आदित्य बिड़ला सन लाइफ ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी (एएमसी) में सह-मुख्य निवेश अधिकारी एवं इक्विटी प्रमुख हरीश कृष्णन ने अभिषेक कुमार के साथ साक्षात्कार में कहा कि जहां लार्जकैप क्षेत्र में रिस्क-रिवार्ड अनुकूल बना हुआ है, वहीं ज्यादा जोखिम उठाने की क्षमता रखने वाले और स्मॉलकैप पर दांव लगाने वाले निवेशक उन कंपनियों पर विचार कर सकते हैं जिनके शेयर भाव नीचे आए हैं। कृष्णन का कहना है कि एएमसी घरेलू-केंद्रित व्यवसायों पर उत्साहित बनी हुई हैं। उनसे बातचीत के मुख्य अंश:
स्मॉलकैप सूचकांकों में अपने ऊंचे स्तर से करीब 12 प्रतिशत तक गिरावट आई है और अब वे दिसंबर 2023 के स्तर तक पर वापस आ गए हैं। इस गिरावट से कुछ हद तक बाजार में झाग की स्थिति दूर हुई है,लेकिन सूचकांक अभी भी पिछले साल से 50 प्रतिशत से ज्यादा बढ़े हुए हैं। हालांकि ऐसे कई शेयर हैं जिनमें सूचकांक के मुकाबले बड़ी गिरावट आई है। स्मॉलकैप निवेश ‘बॉटम-अप’दांव ज्यादा है, इसलिए सेक्टोरल स्तर पर स्पष्ट कह पाना चुनौतीपूर्ण है। हम रसायन, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, फार्मास्युटिकल्स, ऑटोमोटिव एंसिलियरीज, पूंजीगत वस्तु और वित्त जैसे क्षेत्रों में ज्यादा अवसर देख रहे हैं।
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निवेशकों को अपने परिसंपत्ति आवंटन पर ध्यान देना चाहिए। हम निवेशकों को इक्विटी पर तटस्थ नजरिया और लार्जकैप पर ओवरवेट रहने का सुझाव दे रहे हैं। मौजूदा गिरावट जैसे हालात ने निवेशकों को अपना परिसंपत्ति आवंटन संतुलित बनाने का मौका दिया है। यदि रिस्क प्रोफाइल अनुमति दे तो निवेशकों को अपना निवेश उन शएयरों में बढ़ाने पर विचार करना चाहिए जिनमें उनका निवेश कम है।
हम घरेलू चक्रीयता पर सकारात्मक नजरिया बनाए हुए हैं। वाहन, रियल एस्टेट, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी जैसे क्षेत्र और विनिर्माण एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर जेसी निवेश थीमों से जिनको फा.दा होगा, उनको लेकर हम दीर्घावधि के लिहाज से सकारात्मक हैं। बुनियादी आधार के अलावा हम व्यापार चक्र के नजरिए से भी क्षेत्रों का विश्लेषण करते हैं। संकेत यही हैं कि वाहन, पूंजीगत वस्तु, रियल एस्टेट, सीमेंट और आईटी जैसे क्षेत्रों ने मध्यावधि में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। पिछले 18-24 महीनों के दौरान ये पहले ही अच्छा प्रदर्शन कर चुके हैं। दूसरी तरफ फार्मास्युटिकल, कंज्यूमर ड्यूरेबल, धातु और मीडिया जैसे क्षेत्रों में बदलाव देखा जा सकता है।
हमारा मानना है कि भारतीय कंपनियों की वैश्विक प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ रही है। वैश्विक मंदी और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की आशंका को लेकर अल्पावधि चिंताएं हैं और है। इसे देखते हुए हम आईटी सेवाओं, ऑटोमोटिव, पूंजीगत वस्तु, फार्मास्युटिकल या रसायन जैसे वैश्विक बाजारों से जुड़ी कंपनियों में निवेश बढ़ाने की संभावना देख रहे हैं।
कुछ दशक पहले तक भारतीय कंपनियों में रुचि रखने वाले वैश्विक निवेशकों के लिए वृहद आर्थिक कमजोरियां चिंता का प्रमुख विषय थीं जो उनके वास्तविक मूल्यांकन को प्रभावित कर रही थीं। लेकिन हाल के समय में हालात काफी बदले हैं। अब हमने वित्तीय और मौद्रिक नीति दोनों के लिए काउंटर-सिक्लीकल दृष्टिकोण अपनाया है क्योंकि वृद्धि अनुकूल बनी हुई है। हालांकि वैश्विक घटनाक्रम भारतीय बाजार के लिए अनिश्चितता पैदा कर सकते हैं, लेकिन हमारे काउंटर-सिक्लीकल दृष्टिकोण का मतलब है कि हमारे पास वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त विकल्प हैं। हालांकि कुछ क्षेत्रों में मूल्यांकन बढ़ा हुआ है।