वाहनों के कलपुर्जे बनाने वाली कंपनी उनो मिंडा के कार्यकारी चेयरमैन निर्मल कुमार मिंडा का कहना है कि इलेक्ट्रिक वाहन (EV) तकनीक के लिए भारत को अगले पांच से 10 सालों तक चीन के साथ मिलकर काम करना चाहिए, क्योंकि चीन इस क्षेत्र में आगे है, बशर्ते इससे राष्ट्रीय सुरक्षा या संप्रभुता पर कोई आंच न आए।
मिंडा ने बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में कहा, ‘चीन से जोखिम में कमी आसान नहीं है। वहां बनने वाले लगभग 40 प्रतिशत वाहन इलेक्ट्रिक हैं, वे अब विश्व में अगुआ हैं। हमें चीन के साथ काम करना चाहिए, राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करते हुए नहीं, बल्कि दोनों पक्षों के फायदे वाले हालात बनाकर।’
इस साल अप्रैल से चीन ने भारत को दुर्लभ खनिज परमानेंट मैग्नेट का निर्यात करने पर रोक लगाई हुई है, जिससे घरेलू वाहन उद्योग में उत्पादन पर असर पड़ा है। दुर्लभ खनिज परमानेंट मैग्नेट इलेक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल होने वाली ट्रैक्शन मोटरों के लिए जरूरी होती हैं, और दुनिया भर में इसका लगभग 90 प्रतिशत उत्पादन चीन में होता है। दुर्लभ खनिज खनन और दुर्लभ खनिज ऑक्साइड को मैग्नेट में तब्दील करने के लिए जरूरी मशीनरी के मामले में भी इस देश का दबदबा है।
मिंडा ने कहा कि सरकार और उद्योग को स्थानीय अनुसंधान और विकास (आरऐंडडी) के जरिये दीर्घ अवधिक वाले समाधान खोजने के लिए मिलकर काम करना चाहिए, लेकिन चीन के साथ लघु अवधि वाला सहयोग जरूरी है। उन्होंने कहा, ‘लघु अवधि के लिए हमें उनके साथ काम करने की जरूरत है। उनके पास अगली पीढ़ी की तकनीक है और वे बैटरी, इंजन और एडीएएस (एडवांस्ड ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम) जैसे क्षेत्रों में किफायती लागत वाले हैं।’
उन्होंने कहा, ‘हमें अगले 5 से 10 साल तक चीन के साथ काम करना चाहिए और उस अवधि में हमें आत्मनिर्भर बनना चाहिए, ठीक वैसे, जैसे वे बने हैं।’
वाहन कलपुर्जे बनाने वाले भारतीय विनिर्माताओं के लिए चीन सबसे बड़ा आयात बाजार है और अमेरिका सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है। जहां चीन ने दुर्लभ खनिज परमानेंट मैग्नेट की आपूर्ति पर रोक लगा दी है, वहीं अमेरिका ने हाल ही में भारत से आने वाले वाहन कलपुर्जों पर 25 से 50 प्रतिशत का टैरिफ लगाया है।
अमेरिका को किए जाने वाले निर्यात के राजस्व की हिस्सेदारी उनो मिंडा के मामले में केवल एक से डेढ़ प्रतिशत ही रहती है। मिंडा ने कहा, ‘मुझे इन टैरिफ से कोई बड़ा असर नहीं दिख रहा है। हमारे ग्राहकों को हमारे जैसे आपूर्तिकर्ताओं के साथ कलपुर्जा विकास और प्रमाणित करने में 12 से 18 महीने लगते हैं। यह मुश्किल प्रक्रिया होती है, क्योंकि वाहनों को हर कलपुर्जा सॉफ्टवेयर के जरिये दूसरे के साथ संपर्क करता है। अगर कोई असर होता भी है, तो वह एक साल या उससे ज्यादा समय बाद ही दिखाई देगा।’
उन्होंने दोनों सरकारों से इस मसले को रणनीतिक तरीके से सुलझाने की अपील की। उन्होंने कहा, ‘भारत और अमेरिका को साथ बैठकर कोई हल निकालना चाहिए, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा की कीमत पर नहीं।’ उनो मिंडा के किसी भी अमेरिकी ग्राहक ने खरीद में बदलाव की किसी योजना का संकेत नहीं दिया है। उन्होंने कहा, ‘शायद वे भी समाधान की उम्मीद कर रहे हैं।’
इस साल 17 फरवरी को उनो मिंडा ने इलेक्ट्रिक ड्राइव प्रणाली बनाने वाली चीन की कंपनी सूजोउ इनोवेंस ऑटोमोटिव कंपनी लिमिटेड के साथ भारत में हाई-वोल्टेज ईवी इंजन के कलपुर्जे बनाने के लिए संयुक्त उद्यम का ऐलान किया था। इस उद्यम में उनो मिंडा की 70 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इस उद्यम के तहत यात्री और वाणिज्यिक वाहनों के लिए ई-एक्सल, मोटर, इनवर्टर और चार्जिंग यूनिट का विनिर्माण किया जाएगा।