भारत के नए 1 लाख करोड़ रुपये के शहरी चुनौती कोष (यूसीएफ) की घोषणा फरवरी के बजट में की गई थी और इसे जल्द ही शुरू किया जाना है। यह शहरी क्षेत्र की फंडिंग में केंद्र की भूमिका में एक मौलिक बदलाव को दर्शाता है जिसके तहत आवंटन वाले मॉडल से हटकर एक ‘चुनौती कोष’ पर जोर दिया जाना है। यूसीएफ किसी परियोजना लागत के 25 फीसदी की पेशकश करेगा और यह इस शर्त पर कि शहर सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के माध्यम से बॉन्ड, ऋण या निजी इक्विटी के रूप में कम से कम 50 फीसदी जुटाएं। ऐसे में शहरों को परियोजना चयन के लिए एक नए प्रारूप की आवश्यकता होगी।
शहरी परियोजनाओं में पीपीपी का योगदान ऐतिहासिक रूप से कम रहा है। वर्ष 1990 और 2022 के बीच, भारत के बुनियादी ढांचा क्षेत्र ने पर्याप्त निजी पूंजी जुटाई। करीब 1,265 परियोजनाओं ने 24 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश आकर्षित किया लेकिन इसका अधिकांश हिस्सा परिवहन और ऊर्जा क्षेत्र में केंद्रित था।
यूसीएफ के तीन स्तंभ, ‘वृद्धि केंद्र के रूप में शहर’, ‘रचनात्मक पुनर्विकास’, और ‘जल एवं स्वच्छता प्रणालियां’ एक साहसिक इरादे का संकेत देते हैं। लेकिन परियोजना चयन के मानदंड सख्त नहीं होंगे तो नीयत अच्छी होने के बावजूद प्रभाव कम हो सकता है। इस कोष को ऐसी परियोजनाओं का सहयोग करना चाहिए जिनसे स्पष्ट तौर पर राजस्व के स्रोत तैयार हों, सेवाओं में सुधार दिखे और जिनके दायरे को बढ़ाया जा सके।
‘वृद्धि केंद्र के रूप में शहर’ बनाए जाने के आधार पर देखें तो वाराणसी में तैयार की जा रही भारत की पहली शहरी रोपवे परियोजना, मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक (अटल सेतु) और मुंबई तटीय सड़क परियोजना दर्शाती हैं कि परिवहन-आधारित बुनियादी ढांचा भी किस तरह वृद्धि को समर्थन दे रहा है। डालमिया भारत द्वारा लाल किले का रखरखाव, आगा खान फाउंडेशन द्वारा नई दिल्ली में सुंदर नर्सरी का जीर्णोद्धार, मुंबई में धारावी का पीपीपी के रूप में पुनर्विकास और अहमदाबाद की साबरमती रिवरफ्रंट जैसी परियोजनाएं दर्शाती हैं कि ‘रचनात्मक पुनर्विकास’ से आखिर क्या हासिल हो सकता है।
रियल एस्टेट के पुनर्विकास से आवागमन जुड़ा हुआ है और यूसीएफ की परिवहन परियोजनाएं मौजूदा कॉरिडोर की नकल करने के बजाय उनके पूरक के रूप में होनी चाहिए। मेट्रो विस्तार की फंडिंग करने के बजाय, यूसीएफ को मेट्रो स्टेशनों के आसपास के इलाकों तक चलने वाली इलेक्ट्रिक फीडर बसों, पैदल यात्री क्षेत्रों और पारगमन-उन्मुख विकास (टीओडी) को प्रायोजित करना चाहिए। टीओडी परियोजनाएं मेट्रो स्टेशनों को वाणिज्यिक स्थानों, होटलों और अपार्टमेंटों के साथ जोड़ते हुए भीड़ कम कर सकती हैं और पार्किंग शुल्क और किराये के माध्यम से कमाई भी कर सकती हैं।
इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को चार्ज करने के लिए सौर माइक्रोग्रिड, बाइक शेयरिंग और छोटे पैमाने के परिवहन बेड़े को मिलाकर बनाए गए एकीकृत ई-मोबिलिटी केंद्र भारत में ईवी को अपनाने से जुड़े बदलाव में सहयोग करते हुए आय के कई स्रोत बनाते हैं।
पानी और साफ-सफाई की व्यवस्था को अब ऐसी सेवाओं की तरह देखना होगा जो अपनी लागत खुद निकाल सकें और स्मार्ट तकनीक का इस्तेमाल करके कमाई करा सकें। पानी की आपूर्ति से जुड़ी ऐसी परियोजनाएं जिनमें इंटरनेट से चलने वाले सेंसर लगे हों और जो पानी के रिसाव का पता लगा सकें (जैसे पुणे की 24 घंटे वाली पानी की परियोजना) और ऐसी विकेंद्रीकृत पानी की रीसाइक्लिंग परियोजनाएं जो कारखानों से निकलने वाले गंदे पानी को साफ करके फिर से इस्तेमाल करने लायक बना सकें, उनसे कमाई की जा सकती है। कानपुर का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट कार्यक्रम, जिसे कानपुर रिवर मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड चला रही है, उससे यह पता चलता है कि एक ही ठेकेदार को हाइब्रिड-एन्युइटी, ‘वन सिटी, वन ऑपरेटर’ अनुबंध के तहत शहर के एसटीपी नेटवर्क को बनाने, सुधारने और चलाने की जिम्मेदारी दी जा सकती है, जिससे जवाबदेही तय होती है। इंदौर में एशिया का सबसे बड़ा बायो-सीएनजी संयंत्र यह दर्शाता है कि कैसे एक शहर कार्बन क्रेडिट बना सकता है।
