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मुंबई की बिगड़ती आबोहवा की काली छाया से संकट में तंदूरी रोटी

तंदूर भट्टी बंद करने के फरमान से तंदूरी रोटी और कबाब के शौक़ीन बेहतरीन स्वाद की विदाई के आहट से परेशान है।

Last Updated- March 03, 2025 | 12:05 PM IST
tandoori roti
Representative image

मुंबई की बिगड़ती हवा की सेहत को दुरुस्त करने के लिए अदालत ने आंखें तरेरी तो प्रशासन ने मुंबई में होटलों, रेस्तरां और ढाबों में तंदूर रोटियां बनाने के लिए तंदूर कोयला भट्ठी के उपयोग पर बैन लगाने का फरमान जारी कर दिया। तंदूर भट्ठी बंद करने के फरमान से तंदूरी रोटी और कबाब के शौक़ीन बेहतरीन स्वाद की विदाई के आहट से परेशान है। वहीं होटल कारोबारी और चारकोल (लकड़ी कोयला) व्यापारी लामबंद होकर पुनर्विचार की गुहार लेकर अदालत की चौखट पर पहुंच गए।

दरअसल बंबई उच्च न्यायलय ने 9 जनवरी को आदेश जारी करके सभी दुकानों को 8 जुलाई तक स्वच्छ ईंधन का विकल्प अपनाने को कहा। अदालत के आदेश के बाद मुंबई नगर निगम (बीएमसी) की ओर से सभी होटल, रेस्टोरेंट और ढाबों को नोटिस जारी करके तंदूर भट्ठी बंद करने को कहा गया और होटल मालिकों और संचालकों को इलेक्ट्रिक भट्ठियों के विकल्प का सुझाव दिया। बीएमसी की इस कार्रवाई पर कुछ होटल मालिकों ने नाराजगी जताई है। कुछ लोगों का कहना है कि कोयले की भट्ठियां बंद करने से तंदूर रोटी का स्वाद बदल जाएगा। जबकि पारंपरिक तंदूरों के बिना कबाब अपना वजूद खो सकते हैं ।

इंडियन होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन (आहार) के अध्यक्ष सुधाकर शेट्टी ने कहा कि अदालत के निर्णय में कहीं भी रेस्टोरेंट का जिक्र नहीं है, इसके बावजूद बीएमसी अधिकारी रेस्टोरेंट को नोटिस भेज रहे हैं। इस पर कानूनी सलाह ली जा रही है। आहार के पूर्व अध्यक्ष निरंजन शेट्टी कहते हैं कि बीएमसी और प्रदूषण बोर्ड अपनी नाकामी छुपाने के लिए होटल कारोबारियों को निशाना बना रही है। अदालती आदेश में चारकोल का जिक्र न होने के बावजूद इसको प्रतिबंधित करके वह अदालत को यह बताना चाह रहे हैं कि हमने प्रदूषण कम कर दिया जबकि मुंबई में सबसे ज्यादा प्रदूषण वाहनों और निर्माण परियोजनाओं से हो रहा है उन पर ध्यान न देकर होटल कारोबारियों को निशाना बनाया जा रहा है। शेट्टी कहते हैं कि हमें ग्रीन एनर्जी इस्तेमाल के लिए कहा जाता है तो प्रशासन को इसमें मदद भी करनी चाहिए। प्रतिबंध के साथ विकल्प भी देना होगा। गैस भट्ठी या बिजली की भट्ठी लगाने के लिए जो खर्च आएगा इसमें सरकार क्या मदद करने वाली है वह स्पष्ट करें।

तंदूर भट्ठी बंद करने को लेकर होटल मालिकों में भी अलग अलग राय है। एक तरफ छोटे और मझोले होटल मालिक बीएमसी के फरमान को गैरजिम्मेदाराना करार दे रहे हैं वहीं बड़े होटल कारोबारी पर्यावरण के नाम पर इसका समर्थन कर रहे हैं । फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफएचआरएआई) के अध्यक्ष भरत मलकानी कहते हैं कि हम अदालत और प्रदूषण बोर्ड की चिंता को समझते हैं उनके कदम का समर्थन भी करते हैं क्योंकि होटलों में जिस कोयला का उपयोग किया जाता है वह लकड़ी से तैयार किया जाता है। लकड़ी के लिए पेड़ों की कटाई की जाती है जिससे हरियाली कम हो रही है। हम अदालत और प्रशासन से तोड़ा समय चाहते हैं ताकि कोयले भट्टी को गैस या इलेक्ट्रिक भट्टी में बदला जा सके। इसके लिए चार से छह महीने का समय चाहिए ।

