जिला अदालतों में सालों साल से लंबित चेक बाउंस के मामलों ने छोटे और मझोले व्यापारियों के व्यवसाय को चौपट कर दिया। देश के सर्वोच्च अदालत के दिशानिर्देश के बावजूद स्थिति में सुधार न आने से परेशान कपड़ा कारोबारियों ने प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और कानून मंत्री से इस मामले में हस्ताक्षेप करने की गुहार लगाई है । कपड़ा कारोबारियों की संस्था भारत मर्चेंट्स चेंबर ने दावा किया है कि चेक बाउंस के कारण उनके अरबों रुपये सालों से अटके पड़े हैं। मुंबई के सिर्फ किला कोर्ट में पिछले दस साल से के एक लाख पैसठ हज़ार से अधिक चेक बाउंसिंग के केस पेंडिंग है। जबकि देश में करीब 35 लाख से अधिक केस विभिन्न अदालतों में लंबित है।
संस्था के अध्यक्ष मनोज जालान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजकर कहा है कि चेक बाउंस के मामलों के कारण देशवासियों के अरबों रुपये फंसे हुए हैं। उन्होंने कोर्ट में बढ़ते चेक बाउंस मामलों पर चिंता जताते हुए सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने अपने ज्ञापन में कहा कि चेंबर को एक आरटीआई से जानकारी मिली कि पिछले दस साल में मुंबई के सिर्फ किला कोर्ट (एस्प्लेनेड कोर्ट ) में पिछले दस साल के एक लाख पैसठ हजार से अधिक चेक बाउंसिंग के केस पेंडिंग है। जबकि देशभर में करीब 35 लाख से अधिक केस विभिन्न कोर्ट में पेंडिंग है।
मनोज जालान ने कहा कि व्यापार में यह एक देश व्यापी समस्या बन गई है। जिससे एमएसएमई व्यापारी बुरी तरह प्रभावित हो रहे है। इस तरह चेक बाउंसिंग मामले में शिकायतकर्ताओं के अरबों रुपए अटके हुए है इससे सरकार का ईज़ ऑफ बिज़नेस डूइंग का नारा भी कमजोर होता है। इसके लिए सरकार को तत्काल एक ब्लू प्रिंट बनाना चाहिए । जिसमें जुडिशियल एडमिनिस्ट्रेटिव रिफार्म के तहत पूरे देश में विशेष अदालतें स्थापित करना है। जिसके लिए पहले पांच राज्यों में पायलट प्रोजेक्ट से इसकी शुरुआत की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट भी एक समय सीमा के अंतर्गत ट्रायल पूरा करने को कहता है। परंतु ऐसा होता नहीं है।
अदालत पहली तारीख पर ही सभी टेक्निकल चीजें क्लियर कर ट्रायल का रास्ता साफ़ करे तथा सम्मन हार्ड कॉपी के साथ व्हाट्सएप और ईमेल से भेजने पर भी सम्मन मान लिया जाए। अगर चेक जारी करने वाला केस निचली अदालत में हार जाता है उसे अपील करने पर 25 से 50 फीसदी भरने पर ही अपील स्वीकार की जानी चाहिए ऐसा प्रावधान किया जाए, पांच लाख तक के मामले को मेडिएशन में जाना जरूरी हो।
संस्था ने प्रधानमंत्री के साथ देश के चीफ जस्टिस एवं देश के न्याय मंत्री को भी इस अति महत्वपूर्ण मामले में हस्तक्षेप का अनुरोध किया है। पत्र में आरटीआई की कॉपी भी संलग्न की गई है जिसमें पिछले 10 सालों से लंबित मामलों का की जानकारी है।
चेक बाउंस के मामलों की सुनवाई मुख्य रूप से मजिस्ट्रेट अदालतों और विशेष डिजिटल एनआई अधिनियम अदालतों द्वारा की जाती है। लंबित मामलों की इस बड़ी संख्या के कारण, मामलों की लगातार सुनवाई के लिए औसतन 10 महीने से लेकर एक साल तक का अंतराल होता है। एनआई अधिनियम की धारा 143(3) में कहा गया है कि मुकदमे को शिकायत दर्ज होने की तारीख से छह महीने के भीतर समाप्त करने का प्रयास किया जाना चाहिए, लेकिन हकीकत में निपटारे में कहीं अधिक समय लगता है।
जिला अदालतों में लंबित पड़े इन मामलों को कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में नए दिशा निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई के दौरान अगर आरोपी चेक की पूरी रकम चुका देता है, तो उसे समझौते के जरिए राहत मिल सकती है। अगर बचाव पक्ष की गवाही दर्ज होने से पहले भुगतान होता है, तो बिना किसी जुर्माने के मामला समाप्त किया जा सकता है। वहीं, अगर आरोपी अपनी गवाही दर्ज कराने के बाद लेकिन कोर्ट के फैसले से पहले भुगतान करता है, तो उसे चेक राशि का 5 फीसदी अतिरिक्त शुल्क देना होगा। ऐसे में यदि मामला सेशन कोर्ट या हाई कोर्ट तक पहुंच गया है और वहां भुगतान किया जाता है, तो आरोपी को 7.5 फीसदी अतिरिक्त राशि अदा करनी होगी और अगर सुप्रीम कोर्ट के स्तर पर समझौता होता है, तो भुगतान के साथ-साथ 10 फीसदी अतिरिक्त शुल्क देना होगा। इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य सजा से अधिक भुगतान की वसूली और चेक को एक भरोसेमंद भुगतान माध्यम बनाए रखना है।