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कांग्रेस में एक और मेनन की मिसाल बन रहे शशि थरूर

मेनन की तरह थरूर भी दुनिया भर में मशहूर हैं और एकदम अलग रुख रखते हैं। मेनन की ही तरह उनके और उस कांग्रेस के बीच खाई बढ़ती जा रही है

Last Updated- June 02, 2025 | 11:23 PM IST
Shashi Tharoor

किसी समय पश्चिम में ‘भारत के रासपुतिन’ कहलाने वाले और जवाहरलाल नेहरू के बाद नंबर दो माने जाने वाले पूर्व रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन एक ऐसे वैश्विक नागरिक थे, जो अपनी ही पार्टी में अजनबी बनकर रह गए थे। मेनन को आखिरकार कांग्रेस की मुख्यधारा से बाहर कर दिया गया, जो सियासी हाशिये पर धकेले जाने का ऐसा उदाहरण है, जो केरल में विश्लेषकों को दोहराता हुआ दिख रहा है। उन्हें तिरुवनंतपुरम से लोक सभा सदस्य शशि थरूर भी उसी राह पर जाते नजर आ रहे हैं।

मेनन की तरह थरूर भी दुनिया भर में मशहूर हैं और एकदम अलग रुख रखते हैं। मेनन की ही तरह उनके और उस कांग्रेस के बीच खाई बढ़ती जा रही है, जो पार्टी कभी उन पर फिदा रहती थी। नया टकराव तब शुरू हुआ, जब केंद्र सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद विदेश में अपनी बात रखने के अभियान में थरूर को भी शामिल कर लिया। राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी इस पर ऐसी हायतौबा नहीं मचा रहे हैं, जितनी उनकी पार्टी के भीतर हो रही है। कांग्रेस और थरूर के बीच राजनीतिक और वैचारिक मतभेद अब कानाफूसी की बात नहीं रह गई है।

विकास के मसले पर कांग्रेस की परंपरागत लीक और उनके नव उदार विचारों के बीच अंतर बार-बार सामने ता रहा है मगर इस बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तरह राष्ट्रवादी नजरिये की तरफ उनके झुकाव ने तूफान खड़ा कर दिया है। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक सनीकुट्टी अब्राहम ने कहा, ‘थरूर का किस्सा मेनन जैसा है। वैश्विक नागरिक की छवि वाला व्यक्ति पार्टी के विचारों में ढल नहीं पा रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि उस समय नेहरू और दूसरी शख्सियतों के साथ कांग्रेस अपने उफान पर थी।’ अब्राहम का कहना है कि थरूर अनजाने में भाजपा की बात को दोहरा रहे हैं और कांग्रेस इसे पचा नहीं पा रही है।

केंद्र सरकार ने आतंकवाद और खासकर पाकिस्तान पर भारत का रुख पेश करने के लिए बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल गठित किया है और उसकी कमान थरूर को सौंपी है। इस पर फौरन प्रतिक्रिया हुई। कांग्रेस ने इस अभियान के लिए जो चार नाम सौंपे थे, उनमें थरूर का नाम ही नहीं था। फिर भी वह विदेश में देश की बात रखने भेज दिए गए। सबसे मुखर आलोचना कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने की, जो संचार प्रभारी हैं। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, ‘कांग्रेस में होना और कांग्रेस का होना में जमीन-आसमान का अंतर है।’ उन्होंने अपनी पार्टी को गंगा बताया, जिससे कई धाराएं निकलती हैं। उनमें से ‘कुछ सूख जाती हैं और कुछ मैली हो जाती हैं।’

2016 में नियंत्रण रेखा के पार हुई सर्जिकल स्ट्राइक पर टिप्पणी करते हुए थरूर ने कहा कि यह पहला मौका था, जब भारत ने नियंत्रण रेखा लांघकर आतंकवाद पर जवाबी हमला किया। उनकी इस टिप्पणी ने आग में और भी घी डाल दिया। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने फौरन थरूर को 2018 में आई उनकी किताब ‘द पैराडॉक्सिकल प्राइम मिनिस्टर’ में लिखे शब्द याद दिला दिए। थरूर ने उसमें भाजपा को चुनावी फायदे के लिए हमले का पूरी ‘बेशर्मी के साथ इस्तेमाल’ करने का आरोप लगाया था। उस समय थरूर ने कहा था कि कांग्रेस ने भी ऐसे गोपनीय अभियानों की अनुमति दी थी मगर उसका राजनीतिकरण नहीं किया था।

