिए अनुकूल माहौल तैयार किया जाता है।

दूसरा सिद्धांत जोखिम के हिसाब से श्रेणी बनाना है, जो एआई ऐप्लिकेशन को उनसे जुड़े नुकसान और उनके निवारण के हिसाब से श्रेणियों में बांटता है। तीसरा सिद्धांत कारगर जिम्मेदारी और देनदारी से है, जो नवाचार बढ़ाने के साथ ही प्रतिकूल प्रभाव से निपटने के लिए जवाबदेही तय करने की त्वरित एवं प्रभावी प्रणाली तैयार करता है।

परमिसिव डेवलपमेंटल ईकोसिस्टम में उचित उद्देश्यों के लिए एआई के विकास पर कम से कम पाबंदी होनी चाहिए। ऐसा माहौल तैयार किया जाना चाहिए जहां आदर्श विकास, डेटा गुणवत्ता और कौशल वृद्धि पर जोर देने वाले श्रेष्ठ कार्य व्यवहार एवं मानक स्थापित किए जा सकें। इस वर्ष शुरू ‘द इंडिया एआई मिशन’ इस दिशा में उठाया गया एक कदम है।

जोखिम के हिसाब से श्रेणी तय करना एआई ऐप्लिकेशन को जोखिमों से निपटने के लिए जरूरी है। ऐप्लिकेशन को जोखिम की तीन श्रेणियों – कम, औसत और अधिक – में रखा जा सकता है। ऐप्लिकेशन के इस्तेमाल से पहले किसी बाहरी पेशेवर से जोखिमों की समीक्षा कराई जाए ताकि इनकी श्रेणी तय हो सके। कम जोखिम वाले ऐप्लिकेशन में डेवलपर स्वयं ही घोषणा करेंगे कि उन्होंने श्रेष्ठ स्थापित मानकों का पालन किया है।

औसत जोखिम वाले ऐप्लिकेशन को तैयार करने वाले (डेवलपर) और इस्तेमाल में लाने वाले (डेप्लॉयर) को नैतिकता और पारदर्शिता वाले संचालन व्यवहार अपनाना होगा। उन्हें डेटा स्रोतों से पूर्वग्रह भी खत्म करना होगा ताकि जोखिम दूर किया जा सके। इनके लिए नियम-कायदे नियामक तय करेगा और वह अनुपालन सुनिश्चित कराने के लिए तीसरे पक्ष से ऑडिट कराकर नजर भी रखेगा।

अधिक जोखिम वाले ऐप्लिकेशन को नियामक द्वारा व्यापक समीक्षा के बाद ही इस्तेमाल किया जाएगा। इन पर नजर रखने की प्रणाली भी सख्त होगी। मानव जीवन, राष्ट्रीय संप्रभुता या सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित करने वाले ऐप्लिकेशन सरकार की निगरानी में इस्तेमाल किए जाएंगे। इनके संचालन में मानवीय हस्तक्षेप का प्रावधान रहेगा यानी यह प्रणाली मानव एवं मशीन दोनों मिलकर संचालित करेंगे।

एआई के लिए जवाबदेही और देनदारी की व्यवस्था में डेवलपरों, डेप्लॉयरों और यूजरों की जिम्मेदारी स्पष्ट रूप से परिभाषित होनी चाहिए। डेवलपर पर यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि एआई प्रणालियां पूर्वग्रह से दूर रहेंगी, निजता बची रहे और प्रणाली की समीक्षा भी हो। एआई प्रणालियों पर नजर रखने का जिम्मा डेप्लॉयर का होगा और उन्हें संभावित जोखिम का जल्द पता लगाकर उन्हें खत्म करने की व्यवस्था भी तैयार रखनी होगी। यूजर के पता होना चाहिए कि इस्तेमाल की जा रही एआई प्रणाली की सीमाएं और संभावित दुष्षपिणाम क्या हो सकते हैं।

नियामकों को सुनिश्चित करना होगा कि प्रत्येक एआई प्रणाली अपनी निर्णय लेने की प्रक्रिया का ऑडिट रिकॉर्ड संभालकर रखे ताकि जांच और फॉरेंसिक में मदद मिले और पारदर्शिता तथा जवाबदेही सुनिश्चित हो। नुकसान होने पर मुआवजे का भी प्रावधान होना चाहिए।

एआई नियमन की प्रस्तावित व्यवस्था में ऐप्लिकेशन के जोखिम पता लगाने के लिए जोखिम विश्लेषक और ऑडिट तथा जांच के लिए एआई फॉरेंसिक की जरूरत हो सकती है। इससे एआई में नए रोजगार की संभावनाएं पैदा होंगी। मगर एआई नियमन में ‘इंस्पेक्टर राज’ नहीं होना चाहिए। सरकार को सूत्रधार की भूमिका में रहते हुए नियम एवं मानक तय करने चाहिए और जोखिम विश्लेषकों और एआई फॉरेंसिक विशेषज्ञों जैसे कुशल पेशेवर तैयार करने चाहिए।

कुल मिलाकर भारत को एआई की संभावनाओं का लाभ उठाने और इससे जुड़े जोखिम कम से कम करने के लिए कारगर नियामकीय व्यवस्था तैयार करनी चाहिए। यह व्यवस्था नवाचार और वृद्धि में मददगार होनी चाहिए मगर इसे सुनिश्चित करना होगा कि एआई का इस्तेमाल जवाबदेही, नैतिकता और पारदर्शिता के साथ हो। अब समय आ गया है कि एआई के इस्तेमाल में नैतिक मूल्यों का ध्यान रखते हुए मानवता के श्रेष्ठ हितों को आगे बढ़ाया जाए।

First Published - September 30, 2024 | 10:14 PM IST

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