श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने भूराजनीतिक रुझानों के अनुरूप श्रीलंका के विदेशी संबंधों का ‘‘पुनर्मूल्यांकन’’ करने और दिवालिया राष्ट्र के लिए अधिकतम आर्थिक लाभ की आवश्यकता को बुधवार को रेखांकित किया।
राष्ट्रपति विक्रमसिंघे ने संसद के नए सत्र के उद्घाटन पर अपने नीतिगत भाषण के दौरान कहा कि इसके प्रमुख घटक के रूप में भारत के सहयोग से त्रिंकोमाली को आर्थिक केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए एक कार्यक्रम पहले ही शुरू किया जा चुका है।
विक्रमसिंघे ने कहा, ‘‘मौजूदा जरूरतों और भूराजनीतिक रुझानों के मद्देनजर हमारे विदेशी संबंधों का पुनर्मूल्यांकन करना जरूरी है। विदेशी संबंधों पर नए सिरे से गौर करते हुए आर्थिक संभावनाओं का लाभ उठाने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, देश की आर्थिक ताकत को बढ़ाने वाली नयी विदेश नीतियों को अपनाना और सभी राष्ट्रों के साथ गुटनिरपेक्ष नीतियों और मित्रता को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है। हमारी विदेश नीति की दिशा समसामयिक युग के अनुरूप विकसित हो रही है।’’
विक्रमसिंघे ने उत्पादों को विदेशी बाजारों में प्रवेश की सुविधा प्रदान करने को लेकर आर्थिक संबंधों का नया नेटवर्क स्थापित करने की दिशा में अब तक उठाए गए कदमों को रेखांकित किया और कहा कि लक्ष्य कई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) करना है।
श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने मंगलवार को कहा था कि देश की 2024 के अंत तक भारत के साथ एफटीए स्थापित करने की योजना है, जबकि इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम और चीन के लिए भी साल के अंत तक इसी तरह के मुक्त व्यापार समझौते पर काम किया जाएगा। हाल में थाईलैंड के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए गए और सिंगापुर के साथ मुक्त व्यापार समझौता पूरी तरह से चालू है।
राष्ट्रपति ने कहा कि श्रीलंका को भी क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) में शामिल होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा, ‘‘हम यूरोपीय संघ (ईयू) में व्यापार विविधता की सामान्य प्रणाली से जुड़ेंगे।’’ श्रीलंका और भारत ने पिछले साल अक्टूबर में कोलंबो में 12वें दौर की आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहयोग समझौते पर बातचीत फिर से शुरू की। राजनीतिक स्तर पर और ट्रेड यूनियन के विरोध के कारण 2016 और 2018 के बीच कई दौर की बातचीत के बाद वार्ता रुक गई थी।