यूसीएफ परियोजना को इस तरह से बनाया जाना चाहिए कि उनसे म्युनिसिपल बॉन्ड जारी करने और मूल्य प्रणाली को इस्तेमाल करने को बढ़ावा मिले। हाल ही में मिली सफलताएं इसकी संभावना दिखाती हैं।
पुणे ने पानी की व्यवस्था को सुधारने के लिए म्युनिसिपल बॉन्ड से 7.6 फीसदी की ब्याज दर पर 200 करोड़ रुपये जुटाए जबकि पिंपरी-चिंचवड़ ने ग्रीन बॉन्ड से 200 करोड़ रुपये जुटाए। दूसरी तरफ, 100 प्रस्तावित स्मार्ट सिटी में से केवल 15 ने ही पूंजीगत बाजार का इस्तेमाल किया है, जो तकनीकी क्षमता में कमी को दर्शाता है और इस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। यूसीएफ को हस्तांतरण किए जाने योग्य विकास अधिकारों, बेहतर लेवी और टीओडी पट्टे के माध्यम से जमीन के मूल्य को हासिल करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और बस डिपो, फायर स्टेशन और पोस्ट ऑफिस इमारत के ऊपरी मंजिल की जगह को किराये पर देकर लगातार और सुरक्षित कमाई करनी चाहिए।
यूसीएफ की सफलता के लिए अच्छा शासन जरूरी है। इसे स्वतंत्र मूल्यांकन पैनल और परियोजना प्रस्ताव के लिए प्रतिस्पर्धी निविदा के साथ एक पारदर्शी फंड के रूप में काम करना चाहिए। कुछ खास मामलों में, जैसे मोनोरेल या पॉड टैक्सी के लिए, स्विस चैलेंज तरीके का भी इस्तेमाल किया जा सकता है जो एक ऐसी खरीद प्रक्रिया है जहां किसी निजी पार्टी से प्राप्त अनापेक्षित प्रस्ताव को सरकार द्वारा पारदर्शी तरीके से संसाधित किया जाता है। सरकार ने समझदारी से किसी योजना के बजाय एक फंड का विकल्प चुना है और उसे पारदर्शिता के साथ और काम के आधार प्रोत्साहन वाला वेतन देकर एक पेशेवर प्रबंधक को रखना चाहिए ताकि फंड सुरक्षित रहे और बेहतर प्रदर्शन करे।
क्षमता निर्माण बहुत जरूरी है क्योंकि ज्यादातर शहरों में बाजार के लिए तैयार परियोजनाएं बनाने की क्षमता नहीं है। इस काम के लिए, निजी निवेश इकाई की विशेषज्ञता का उपयोग किया जा सकता है जो पहले पीपीपी सेल कहलाती थी और जो भारत अवसंरचना परियोजना विकास निधि (आईआईपीडीएफ) का प्रबंधन करती है। इस इकाई ने आईआईपीडीएफ के तहत 70 करोड़ रुपये की मंजूरी के साथ 30 से अधिक परियोजनाओं को तैयार किया है और वर्ष 2022-25 के लिए इसके पास 150 करोड़ रुपये का आवंटन है। इसलिए, यह इकाई शहरी स्थानीय निकायों को यूसीएफ के लिए लेन-देन और परियोजना तैयारी में मदद करने के लिए पूरी तरह से सक्षम है।
संक्षेप में, यूसीएफ के माध्यम से फंडिंग वाली परियोजनाओं को चार मुख्य शर्तें पूरी करनी होगी। पहला, परियोजनाओं को आर्थिक रूप से सफल होना चाहिए। इसके लिए उनमें उपयोगकर्ता शुल्क, भूमि के जरिये कमाई करने और अन्य तरीकों से निश्चित राजस्व कमाने की क्षमता होनी चाहिए। दूसरा, परियोजनाओं के कारण नागरिकों को मिलने वाली सेवाओं में सुधार होना चाहिए, और समय के साथ इन सेवा स्तरों में मापे जा सकने वाले सुधार होने चाहिए। तीसरा, उन्हें शहरी तकनीक में नए प्रयोग करने चाहिए, जैसे कि एआई, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), और साइट पर ही अक्षय ऊर्जा का उपयोग करना।
चौथा, इन सभी कदमों से ऐसा सामाजिक प्रभाव बनना चाहिए जिसका आकलन हो सके। यूसीएफ की सफलता इस पर निर्भर करती है कि इसे वास्तविक ‘चुनौती’ के रूप में तैयार किया जाए जो प्रतिस्पर्धी, रचनात्मक, और पारदर्शी हो। जैसे-जैसे हम विकसित भारत 2047 की ओर बढ़ेंगे, यूसीएफ का यह परियोजना चयन ढांचा ही तय करेगा कि हमारे शहर विकास के इंजन बनते हैं या फिर हमेशा अनुदान मांगने वाले बने रहते हैं। चुनाव और डिजाइन, दोनों हमारे हाथ में है।
(लेखक बुनियादी ढांचा विशेषज्ञ और इन्फ्राविजन फाउंडेशन के संस्थापक एवं प्रबंधन ट्रस्टी भी हैं। शोध में लॉरेन कार्डोजा का भी योगदान है)