खेड़ा के जवाब में थरूर ने एक्स पर लिखा, ‘अतीत में नियंत्रण रेखा के पार भारत की बहादुरी की जानकारी मुझे नहीं होने की बात कहकर मेरी निंदा करने वाले लोगों से मैं इतना ही कहूंगा कि साफ तौर पर मैं आतंकी हमलों के जवाब की बात कर रहा था, पहले हुई जंगों की नहीं।’ उन्होंने लिखा कि उनकी टिप्पणी हाल के वर्षों में हुए कई हमलों के सिलसिले में ही थी।

केरल में कई लोगों को यह घटनाक्रम गंभीर अंदरखाना झगड़े का संकेत दे रहा है। कांग्रेस की राज्य इकाई में चल रहे तनाव भी सामने आ रहे हैं। थरूर का बढ़ता कद और पार्टी में उन्हें बड़ी भूमिका देने की लगातार बढ़ती मांग ने मुख्यमंत्री बनने के अरमान रखने वाले कई नेताओं को परेशान कर दिया है। इनमें कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल, राज्य में नेता प्रतिपक्ष वीडी सतीशन तथा वरिष्ठ नेता रमेश चेन्निथला शामिल हैं। कन्नूर से आने वाले सनी जोसेफ को 2026 के विधान सभा चुनावों से पहले केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाए जाने को भी पार्टी के भीतर संतुलन बिठाने की कोशिश माना जा रहा है। थरूर को इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग जैसे प्रमुख सहयोगियों का भी समर्थन हासिल है, इसलिए कुछ हलकों में उन्हें सियासी खतरा भी माना जा रहा है। इन्हीं थरूर को 2009 में तिरुवनंतपुरम सीट से लोकसभा चुनाव लड़ते समय पैराशूट उम्मीदवार या बाहरी उम्मीदवार कहा गया था।

राजनीतिक विश्लेषक और केरल विश्वविद्यालय के प्रो वाइस चांसलर जे प्रभाष कहते हैं, ‘वह उस कांग्रेस से ऊपर नहीं हैं, जिसने उन्हें लड़ने के लिए सीट दी थी और उन पार्टी कार्यकर्ताओं से ऊपर भी नहीं हैं, जिन्होंने उनकी जीत में मदद की थी। भारतीय राजनीति में आपको एक लीक पर चलना ही पड़ता है।’

यह पहला मौका नहीं है, जब पार्टी और थरूर के रुख जुदा हैं। जब कांग्रेस ने तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे के निजीकरण और उसे अदाणी समूह को सौंपे जाने का विरोध किया था तब थरूर ने खुलेआम इसका समर्थन किया था और खुद को उद्योग हितैषी साबित किया था। विझिंजम बंदरगाह का विरोध होने पर भी उनका यही रुख यही रहा था। उस समय कांग्रेस आंदोलन कर रहे मछुआरों का समर्थन कर रही थी और थरूर ने बुनियादी ढांचे के लिए सरकारी पहल का समर्थन कर दिया।

हाल ही में केरल के वैश्विक निवेशक सम्मेलन से पहले उन्होंने अखबार में एक लेख लिखा और उसमें राज्य को निवेशकों के अनुकूल बताया। यह उनकी पार्टी के आधिकारिक रुख के एकदम उलट था, जो कहती है कि केरल उद्योगों के मामले में बिल्कुल पिछड़ा हुआ है। अब्राहम का कहना है, ‘उनके भीतर पार्टी के लिए निष्ठा तो होनी ही चाहिए। वह ऐसे बयान नहीं दे सकते, जिनसे भाजपा को प्रमुख मुद्दों पर राजनीतिक फायदा मिल जाए।’ अब तो अटकलें लगने लगी हैं कि थरूर कांग्रेस के भीतर अपना भविष्य देख भी रहे हैं या वैश्विक नागरिक के आजाद रास्ते पर चल रहे हैं।

थरूर ने भाजपा में शामिल होने की बात को हमेशा खारिज किया है मगर कहा जा रहा है कि सरकार के परोक्ष समर्थन के साथ वह संयुक्त राष्ट्र महासचिव के पद पर पहुंचने की दूसरी कोशिश कर सकते हैं, भारत में प्रमुख पदों पर जा सकते हैं या पार्टी राजनीति से ऊपर उठकर बिना पद के भारतीय दूत बन सकते हैं। मेनन का 1957 का वह भाषण मशहूर है, जब कश्मीर पर भारत के रुख को सही ठहराने के लिए वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आठ घंटे से भी ज्यादा समय तक बोलते रहे थे। उसके बाद ही उन्हें ‘हीरो ऑफ कश्मीर’ कहा जाने लगा था।

 

First Published - June 2, 2025 | 10:48 PM IST

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