वित्त वर्ष 2025 के दौरान सरकारी बैंकों के किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) खातों की संख्या पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 1.8 प्रतिशत घटकर 2.25 करोड़ रह गई है। हालांकि इस अवधि के दौरान इन खातों पर बकाया ऋण 2.2 प्रतिशत बढ़कर 413 अरब रुपये हो गया है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नाम सार्वजनिक न करने की शर्त पर यह जानकारी दी।
अधिकारी ने कहा कि सक्रिय केसीसी खातों की संख्या में आई गिरावट से ग्रामीण क्षेत्रों में उधारी देने में हुए ढांचागत बदलाव का पता चलता है। साल दर साल किसानों की आमदनी में सुधार हुई है और तमाम लोग कृषि क्षेत्र से बाहर निकल रहे हैं। वहीं कुछ राज्यों में किसान सहकारी बैंकों, एनबीएफसी या इनपुट से जुड़े क्रेडिट कार्डों जैसे फर्टिलाइजर कार्डों से ऋण लेना पसंद कर रहे हैं, जिसकी वजह से सरकारी बैंकों के इन खातों में कमी आई है।
अधिकारी ने कहा, ‘2000 के दशक के आक्रामक रूप से अभियान चलाए जाने से बने तमाम किसान क्रेडिट कार्ड निष्क्रिय या कम उपयोग में रहे। हमें गैर-संचालन वाले खातों को युक्तिसंगत बनाने के लिए प्रेरित किया गया, ताकि पोर्टफोलियो को साफ किया जा सके और रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय की सलाह के अनुसार अनुपालन बोझ में कटौती की जा सके।’
एक सरकारी बैंक के अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि केसीसी सेचुरेशन मैपिंग, जियो टैगिंग और आधार से इसे जोड़े जाने से जांच में सुधार हुआ है और इससे डुप्लीकेट और अपात्र लोगों के खाते बंद हो गए। कुछ किसानों ने किसी खास मकसद के लिए दिए जा रहे ऋण का रुख किया। इसमें पीएम-किसान और एग्री इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड शामिल है। इसके अलावा बैंक शाखाओं के तकनीकी एकीकरण में होने वाली देरी जैसे अपूर्ण डिजिटल दस्तावेजों या पोर्टल में मिलान न होने के कारण नवीकरण की रफ्तार सुस्त हुई है। इसके अलावा बड़ी संख्या में छोटे आकार के एनपीए, जिनमें ऋण माफी से प्रभावित खाते भी शामिल हैं, का एकमुश्त समझौते के माध्यम से निपटारा किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप कई खाते बंद हो गए हैं।
पंजाब नैशनल बैंक के एमडी और सीईओ अशोक चंद्रा ने पिछले सप्ताह बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ एक साक्षात्कार में कहा, ‘हां, नए केसीसी खातों की संख्या में गिरावट आई है। प्राथमिक रूप से कई क्षेत्रों में सेचुरेशन के कारण ऐसा हुआ है। पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने इस पर बहुत जोर दिया है और बैंकों ने सक्रियता से अधिकतम कवरेज सुनिश्चित करने पर काम किया है। इसकी वजह से ज्यादातर पात्र किसानों को पहले ही केसीसी सुविधा मिली हुई है। बहरहाल केसीसी फसल ऋण का मुख्य स्रोत है और तमाम किसान कृषि ऋण की जरूरतें इससे पूरी करते हैं।’
खबर छपने के लिए जाने से पहले इस मसले पर वित्त मंत्रालय को भेजे गए ई-मेल का कोई जवाब नहीं मिला।
किसान क्रेडिट कार्ड योजना 1998 पर शुरू की गई थी। इसके माध्यम से कृषि और संबंधित गतिविधियों से जुड़े किसानों को फसल ऋण दिया जाता है, जिसकी मानक ब्याज दर 9 प्रतिशत है।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2026 के बजट में क्रेडिट कार्ड पर किसानों के ऋण की सीमा 3 लाख से बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दी थी। इसकी घोषणा करते हुए मंत्री ने कहा था कि कम अवधि के ऋण के लिए किसान क्रेडिट कार्ड सुविधा 7.7 करोड़ किसानों को मिल रही है, जिसमें खेती बाड़ी करने वाले, मछुआरे और दुग्ध उत्पादक शामिल हैं।
वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा, ‘केसीसी के चालू खातों में बकाया राशि के जल्दी भुगतान के लिए प्रेरित करने के लिए किसानों को 3 प्रतिशत शीघ्र पुनर्भुगतान प्रोत्साहन दिया जाता है।’