पश्चिम बंगाल के डुआर्स के एक चाय बागान के बीच खड़े संतोष बर्मन आसमान को देखते हुए अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि बादल घने हो रहे हैं या नहीं। डुआर्स-तराई के मैदानों से लेकर दार्जिलिंग की पहाड़ियों तक सैकड़ों चाय बागान इस समय कम बारिश के संकट से जूझ रहे हैं।
बर्मन चाय की पत्तियां तोड़ने वाले दिहाड़ी मजदूरों का जुगाड़ कर गुजारा करते हैं। किसी अच्छे वर्ष में वह एक दिन में 500-550 कामगारों का इंतजाम कर लेते हैं। इस सीजन में उन्हें 150 मजदूरों को काम दिलाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। वह चाय की झाड़ियों की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि ज्यादातर बागानों में पत्तियां तोड़ने लायक नहीं हैं और कई बागान बंद हो चुके हैं।
पिछले कुछ वर्षों से जलवायु परिवर्तन में बड़े पैमाने पर बदलाव देखा जा रहा है जिससे ठेकेदार से लेकर उत्पादकों तक को घाटा हुआ है। पिछले साल की तुलना में डुआर्स में मार्च की फसल में 30 फीसदी की कमी आई है। चाय शोध संगठन (डुआर्स) के मुख्य सलाहकार अधिकारी सैम वर्गीज ने कहा, ‘हम यह उम्मीद करते हैं कि अप्रैल का दूसरा पखवाड़ा बेहतर होगा।’
पश्चिम बंगाल में चाय के क्षेत्र जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार, कूच बेहड़ में 19 अप्रैल और दार्जिलिंग में 26 अप्रैल को मतदान होगा और यहां लोकसभा चुनाव के पहले और दूसरे चरण में उद्योग की मंदी में व्यापक स्तर पर दबाव बना हुआ है।
उत्तरी बंगाल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मजबूत गढ़ है। वर्ष 2019 में भाजपा ने पश्चिम बंगाल की 42 संसदीय सीट में से 18 सीट जीतीं थीं और इनमें से 7 सीट उत्तरी बंगाल में हैं।
पश्चिम बंगाल में डुआर्स क्षेत्र के बगान, जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार और कूच बेहड़ जिले का छोटा हिस्सा सभी तीनों सीटें भाजपा की हैं। सिलीगुड़ी के शहरी इलाके से लेकर दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी के जिले में भगवा झंडे का दबदबा है और यह चाहे पार्टी का झंडा हो या जय श्री राम का झंडा हो। बुधवार को यहां रामनवमी काफी धूम-धाम से मनाई गई।
असम के बाद उत्तरी बंगाल दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादन वाला क्षेत्र है और देश के उत्पादन में इसका एक-तिहाई योगदान है। यहां करीब 450,000 चाय बागान श्रमिक हैं जिनमें से कुछ छोटे चाय बागानों और उत्पादकों से जुड़े हैं और यह भी चुनाव में एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
राजनीतिक विश्लेषक सव्यसाची बसु रे चौधरी कहते हैं कि भाजपा ने 2019 में उत्तरी बंगाल में शानदार जीत दर्ज की। वह कहते हैं, ‘तृणमूल कांग्रेस ने 2021 के विधानसभा चुनावों में जलपाईगुड़ी में अपनी खोई जमीन वापस पाने की कोशिश की। लेकिन यह आम चुनाव है और अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग में चाय बागान के श्रमिक महत्त्वपूर्ण कारक हैं और ये केंद्रीय मुद्दों पर मतदान कर सकते हैं।’
भाजपा यहां पर मजबूती से टिके रहने का प्रयास कर रही है और मार्च की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तरी बंगाल में एक जनसभा को संबोधित किया है। तृणमूल कांग्रेस के प्रमुख ममता बनर्जी भी भगवा गढ़ में सेंध लगाने के लिए लगातार चुनाव प्रचार कर रही हैं। उनकी सरकार जमीन के अधिकार के नाम पर कामगारों को लुभाने की कोशिश कर रही है।
पश्चिम बंगाल के वर्ष 2024-25 के बजट भाषण के मुताबिक 2,500 एकड़ से अधिक चाय बागानों की अनुपयोगी और अतिरिक्त जमीन में से पात्र परिवारों को 5 दशांश वास भूमि का पट्टा दिया जाएगा। चा सुंदरी योजना के तहत रहने लायक घर बनाने के लिए 1.20 लाख रुपये की वित्तीय सहायता की पेशकश की जाती है।
लेकिन भूमि अधिकार एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। कई कामगार जो कई पीढ़ियों से चाय बागान से जुड़े हुए हैं वे पट्टा कानून से खुश नहीं हैं और वे इसे शरणार्थी पट्टा का नाम देते हैं।
महेंद्र छेत्री कामगार हैं और वह कहते हैं कि यह पट्टा उस जमीन के लिए दी जानी चाहिए जहां वह रह सकें क्योंकि ये जगहें बारिश के पानी से भर जाती हैं। यहां के कई चाय बागानों में भूमि सर्वेक्षण के लिए जनविरोधी योजना बंद कराए जाने को लेकर पोस्टर नजर आते हैं।
दार्जिलिंग के चाय बगानों के श्रमिकों का भी कुछ ऐसा ही मिजाज है। निशा सरकी का कहना है कि कई श्रमिक 5 दशांश से अधिक जमीन पर रह रहे हैं लेकिन इसका अर्थ यह है कि हमें अतिरिक्त जमीन छोड़नी होगी। हमें भविष्य की पीढ़ी के लिए योजना बनानी होगी।
कई स्थायी श्रमिक बागान श्रमिक अधिनियम, 1951 के दायरे में आते हैं जिसमें वेतन, आवास, मेडिकल सुविधाओं, मातृत्व लाभ और अन्य सामाजिक सुरक्षा उपायों की गारंटी होती है और कुल उत्पादन लागत में इसका योगदान करीब 60 प्रतिशत है। भूमि अधिकार दिए जाने के अलावा तृणमूल कांग्रेस को उम्मीद है कि पिछले साल 232 रुपये प्रतिदिन वेतन को बढ़ाकर 250 रुपये रोजाना किया गया था जिसका लाभ अब मिल सकता है।
जलवायु परिवर्तन के चलते दार्जिलिंग बुरी तरह प्रभावित हुआ है। वर्ष 2022-23 में उत्पादन 68 लाख किलोग्राम था। वर्ष 2009 के बाद से ही यह एक करोड़ किलोग्राम से नीचे ही रहा है। यहां के भाजपा सांसद राजू बिस्ता दूसरे कार्यकाल मिलने की उम्मीद लगाए हुए हैं लेकिन उन्हें अलग राज्य गोरखालैंड की लंबे समय से की जा रही मांग का सामना करना पड़ रहा है।
बिस्ता ने हाल ही में पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में अलग राज्य का जिक्र किए बिना कहा कि दार्जिलिंग की पहाड़ियों के लिए स्थायी राजनीतिक समाधान की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है और अगले पांच वर्षों में इसे हासिल कर लिया जाएगा।