तंदूरी भट्ठी में पर प्रतिबंध से सबसे ज्यादा चारकोल (लकड़ी कोयला) के कारोबारी प्रभावित हो रहे हैं। उनका तर्क है कि बीएमसी अदालत के आदेश को पूरी तरह समझे बिना यह प्रतिबंध लगा रहा है। द बॉम्बे चारकोल एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष चंद्रशेखर सिंह कहते हैं कि अदालत ने वायु प्रदूषण रोकने के लिए बीएमसी और प्रदूषण बोर्ड को कदम उठाने को कहा तो वह तंदूर भट्टी को प्रतिबंधित करने का फरमान जारी कर दिया जबकि तंदूर भट्टियों में लकड़ी का कोयला इस्तेमाल होता है इससे वायु प्रदूषण नहीं होता है क्योंकि यह लकड़ी को जलाकर बनाया जाता है और मुंबई में कोयला बनाया नहीं जाता है । कोयला ईंधन का काम करता है और इसकी राख भट्टी के नीचे बैठ जाती है जिसके कारण इससे वायु प्रदूषण नहीं होता है।

कई पीढ़ियों से चारकोल के व्यवसाय से जुड़े पारस बोरा जो चारकोल एसोसिएशन के सदस्य भी है, वह कहते हैं दरअसल अदालत ने पत्थर कोयले पर रोक लगाने को कहा है जबकि तंदूर भट्ठियों में लकड़ी का कोयला इस्तेमाल होता है। यह कोयला बबूल की लकड़ी तैयार किया जाता है जिसकी परमिशन है। चारकोल सब प्रोडक्ट है इससे प्रदूषण नहीं होता है। इस बात को समझे बिना बंद का फरमान जारी कर दिया गया। इसलिए हमने अदालत में पुनर्विचार याचिका जारी की है ताकि अदालती आदेश में स्पष्टी कारण आ सके। अदालत ने लकड़ी जलाने पर रोक लगाने को कहा है लकड़ी का इस्तेमाल तंदूर भट्टियों में नहीं होता है इसका इस्तेमाल बेकरी में किया जाता है।

वह कहते हैं कि चारकोल बनाने में छायादार या फलदार अथवा उपयोगी वृक्षों की कटाई नहीं होती है और सरकार की तरफ जिन जंगली पेड़ों की कटाई की परमिशन है। इसकी लकड़ी से चारकोल बनाया जाता है। यह प्रदूषण का नहीं बल्कि नासमझी का मुद्दा है। दिल्ली जैसे शहर ज्यादा प्रदूषण है फिर भी वह चारकोल (कोयला) के इस्तेमाल की अनुमति है, जबकि मुंबई में प्रतिबंधित कर दिया। हम इससे संबंधित जानकारी और कानूनी सलाह ले रहे हैं जल्द ही न्यायालय में पुनर्विचार की अपील करेंगे। इस क्षेत्र में जुड़े लोगों के रोजी रोटी का सवाल है।

तंदूर भट्ठियों में जो कोयला इस्तेमाल होता वह बबूल की लकड़ी से तैयार किया जाता है जिसे जलाऊ लकड़ी के श्रेणी में रखा गया है। मुंबई में मुख्यतः कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, गुजरात से चारकोल आता है। मुंबई महानगरीय क्षेत्र के होटलों और रेस्त्रां में हर दिन करीब 100 टन से ज्यादा कोयला लगता है। इस समय मुंबई में कोयला का भाव 20 रुपये से 25 रुपये प्रति किलोग्राम है।

बेकरी कारोबार पर गहरी चोट

मुंबई की कई पारंपरिक बेकरी लकड़ी और कोयला इस्तेमाल करके चलती हैं । न्यायालय के फैसले के कारण उन्हें बंद करने का समय आ गया है। इससे बेकरी व्यवसायियों पर आर्थिक संकट आ गया है। फिलहाल वैकल्पिक ईंधन का इस्तेमाल करना उनके लिए बड़ी चुनौती बन गया है। इंडिया बेकर्स एसोसिएशन के अनुसार वैकल्पिक ईंधन पर भट्ठी बदलने के लिए कम से कम एक महीने के लिए बेकरी बंद रखनी पड़ेगी। साथ ही बिजली पर चलने वाली भट्ठियों का खर्च वहन करना मुश्किल है और गैस आपूर्ति के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा उपलब्ध नहीं है।

बेकरी पर मंडरा रहे संकट का असर मुंबईकरों के पसंदीदा व्यंजन पाव पर पड़ना तय माना जा रहा है। महीने भर के लिए बेकरी बंद होती हैं तो पाव की आपूर्ति कम होगी। आपूर्ति कम होने पाव महंगा भी होगा। बेकरी व्यवसायियों के अनुसार, गैस या बिजली पर चलने वाली भट्ठियों का विकल्प इतनी जल्दी खड़ा नहीं किया जा सकता है। गैस पर चलने वाली भट्टियों के लिए बड़े पैमाने पर सिलेंडर स्टोर करने की जरूरत होगी, जो सुरक्षा के दृष्टिकोण से खतरनाक हो सकता है। पीएनजी गैस लाइन हर गली में उपलब्ध नहीं है, इसलिए यह व्यवस्था तुरंत करना मुश्किल है। इसलिए बेकरी कारोबारी सरकार से मदद की गुहार कर रहे हैं। वह वैकल्पिक ईंधन के लिए आर्थिक मदद और अनुदान देने का आग्रह किया है।

First Published - March 3, 2025 | 10:31 AM IST

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